मैं देख रहा हूँ, कुछ दिनों मे मेरे कहानिया और सफर के अनुभव को पढ़ने वालों की संख्या बढ़ी हैं !
मुझे फॉलो करने वालो में कई और भी कुछ लोग शामिल हुए हैं !
नोटिफिकेशन जभी देखता हूँ, कुछ लोगो ने मेरे एक लेख को पढ़कर उस जगह पर जाने की इच्छा सूचि की भी हैं !
धन्यवाद आप सबका !
मुझे लिख कर बताया भी करें की मेरे लेख आपको कैसे लगते हैं !
आपका प्रोत्साहन चाहिए होगा मुझे ! ताके मैं और लिख पाऊं !
आज मैं आपको एक मेरे एक अनोखे अनुभव को सामने लाना चाहता हूँ !
आप तो जान ही गए होंगे की, मैं पहाड़ो के तरफ खींचा चला जाता हूँ !
ऐसे ही पहाड़ की और मैं और मेरा दोस्त एक सवेरे निकल पड़े !
पढाई उस के विषय में की नहीं थी ! बस ऐसे ही चल पड़े ! यह पहाड़ हर वक़्त हमें लोनावला जाते समय मिलते थे ! हमें उस की ओर आकर्षित करते !
इसीलिए मन को मनवा लिए ओर सोचा हाल चाल पूछ आये !
सवेरे घर से निकले लगभग ५ बजे ! और तुरंत पहुंच भी गए आहिस्ते बात चीत करते ! कई बार आ चुके थे इस रास्ते पर तो पता भी नहीं चला की कब आ गए !
पहाड़ी की तलहटी गांव तक आना ज़्यादा मेहनत का कार्य तो नहीं था ! क्यूंकि गांव मोरबे बाँध के कच्चे रास्ते से जुड़ा हुआ था और पास ही बसा हुआ है !
अगर आप एक अनुभवी ट्रैक्केर हैं तो मोरबे बाँध का नाम सुनते ही आपको संकेत हुआ होगा !
शायद आपके मन में उस पहाड़ का नाम उछला भी होगा !
मैं बात कर रहा हूँ - इरशलगढ़ की !
यह एक ऐसा पहाड़ हैं जो शायद छत्रपति शिवजी महाराज ने आस पास के इलाके पर नज़र रखने के लिए उपयोग किया हो !
क्यूंकि महाराज या किसी भी राजा ने, इस पर किसी भी तरह का बांध काम नहीं किया हैं !
हमने चलने की शुरुवात की ! ऊपर की ओर बढ़ने लगे !
हर कदम पर प्रकृति के दृश्य से, में तो चौक जाता !
कई समय तक हम फोटो खींचने में मग्न रहे !
एक तो जल्दी इतना जो आ गए थे ! थोड़ा समय बर्बाद तो किया ही जा सकता था !
मोरबे बाँध का चित्र !
आस पास उसकी खूबसूरती बढ़ाते हुए पेड़ ओर पौधे की बात ही कुछ और थी !
चडान पहली बार इतनी सौंदर्य से भरी हुई थी !
आवाज़ करती हवा, ऊपर काले बादल, निचे झील का पानी, पहाड़ो के पीछे से निकलते हुए सूरज की चमक, हलकी सी बारिश ! मैंने तो प्रकृति पंचरत्नों को एक साथ महसूस किया !
थोड़े भीगे, थोड़े हवा खायी !
लेकिन आगे जो था हमारा इंतज़ार करता हुआ ! उसकी तो अपेक्षा उत्साह के चलते की ही नहीं !
पहाडियो के कच्चे रास्ते से घूमते घुमाते, कीचड से लड़ते हुए !
हम दोनों का काफिला तो चलता रहा, कई देर तक !
बादल भी हटने लगे ! पहाड़ी की ऊँची छोटी तो पास दिखने भी लगी थी !
लेकिन उस तक पहुंचना और बाकी था !
इतने खूबसूरत दृश्य दिखाने के बाद, आखिर के लिए जो जादूगरी बचा के राखी थी ! उससे तो हमारा मिलाप होना बाकी था !
हम उस छोटी को देखते देखते आगे बढ़ते रहे ! की अब आएगा , अब आ जाएगा ! दोनों एक दुसरे को झूठे दिलासे देते चलते रहे !
परन्तु महाशय तो, हम पर ऊपर से देख कर हसने लगे ! इतना की हस्ते हस्ते रो पड़े !
आखिर कार हमें थोड़ा यकीं हुआ की हम तो पहुँच गए !
उसी वक़्त जो हवा चलायी, ऐसे जैसे की कोई हमें अपने घर के द्वार से भगा रहा हैं !
इतनी मेहनत के बाद ऐसा लगा की कोई हमारे आने से खुश बिलकुल भी नहीं था !
हवा इतनी ज़ोरो से चल रही थी, की हम दोनों को पत्थर का सहारा लेकर निचे रुकना पड़ा !
कई घंटो तक चलती रही !
ऐसा लग रहा था की हमें निचे ही जाना पड़ेगा ! लेकिन निचे जाना भी आसान नहीं था ! हवा हमें बहुत ही धक्के से निचे फेख रही थी !
डर लगने लगा की हम निचे गिर न जाए !
फिर हमने थाना की कुछ भी हो जाए लेकिन ऊपर तो पहुंचना हैं ! भले देरी हो तो हो !
हवा की तेज़ी में तो कोई कमी न हुई !
लेकिन एक अच्छी विचार आयी मेरी मन मे ! और हमने बैठकर आगे बढ़ने का सोचा !
बैठकर आगे बढ़ने लगे ! योजना काम भी आने लगी !
इतनी ज़िद्दी हवा तो मैंने नहीं देखी थी ! और वह भी मुंबई के पास !
बैठ बैठकर हम पहुंचे पहाड़ तक , आखिर कार !
देखिये खेल प्रकृति का,
जैसे पहुंचे वैसे ही हवा का चलना भी अचानक से बंद भी हो गया !
सब कुछ एक दम से शांत हो गया !
तभी मन मे बात पक्की हो गयी की, यह हवा हमें रोकने के लिए थी !
अच्छी और कीमती चीज़ो के लिए मेहनत करना पड़ता हैं !
और वो जो मेहनत हैं ! वही हमें सिखाती हैं उस चीज़ को सम्मान करना !
यह एक बहुत ही बढ़िया तरीका था प्रकृति का हमें, ज़िन्दगी के अहम् पाठ को पढ़ाना !
सादर,
बोनी जॉन