Lake City Nainital

Tripoto
Photo of Lake City Nainital 1/1 by Anshuman Chakrapani

Lake City Nainital

फरवरी के चिलचिलाते ठण्ड में हमारे घर में चर्चा गर्म थी – “गर्मियों की छुट्टियों में कहाँ जाया जाए???”

सब अपनी-अपनी राय बड़े उत्साह के साथ पेश कर रहे थे, आखिर मौज-मस्ती तो सबको करनी थी. कभी कन्याकुमारी और रामेश्वरम, तो कभी फिर से सिक्किम, कभी हिमाचल तो कभी ऐसे सी कुछ. अब आप सोच रहे होंगे ये लोग चिलचिलाते ठण्ड में गर्मियों की छुट्टियों की प्लानिंग क्यों कर रहे हैं? असल में हमारे यहाँ ट्रेन सीमित और ट्रेनों में भीड़ अत्यधिक है, तो कभी भी ट्रेन में आरक्षण जब आप चाहेंगे तब मिलेगी नहीं, रेलवे के चार महीने पहले आरक्षण करवाने की सुविधा भी दुविधा में डालने वाली है. आप भी अपनी प्लानिंग में हमेशा इस बात का ध्यान रखें, नहीं तो सिर्फ हाथ मलने के कुछ न मिलने वाला.

काफी सोच-विचार के बाद प्लान तैयार था नैनीताल का. डेस्टिनेशन हमें मिल चूका था, ट्रेन में आरक्षण की स्थिति और होटल के सर्वे करने में दो-तीन दिन निकल गए. हमारे यहाँ से सीधी ट्रेन की सुविधा थी नहीं. हमें पहली ट्रेन से भागलपुर से किउल और फिर दूसरी ट्रेन बदल कर काठगोदाम पहुंचना था, वहाँ से सड़क मार्ग से नैनीताल.

ट्रेन की स्थिति ऐसी थी कि मई की यात्रा के लिए फरवरी में ही वेटिंग. हमें चार सीट चाहिए थी, पर जून की पहली सप्ताह तक वेटिंग देखते-देखते कई बार मन में विचार आया कि प्लान कैंसिल कर दूँ, क्योंकि बच्चों के स्कूल से मार्च के अंत में डायरी मिलेगी जिसमें छुट्टियों का व्योरा होगा और तब तक सीटें रिग्रेट हो जाने वाली थी. फिर मैंने तुक्के में पिछले वर्ष जिस तिथि को बच्चों की छुट्टी हुई थी, उसी तिथि को आरक्षण करवा लिया. संयोग से यही एक तिथि थी, जब सीट उपलब्ध थी. अब जब तक बच्चों को स्कूल से नए सत्र की डायरी नहीं मिल जाती तब तक गहरा सुस्पेंस और थ्रिल बन गया.

होटल हमेशा अपनी डेस्टिनेशन पहुंचकर ही लेता रहा हूँ, पर पिछली गर्मियों में दार्जिलिंग और गंगटोक में होटलों ने जरूरत से ज्यादा ही जेबें काटी, तो इस बार फिर जेब न कट जाए पहले से सचेत था. कई सारे विकल्प कैम्प स्टे, भीमताल, भवाली और आसपास का विकल्प देख रहा था, जहाँ होटल सस्ते थे. खुशकिस्मती से नैनीताल में हमारे नियोक्ता का आलीशान गेस्टहाउस का पता चला, तो उसमें ही नियत समय में बुकिंग कर ली. पर वो भी आसान न था, सारी प्रोसेस ऑफलाइन और पुराने तौर-तरीके से हुई तो दो महीने लग गए ये बता चलने में कि हमें कमरा मिल भी रहा है या नहीं. खैर, अंत भला तो सब भला.

बच्चों की स्कूल डायरी मार्च के अंत में मिल चुकी थी और बस ये समझ लो उपरवाले ने लाज रख ली. जिस दिन रात को ट्रेन थी, वही स्कूल का आखरी दिन था और अगले दिन से गर्मियों की छुटियाँ शुरू हो रही थी. बाल-बाल बचे. यह यात्रा मैंने अलग तरीके से प्लान की थी. हर यात्रा में खूब भागा-भागी होती है, पर नैनीताल में हम सिर्फ खाकर अजगर और गैंडे की तरह पड़े रहने वाले थे, मतलब नैनीताल में – “मस्ती और सुस्ती के पांच दिन”.

बने रहिए, आपको बताएँगे, हमने पांच दिन अजगर और गैंडे की तरह कैसे बिताए.

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