
सद्गुरु ने 100 दिनों में 30,000 किलोमीटर अकेले मोटरसाइकिल से 25 देशों की यात्रा करने का प्रण लिया! यात्रा की शुरुआत 21 मार्च को जानेमाने शहर लंदन से शुरू हो कर कावेरी बेसिन में ख़त्म होगी। सुनने में कितना कूल लग रहा है ना कि एक गुरु ने बाइक से 30,000 किलोमीटर की यात्रा की! पर इस यात्रा के पीछे एक बहुत बड़ा मूवमेंट है 'सेव सॉइल मूवमेंट'। सद्गुरु भारत की बहुत बड़ी हस्ती है जिन्होंने इस मूवमेंट से पहले बहुत से विषयों पर बात की और उन पर काम कर उनको सुलझाने का प्रयास किया। पर सॉइल केवल भारत की ही समस्या नहीं थी जिसको आसानी से सुलझा लिया जाए, इसके लिए पूरे विश्व की ज़रूरत पड़ती। इसी कारणवश सद्गुरु ने यह असम्भव सी यात्रा शुरू की।

विश्व में इतनी सारी परेशानियाँ होने के बावजूद भी क्यों सदगुरू “सॉइल” को बचाने की बात कर रहे हैं? ऐसा क्या हुआ है कि सॉइल को बचाने की ज़रूरत पड़ गई? सॉइल ही क्यों? जब भी कोई “सेव सॉइल मूवमेंट” के बारे में सुनता है तो यही सब सवाल पूछता है! आसान शब्दों में बताया जाए तो सॉइल एक प्राकृतिक संसाधन है और किसी भी प्राकृतिक संसाधन को हद से ज़्यादा प्रयोग, उन संसाधन को नष्ट कर देता है। और सॉइल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। हम लोगों ने सॉइल को इतना ज़्यादा प्रयोग में लाया है कि विश्व भर में अब 52% मिट्टी उपजाऊ रही ही है। ऐसा ही रहा तो 2050 तक हम लोग कोई भी खाद्य पदार्थ उगाने के काबिल नहीं बचेंगे।

मिट्टी की गुणवत्ता इतनी ज्यादा ख़राब होती जा रहा है कि पिछले 20 साल के मुताबिक आज 40% से भी कम मात्रा में खाद्य पदार्थ उग रहे हैं। खाद्य पदार्थों में 90% न्यूट्रिएंट्स ख़त्म हो गए हैं। मिट्टी में इतनी जान न होने के कारण पानी की भी ज़्यादा ज़रूरत पड़ रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मिट्टी की गुणवत्ता कम होने से 27,000 चिड़ियों की प्रजातियाँ हर साल ख़त्म हो रही हैं। क्लाइमेट बहुत तेज़ी से चेंज हो रहा है।

इन सब समस्याओं को कोई एक देश हल नहीं कर सकता इसलिए सद्गुरु ने यह महायात्रा करने का प्रण लिया। अभी तक 74 देशों ने MOU पर हस्ताक्षर कर सॉइल को बचाने का प्रण लिया है जिसमें भारत भी शामिल है। भारत के 8 राज्य गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलेंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक इस मूवमेंट में भागीदार हैं। 5 जून को एक भाषण में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर मोदी जी ने भी ‘सेव सॉइल मूवमेंट’ को सपोर्ट किया। अभी तक किए गए यात्रा को सफल कहा जा सकता है या ऐसा कहा जाए की ये सफलता की पहली सीढ़ी है तो गलत नहीं।

'सेव सॉइल जर्नी' सद्गुरु ने शुरू तो अकेले की थी पर धीरे-धीरे सद्गुरु की यात्रा में हज़ारों लोग जुड़ गए। सद्गुरु का मानना है ये यात्रा केवल 100 दिन की नहीं, ये यात्रा सालों साल की है! ये 100 दिन तो केवल शुरुआत हैं! ‘मिट्टी बचाओ आंदोलन’ की शुरुआत 1977 में मध्यप्रदेश में तवा बान्ध के कारण जलभराव और लवणता के खिलाफ़ हुई थी। किसको पता था छोटे शहर में छोटे से आंदोलन से आज पूरा विश्व जुड़ेगा!
- अंकित
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