भारत में ताजमहल के बाद, सबसे ज़्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है तो वह है, खजुराहो। खजुराहो, भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं। खजुराहो को प्राचीन काल में खजूरपुरा और खजूर वाहिका के नाम से भी जाना जाता था। इस जगह को खजुराहो नाम पढ़ने का कारन है की यहाँ पहले बहुत से खजूर के पेड़ थे।
इस प्राचीन मंदिर की कलाकृतियों की अद्भुत शिल्पकारी और प्रभावशाली मूर्ति कला की भव्यता की वजह से इन्हें विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया गया है। इस शानदार खजुराहों के मंदिर के अंदर करीब 246 कलाकृतियां हैं जबकि 646 कलाकृतियां बाहर हैं, जिनमें ज्यादातर कलाकृतियां कामुकता को प्रदर्शित करती हैं। इसे हर रोज दुनियाभर से लाखो लोग दर्शन के लिए आते हैं।


चंदेल शासकों ने इन मंदिरों की तामीर सन 900 से 1130 ईसवी के बीच करवाई थी। इतिहास में इन मंदिरों का सबसे पहला जो उल्लेख मिलता है, वह अबू रिहान अल बरूनी (1022 ईसवी) तथा अरब मुसाफ़िर इब्न बतूता का है। दरअसल यह क्षेत्र प्राचीन काल में वत्स के नाम से, मध्य काल में जैजाक्भुक्ति नाम से तथा चौदहवीं सदी के बाद बुन्देलखन्ड के नाम से जाना गया।
खजुराहो के चन्देल वंश का उत्थान दसवीं सदी के शुरू से माना जाता है। इनकी राजधानी प्रासादों, तालाबों तथा मंदिरों से परिपूर्ण थी। स्थानीय धारणाऑं के अनुसार तक़रीबन एक हज़ार साल पहले यहां के दरियादिल व कला पारखी चंदेल राजाओं ने क़रीब 84 बेजोड़ व लाजवाब मंदिरों की तामीर करवाई थी, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ़ 22 मंदिरों की ही खोज हो पाई है, यद्यपि दूसरे पुरावशेषों के प्रमाण प्राचीन टीलों तथा बिखरे वास्तुखंडों के रूप में आज भी खजुराहो तथा इसके आसपास देखे जा सकते हैं।
खजुराहो स्मारकों में बदलाव 13 वी शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के आक्रमण के बाद हुआ, सुल्तान कुतुब-उद-दिन ऐबक ने आक्रमण कर के चंदेला साम्राज्य को छीन लिया था। इसकी एक शताब्दी के बाद ही इब्न बतुत्ता, मोरक्कन यात्री तक़रीबन 1335 से 1342 ईसवी तक भारत रुका और उसने अपने लेखो में खजुराहो को “कजर्रा” कहते हुए जिक्र किया।
मध्य भारतीय क्षेत्र में खजुराहो मंदिर 13 से 18 वी शताब्दी के बिच मुस्लिम शासको के नियंत्रण में थे। इस काल में बहुत से मंदिरों का अपमान कर उन्हें नष्ट भी किया गया था। उदाहरण के लिये 1495 ईसवी में सिकंदर लोदी ने अपनी सैन्य शक्ति के बल पर खजुराहो मंदिरों का विनाश किया था। लेकिन बाद में हिन्दुओ और जैन धर्म के लोगो ने एकत्रित होकर खजुराहो मंदिर की सुरक्षा की। लेकिन जैसे-जैसे सदियाँ बदलती गयी वैसे-वैसे वनस्पति और जंगलो का भी विकास होता गया और और खजुराहो के मंदिर भी सुरक्षित हो गये।
1838 में एक ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन टी.एस. बर्ट को अपनी यात्रा के दौरान अपने कहारों से इसकी जानकारी मिली। उन्होंने जंगलों में लुप्त इन मन्दिरों की खोज की और उनका अलंकारिक विवरण बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी के समक्ष प्रस्तुत किया। 1843 से 1847 के बीच छतरपुर के स्थानीय महाराजा ने इन मन्दिरों की मरम्मत कराई। जनरल अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने इस स्थान की 1852 के बाद कई यात्राएँ कीं और इन मन्दिरों का व्यवस्थाबद्ध वर्णन अपनी ‘भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण’ की रिपोर्ट (आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया रिपोर्ट्स) में किया।


खजुराहो का मंदिर समूह अपनी भव्य छतों (जगती) और कार्यात्मक रूप से प्रभावी योजनाओं के लिए भी उल्लेखनीय है। यहाँ की शिल्पकलाओं में धार्मिक छवियों के अलावा परिवार, पार्श्व, अवराणा देवता, दिकपाल और अप्सराएँ तथा सूर सुंदरियाँ भी हैं। यहाँ वेशभूषा और आभूषण भव्यता मनमोहक हैं।
2). खजुराहो मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। कभी यह स्थान खजूर के जंगल के लिए जाना जाता था। यही कारण है कि इसका नाम खजुराहो पड़। लेकिन खजुराहो आज खजूर के वन नहीं बल्कि कामुक मूर्तियों से सजी मंदिरों के लिए जाना जाता है।
3). खजुराहो मंदिर के अन्दर के कमरे एक दुसरे से जुड़े हुए है। कमरों में एक तरह से कलाकृति की गयी है की कमरों की खिडकियों से सूरज की रौशनी पुरे मंदिर में फैले। और लोग भी मंदिर को देखते ही आकर्षित होते है।
4). खजुराहो प्रसिद्ध पर्यटन और पुरातात्विक स्थल है। जिसमें हिन्दू व जैन मूर्तिकला से सुसज्जित 25 मन्दिर और तीन संग्रहालय हैं। 25 मन्दिरों में से 10 मंदिर विष्णु को समर्पित हैं, जिसमें उनका एक सशक्त मिश्रित स्वरूप वैकुण्ठ शामिल है। नौ मन्दिर शिव के, एक सूर्य देवता का, एक रहस्यमय योगिनियों (देवियों) का और पाँच मन्दिर दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के तीर्थकारों के हैं। खजुराहो के मन्दिर में तीन बड़े शिलालेख हैं, जो चन्देल नरेश गण्ड और यशोवर्मन के समय के हैं।
5). कुछ अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर की भी यह विशेशता है कि अगर कुछ दूर से आप इसे देखें तो आपको लगेगा कि आप सैंड स्टोन से बने मंदिर को नहीं बल्कि चंदन की लकड़ी पर तराशी गई कोई भव्य कृति देख रहे हैं। अब सवाल उठता है कि अगर यह मंदिर बलुआ पत्थर से बना है तो फिर मूर्तियों, दीवारों और स्तम्भों में इतनी चमक कैसे, दरअसल यह चमक आई है चमड़े से ज़बरदस्त घिसाई करने के कारण।



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