गुनेहर: सिर्फ पहाड़ और हरियाली ही नहीं, यहाँ की दीवारों में भी झलकती है खूबसूरती

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Photo of गुनेहर: सिर्फ पहाड़ और हरियाली ही नहीं, यहाँ की दीवारों में भी झलकती है खूबसूरती by Musafir Rishabh

वैसे तो हिमाचल प्रदेश के हर कोने में खूबसूरती छाई हुई है लेकिन इसी राज्य में छोटे-छोटे पड़ाव हैं जहाँ ठहरना सुकून देता है। हिमाचल प्रदेश में ऐसा ही शांत और सुकून देने वाला एक पड़ाव है, गुनेहर। गुनेहर एक छोटा-सा गाँव है जिसके बारे में टूरिस्ट बहुत कम जानते हैं। यहाँ की दिनचर्या देखकर आपको लगेगा कि आप एक पुराने समय में लौट आए हैं जहाँ आज भी कच्चे घर और कच्ची सड़कें हैं। पहाड़ों पर चरवाहों को मवेशियों को चराते हुए देख सकते हैं। ये सब हिमाचल प्रदेश के बड़े शहरों में देखने को नहीं मिलता। इसके लिए आपके गुनेहर जैसी छोटी और खूबसूरत जगह पर आना पड़ेगा।

ऐसी छोटी-छोटी जगहें हिमाचल प्रदेश में बहुत सारी हैं फिर आप गुनेहर ही क्यों जाएँ? हर जगह की कुछ अलग और विशेष खासियत होनी चाहिए, जो लोगों को अपनी ओर खींचे। गुनेहर सिर्फ अपनी खूबसूरती के लिए नहीं कुछ असाधारण चीज़ों के लिए भी फेमस है। गुनेहर पहले हिमाचल प्रदेश का एक आम गाँव था लेकिन इसे टूरिस्ट प्लेस बनाने का श्रेय एक जर्मन शख्स को जाता है जिसने पूरे गाँव को एक कैनवास में बदल दिया। आइए चलते हैं इस असाधारण गाँव की यात्रा पर।

गुनेहर की यात्रा

इस गाँव की तस्वीर बदलने वाले स्चलिचटमन का जन्म हैम्बर्ग में हुआ था। उनकी माँ बंगाली और पिता जर्मन थे। जब वो चार साल के थे, तब पहली बार भारत आए। फ्रैंक का 4 टेबल्स प्रोजेक्ट लगभग आठ साल पहले शुरू हुआ था। जिसका टारगेट वैकल्पिक और सार्थक जीवन के लिए जगह बनाना था। इसको पूरा करने के लिए उन्होंने उस गाँव में सुंदर-सुंदर गैलरी बनाई, कैफे और बुटीक खोले। ऐसा करने से गँव की तस्वीर भी बदली और लोगों की तकदीर भी। इन कामों से लोकल लोगों को रोज़गार भी मिला। अच्छी-अच्छी तस्वीरों से गाँव को सजाया गया, पारंपरिकता को पुनर्जीवित किया गया। ये सब बदलावों के बावजूद गाँव को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुँचाया गया।

दीवारों पर कला

कहा जाता है कला बहुत खूबसूरत भी होती है और उस समय का प्रमाण भी होती है। कोई भी सोशल संदेश देना हो तो कला का ही उपयोग किया जाता है। जब ये कला घने जंगलों और सुगंधित बागों की होती है तो ये और भी ज्यादा वास्तविक लगने लगती है। ‘शॉप आर्ट’ के तहत तरह-तरह की आर्ट हर तीन साल में गुनहेर के घरों पर बदलती रहती है। ये सब कुछ नियमों को ध्यान में रखकर किया जाता है।

फ्रैंक ने 2013 में 13 उभरते हुए कलाकारों को एक महीने के लिए गाँव में रहने, आर्ट्स बनाने के लिए आमंत्रित किया। शाॅपआर्ट का लक्ष्य गाँव को तो खूबसूरत बनाना तो था ही, साथ में खाली पड़ी दुकानों को भी भरना था। गुनहेर में भाग लेने वाले कलाकारों ने अपनी ऑर्ट्स में ग्रामीण जीवन को शामिल किया है। इन कलाकारों ने गाँव की फीलिंग्स को बहुत अच्छे से दिखाया है। अब हो ये रहा है कि गुनहेर की तरह ही बाकी जगह अपने आपको ऐसा ही बनाना चाहती हैं।

