प्रथम एंग्लो-गोरखा युद्ध के बाद बसाए गए शहर को रेल मार्ग से जोड़ने के लिए 1847 में दिल्ली गजट में एक सुझाव प्रकाशित किया गया। यह शहर कालांतर में ब्रिटिश भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी तथा ब्रिटिश-भारतीय सेना का मुख्यालय होना था।
कलकत्ता से शिमला का सफर तय करते हुए अंग्रेज अफसर सफर की दुश्वारियों से इस नतीजे पर पहुंचे थे कि राज्य के शक्तिमत्ता के केंद्र को आवागमन के लिहाज से सुगम होना साम्राज्य के स्थायित्व की शर्तों में से एक है।
1903 में इस रेल मार्ग के परिचालन का आरंभ अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन को समर्पित था।लेकिन भारी सैन्य-साजो सामान की ढुलाई के लिए यह मार्ग तकनीकी रूप से मुफीद नही था जिसमें कुछ तकनीकी परिवर्तन अभी किये जाने शेष थे।
अपने शुरुआती दौर में निजी हाथों से संचालित होने के बाद 1 जनवरी 1906 को इसके परिचालन की जिम्मेदारी ब्रिटिश हुकूमत ने ले ली।यह रेल खण्ड नार्थ वेस्ट फ्रंटियर रेलवे के लाहौर हेडक्वार्टर से सम्बंध था।
1926 के बाद इसके परिचालन की जिम्मेदारी दिल्ली डिवीजन को सौंपी गयी जो 1987 तक अम्बाला डिवीजन के अस्तित्व में आने तक बनी रही।
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