मेरी हिप्पी गर्लफ़्रेंड ने मुझसे ब्रेकअप कर घुमक्कड़ी को जीवनसाथी बना लिया!

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ये बात 2013 की है। घूमने की बजाय इस बार कुछ नया ट्राय करने के लिए मैंने दिल्ली की अमेरिकन लाइब्रेरी जॉइन की। बात ये नहीं है कि मुझे घूमना पसंद नहीं या पैसे कम पड़ गए हैं। बल्कि इसलिए, क्योंकि घूमने के लिए आपके पास बहुत सारा समय होना चाहिए, जो अभी मेरे पास नहीं था।

अगर आप बाराखम्भा रोड स्थित अमेरिकन लाइब्रेरी का सदस्य रहे हैं तो आपको यहाँ भारतीय कम जबकि विदेशी लोग ख़ूब मिलेंगे। हालाँकि मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं है, मैं बस बता रहा हूँ। तो मैं यहाँ पर कोई अच्छी सी किताब ढ़ूँढ़ ही रहा था, कि मेरे पास एक विदेशी लड़की आई और अपनी टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में कहा, “क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ?”, मैंने भी हाँ कह दिया। वो बैठकर किताब पढ़ने लगी। किताब पढ़ने में वो इतनी मशगूल थी कि डेढ़ घंटे तक वो ऐसे ही बैठी रही। मैं बगल में बैठा बैठा बोर हो रहा था, तो मैं कुछ स्नैक्स और हवा खाने बाहर जाने की सोचने लगा। मैंने उससे भी अपनेपन के भाव के साथ पूछा, “क्या आप कुछ खाना चाहती हैं?” उसने हाँ कर दी और हम बाहर चले गए।

बैठक वाली जगह में खाना खाते वक़्त मैं उसके बारे में थोड़ा बहुत जान सका। क्योंकि उसको बोलने का बहुत शौक़ था, वाक़ई में। उसका नाम क्लारा है और स्पेन की रहने वाली है, पर वह ख़ुद को “citizen of the world” कहलाना पसंद करती है। बेहद उत्सकुता के साथ उसने अपनी ज़िंदगी और घूमी हुई जगहों के बारे में बताया और यह भी कि कैसे ट्रैवलिंग उसका पैशन बना। “मैं अब तक 47 देश घूम चुकी हूँ”, गर्व के साथ उसने कहा, “लेकिन उनमें मुझे सबसे ज़्यादा भारत पसंद आया”। मैं बहुत देशभक्त तो नहीं हूँ, लेकिन मुझे उसकी यह बात सुनकर सच में बहुत अच्छा लगा।

चूँकि वह भी अमेरिकन लाइब्रेरी की सदस्य थी, तो हम रोज़ाना मिलने लगे। वह एक अंतर्राष्ट्रीय NGO के लिए काम कर रही थी, और पिछले 8 महीने से वह भारत में ही थी। इस कारण वह या तो किताबें पढ़ती रहती थी, या फिर घूमने निकल जाती थी। वहीँ मैं एक बेरोज़गार काम की तलाश में था। तो जब भी वह कहीँ घूमने जाती थी, मैं भी उसको कंपनी दे देता था। किसी विदेशी की नज़र से अपनी घूमी हुई जगहों को देखना एक अलग ही एहसास देता है। उसकी अंग्रेज़ी बहुत अच्छी तो नहीं थी, लेकिन लड़कियाँ तो अपने चेहरे के हाव-भाव से ही सारी बातें बता ले जाती हैं।

लाइब्रेरी के बाहर भी मैं और क्लारा वक़्त बिताने लगे थे। कनॉट प्लेस के सबसे महँगे और सबसे सस्ते रेस्तराँ में हमने ख़ूब वक़्त बिताया है। आप सच मानिए, कनॉट प्लेस में खाने पीने वाली जगहों के बारे ज़ोमैटो को भी इतना नहीं पता होगा, जितना मुझे है। अपनी घूमी हुई जगहों के बारे में बताना उसको बहुत पसंद था। वह हमेशा मुझे उनके बारे में बताती रहती थी।

