महाभारत के करीब 36 साल बाद श्रीकृष्ण ने एक शिकारी का तीर पैर में लगने के बाद मानव शरीर त्याग दिया...तीर लगते ही उन्होंने पांडवों तक सूचना भिजवा दी थी ताकि वे श्रीकृष्ण के पास चले आए..पांडवों ने श्रीकृष्ण के मानव शरीर का अंतिम संस्कार किया...लेकिन ,लोककथाओं के अनुसार, अंतिम संस्कार के बाद श्रीकृष्ण का हृदय शेष रह गया था..उसे फिर संरक्षित किया गया..इसे ब्रह्म पदार्थ कहा गया..कहते हैं यही ब्रह्म पदार्थ जगन्नाथ जी की मूर्ति में हैं और इस तरह इस मूर्ति में श्रीकृष्ण का हृदय धड़कता हैं...
जगन्नाथ मंदिर हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक हैं जो भारत में पूर्वी राज्य उड़ीसा में समुद्र के किनारे स्थित हैं..यहां की हर साल आयोजित होने वाली रथयात्रा विश्व-प्रसिद्ध हैं जो इस साल अभी 7 जुलाई को ही शुरू हुई थी... अभी ही उड़ीसा में BJP राज्य भी आ गया हैं और अब जगन्नाथ के ख़ज़ाने का मामला सुर्खियों में हैं...खैर, यह मामला तो रिपोर्ट पेश होने के बाद पता लगेगा...
जगन्नाथ मंदिर में मुख्य रूप से 3 मूर्तियां पूजी जाती हैं जो नीम की लकड़ी की बनी हैं..ये मूर्तियां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और दोनों की बहन सुभद्रा की हैं...ये मूर्तियां अधूरी मूर्तियां हैं...आप जब तीनों मूर्तियों को देखेंगे तो पायेंगे कि तीनों के पैर नहीं बने हैं और एक मध्य वाली मूर्ति के हाथ भी नहीं बने हैं...इसके पीछे एक कहानी हैं..
एक बार जब स्वयं विश्वकर्मा जी कारीगर का रूप लेकर राजा इन्द्रद्युम्न के यहां पधारे तो उन्होंने श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियां खुद बनाने का जिम्मा लिया, बदले में शर्त रखी कि मूर्तियाँ पूर्ण रूप में बनने से पहले कोई भी मूर्ति बनाने वाले कमरे में नहीं आएगा... फिर मूर्ति बनाने का कार्य शुरू हुआ..कुछ दिनों तक कमरे से मूर्ति बनने की आवाजें आती रही लेकिन कुछ दिनों में अचानक आवाजें बंद हो गई...राजा ने अनहोनी की आशंका में दरवाजा खुलवा दिया और शर्त के अनुसार मूर्तियां अधूरी ही रह गई.. फिर उन्हें उसी अवस्था में विराजित करके पूजा जाने लगा...
यह मूर्तियां नीम की लकड़ी की बनाई जाती हैं और हर उस साल जब एक ही साल में आषाढ़ के दो महीने आते हैं तब इन्हें नयी मूर्तियों से बदल दिया जाता हैं... इसे नबकलेवर उत्सव कहा जाता हैं यह अन्तिम बार 1996 ,फिर 2015 में मनाया गया..मतलब अभी वाली मूर्तियां 2015 में स्थापित की गई थी...पुरानी मूर्तियों को किसी पवित्र जगह विसर्जित कियाजाता हैं... मूर्तियां बनाने के लिए नीम के पेड़ के चयन के भी कुछ नियम होते हैं जैसे कि कृष्ण की मूर्ति के लिए गहरे रंग की लकड़ी, वही दूसरी दोनों मूर्तियों के लिए हल्के रंग की लकड़ी चाहिए होती हैं.. पेड़ के पास जलाशय और श्मशान होना जरूरी होता हैं.. जड़ों में सांप का बिल भी होना आवश्यक माना जाता हैं...और भी इसी तरह के कुछ तथ्यों को ध्यान में रखकर पेड़ और लकड़ी का चयन किया जाता हैं... #traveltalesbyrishabh
अब आप मूर्तियां ध्यान से देखेंगे तो पायेंगे कि तीनों अलग अलग रंग की मूर्तियां हैं वहाँ ..काले रंग की मूर्ति भगवान जगन्नाथ (कृष्ण) की, सफेद रंग की मूर्ति बलभद्र (बलराम) की और पीले रंग की मूर्ति सुभद्रा की रहती हैं...सबसे लंबी मूर्ति बलभद्र जी (करीब 6feet ) ,फिर जगन्नाथ जी (5'7 feet) और सुभद्रा जी की मूर्ति करीब 5'5 फीट रखी जाती हैं...यह आंकड़ा थोड़ा कम ज्यादा हो सकता हैं.... मूर्ति बदलते समय ब्रह्म पदार्थ (श्री कृष्ण का हृदय) नयी मूर्ति में रखा जाता हैं इसीलिए उस समय मौजूद लोग इस कार्य को करने वाले पंडित की आँखों पर पट्टी बांध देते हैं...(यह भी लोग मानते हैं)...
अधिकतर आप जब तीनों मूर्तियों की प्रतिकृति खरीदते हैं तो पायेंगे कि जगन्नाथ जी के पास एक स्तम्भ भी बनाया जाता हैं...यह स्तम्भ सुदर्शन चक्र का प्रतीक हैं...जगन्नाथ जी के मंदिर की शिखर पर आप एक चक्र लगा पायेंगे, उसी चक्र के प्रतीक के रूप में यह स्तम्भ इन मूर्तियों के साथ बनाया जाता हैं...
खैर, ओडिशा के अन्य पर्यटन स्थलों पर जल्दी ही जानकारियां जल्दी ही लिखूँगा
‐ ऋषभ भरावा