₹1 का सिनेमा

गुनेहर की सबसे शानदार चीज़ है केएम लो का ‘एक रुपये का सिनेमा’ है। विपुल सिंगापुरी निर्देशक ने कंबोडिया, चीन, फिलीपींस, थाईलैंड और लाओस में सिनेमा पर कई कार्यशालाएँ भी आयोजित करते हैं। गुनेहर में बच्चों के बीच एक कोना उनकी सबसे पसंदीदा जगह है। वो बच्चों और लोकल लोगों को सिनेमा के बारे में बताते हैं। इसके अलावा कैमरावर्क और अन्य तकनीकों के बारे में बताते हैं। उन्होंने ही लोकल लोगों को सिखाया है कि कैसे एक रुपए में सिनेमा बनाया जाए।

इंदौर की एक फेमस कलाकार मुदिता भंडारी ने यहाँ के घरों की दीवारों को सुंदर-सुंदर चित्रों, शंकुधारी पत्थर और स्लेट में बदल दिया है। वो गुनेहर में कार्यशाला करती हैं और उम्मीद करती हैं कि यहाँ की लड़कियाँ इसको सीखें। रेना कुमार की गुनेहर फैशन शाॅप, गुनेहर आने वालों के लिए एक देखने वाली जगह है। रेना कुमार की गुनेशर फैशन शॉप्स, गुनेहड़ के निकट आने के साथ देखने के लिए आने वाले पहले प्रतिष्ठानों में से एक है। यहाँ आप स्थानीय धुनों को सुन सकते हैं। इसके अलावा गुनेहर की महिलाएँ पारंपरिक वेशभूषा बनाने का काम करती हैं। शहरों में इसे खूब पसंद किया जा रहा है।

यहाँ एक नदी बहती है

गुनेहर में आपको सजी और सुंदर दीवारें देखने को मिलेंगी। पैदल चलते हुए गाँव के किनारे जाएँगे तो आपको कलकल की आवाज़ सुनाई देगी। ये आवाज़ गाँव के ही करीब बहती गुनेहर नदी की है। ये नदी बहुत सुंदर और साफ है, नदी में आपको गंदगी का नामोनिशान नहीं देगा। ये नदी हरे-भरे पहाड़ों से घिरी हुई है। यहाँ से सुबह-सुबह आप उगते हुए सूरज को देख सकते हैं। जो कोई भी गाँव घूमने आता है। यहाँ के लोग उनसे निवेदन करते हैं कि अपने साथ लाए रैपर और बिस्लेरी की बोतलों को साथ ले जाएँ।

खाना-पीना

अच्छा और लज़ीज़ खाना खाने के लिए आपको फोर टेबल कैफे जाना चाहिए,। जहाँ का खाना आपको अपने घर की तरह लगेगा। इसमें आपको जड़ी-बूटियों से पका हुआ चिकन, आलू-पालक की चटनी के साथ परोसा जाता है। ऐसा स्वादिष्ट खाना शायद ही और कहीं मिले। कैफे में ब्रेकफास्ट में आपको पनीर, फल, ताजे बेक्ड बंस और अंडे मिलते हैं।

कहाँ ठहरें?

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श्रेय: फ्लिकर

ठहरने के लिए गुनहेर में सबसे अच्छी जगह फोर टेबल होटल है। इसे एक पुराने और जर्जर होते घर को नयाब नया बनाया गया है। इसमें बड़ी-सी दीवार, कई कमरे और एक बरामदा भी है। सबसे बड़ी बात यहाँ से पहाड़ और जंगल का शानदार नज़ारा देखने को मिलता है।

कब और कैसे जाएँ?

गुनहेर जाने के लिए सबसे बेस्ट टाइम मार्च से जुलाई तक का है। उस समय यहाँ का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस तक होता है। दिन में तापमान थोड़ा नाॅर्मल और रातें ठंडी होती है। धर्मशाला से गुनेहर आप दो घंटे की ड्राइव करके पहुँच जाएँगे। गुनेहड़ से सबसे नज़दीक रेलवे स्टेशन पठानकोट है। पठानकोट से धर्मशाला 85 किमी. की दूरी पर है। यहाँ आपको पैदल ही घूमना होगा क्योंकि यहाँ कोई लोकल ट्रांसपोर्ट नहीं चलते हैं।

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