प्यार में एक ऐसा दौर आता है, जब आप सारी बातें दिल के भीतर रखते हैं। कहना तो चाहते हैं, लेकिन कहने से डरते हैं। उसकी उम्र तकरीबन 30 साल की थी और मैं 25 का। हौज़ ख़ास के पास मैं उसके अपार्टमेंट जाता था, जहाँ वह अपने स्पैनिश दोस्तों के साथ रहती थी। उसने मुझे अपने भाइयों और मम्मी पापा से भी मिलवाया। हम दोनों की साथ में अच्छी कट रही थी।

वह भारत में कई जगहें देख चुकी थी। बनारस और स्पीति उसके सबसे पसंदीदा जगहों में से थे। नई जगहें देखने के लिए हम दोनों ने साथ में घूमने का प्लान बनाया। वह जगह थी केरल, बिल्कुल दक्षिण भारत। बहुत ज़्यादा तो नहीं बता पाऊँगा, लेकिन यह ट्रिप बहुत ख़राब रहा। चूँकि मैं एक बहुत बड़ा घुमक्कड़ तो नहीं हूँ, तो मैं आरामदायक ट्रिप एंजॉय करना पसंद करता हूँ। वहीँ क्लारा बिल्कुल हिप्पी ट्रैवलर है, जो घूमते वक़्त बिल्कुल मस्ती में रहती है। मैं थोड़ा शांत और इंट्रोवर्ट हूँ, वहीं क्लारा बिल्कुल एक्स्ट्रोवर्ट। मुझे केवल अच्छी जगहें देखना पसंद है, वहीं क्लारा को जगहों के साथ लोग भी ख़ूब भाते हैं। बिल्कुल दो अलग विचारों वाले लोग साथ में ट्रैवल करते हैं, तो दिक्कतें तो होती हैं। इससे हमारा रिलेशनशिप तो ख़राब नहीं हुआ, पर उसने दोबारा घूमने के लिए भी नहीं कहा। चूँकि उसका काम भी घूमने से जुड़ा था, तो वह अकेले भी नई जगहों पर निकल जाती थी। शायद यहीं से हमारे ब्रेकअप की शुरुआत हुई।

उसके NGO की तरफ़ से उसे पेरू जाने को कहा गया था। उसकी ये बात सुनकर मैं बहुत दुःखी हुआ। लेकिन उसकी ख़ुशी देखकर मैं भी उसे मना नहीं कर सका। वह भी मेरी ख़ुशी में दुःख साफ़ देख सकती थी।

उसने पूछा, “क्या तुम मेरे साथ चलोगे?”

“क्या तुम सच में चाहती हो, कि मैं तुम्हारे साथ चलूँ?”

“उम्म, हाँ भी और नहीं भी।”

“मतलब?”

“मैं तुमसे प्यार करती हूँ और चाहती हूँ कि तुम भी मेरे साथ आओ। लेकिन मैं जानती हूँ कि इतना घूमने का तुम्हें शौक़ नहीं।”

“हम्म, काश तुम्हारी बात ग़लत होती। क्या तुम मेरे साथ इंडिया में रहोगी।”, मैंने स्वार्थवश पूछा। “नहीं, मैं इंडिया में नहीं रह सकती। मैंने यह जॉब चुनी क्योंकि इसमें मुझे घूमने को ख़ूब मिलता है। और ट्रैवल ही एक ऐसी चीज़ है, जो मैं चाहती हूँ।”

“तो, बस इतना ही था सफ़र”

“शायद... हाँ।”

क्लारा अगले हफ़्ते पेरू चली गई। वह एक पंछी के जैसी है, जिसे क़ैद नहीं करना चाहिए। मैं भी उसको बहुत मिस करता हूँ। उसने मुझे इतना कुछ सिखाया, जितना शायद किसी ने नहीं। ख़ासकर किसी जगह की ख़ूबसूरती को देखना। मुझे लगता है कि ये जितने घुमक्कड़ होते हैं, उनके भीतर यह बात हमेशा से ही होती है। उनके भीतर कुछ नया देखने की इच्छा हमेशा रहती है। क्लारा भी बिल्कुल ऐसी है। हम दोनों साथ में बहुत अच्छे थे, कम वक़्त के लिए ही सही। अभी वह नोम पेन्ह में है और मैं गुड़गाँव के 15X15 कमरे में यह कहानी लिख रहा हूँ। ख़ैर, कोई बात नहीं।

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