
Day 1
भले विपत्ति का है समय,
छाई है घनघोर प्रलय,
खुद से बस ये कहना है,
मुझको ज़िन्दा रहना है|
कैसी दुविधा आई है,
मानवता घबराई है,
मौत का तांडव रचा है उसने,
जो देता नहीं दिखाई है |
इक दूजे से दूर हुए हम,
यू ही थक कर चूर हुए हम,
घर के पिंजरे में हैं कैद,
लोटपोट कभी क्रूर हुए हम |
अहंकारी या विद्वान,
सब हुए हैं एक समान,
नारा एक ही गूंज रहा,
है जान तो है जहान |
शुरू हुए हैं मंत्र-जाप,
डोल रहे हैं रक्तचाप,
हरि-हरि बस जप रहे,
बच्चे-बूढे-अम्मा-बाप |
करवट कुदरत ने बदली,
दिखलाया अपना भी कहर,
चन्द लम्हों में फैल गया,
इंसान जो घोले रोज़ ज़हर |
बोली प्रकृति बस बहुत हुआ,
अब तो तुझे ही सहना है,
खुद से बस ये कहना है,
मुझको जिन्दा रहना है |
Dr. Danish Sharma ©
