पर्वत से लघु धूलि.
धूलि सेपर्वत बन ,पल में साकार --
काल चक्र से चढ़ते गिरते,
पल में जलधर,फिर जलधार;
कभी हवा में महल बनाकर,
सेतु बाँधकर कभी अपार ,
हम विलीन हों जाते सहसा
विभव भूति ही से निस्सार ! --सुमित्रानंदन पंत
Day 1
पर्वत से लघु धूलि.
धूलि सेपर्वत बन ,पल में साकार --
काल चक्र से चढ़ते गिरते,
पल में जलधर,फिर जलधार;
कभी हवा में महल बनाकर,
सेतु बाँधकर कभी अपार ,
हम विलीन हों जाते सहसा
विभव भूति ही से निस्सार ! --सुमित्रानंदन पंत