मयोंग: भारत के जादू-टोने और काली विद्या की राजधानी है असम का ये गाँव

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असम की राजधानी गुवाहाटी से 45 कि.मी. दूर एक अजीब सी जगह है, नाम है मयोंग। हर साधारण गाँव की तरह मयोंग में भी आपको पहली नज़र में गाँव की आम ज़िंदगी दिखाई देगी – स्कूल से पैदल आते बच्चे, तालाबों से मछली पकड़ती औरतें और यहाँ-वहाँ भटकती भेड़-बकरियाँ। आपको यक़ीन ही नहीं आएगा कि कुछ वक्त पहले यह गाँव अपनी तंत्र विद्या और जादूगरी के लिए जाना जाता था। कहा जाता है कि यहाँ के तांत्रिक अपनी शक्तियों से समय को रोक सकते थे। आदमियों को जानवर में तब्दील करना और बाघों को हुक्म देना तो मानो आम बात थी। मयोंग नाम माया शब्द से बना है जो इस गाँव में होने वाली घटनाओं के सच या मिथ्या (जो भी आप उसे मान लें) का प्रतीक है।

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हर घर में है एक जादूई किस्सा

मयोंग में आप किसी भी घर में चले जाएँ, आपको कोई ना कोई अनोखी तिलिस्मी कहानी सुनने को मिल ही जाएगी। ये कहानियाँ मयोंग के इतिहास को ज़िंदा रखने कि कोशिश कर रही हैं। कई क़िस्से तो इतने मसालेदार मिलेंगे कि वे कपोल कल्पना या फिर किसी सस्ते उपन्यास का एक चैप्टर ही लगेंगी। पर इन्हीं कहानियों ने लोगों में लम्बे समय तक मायोंग के प्रति कौतुहल और डर बनाए रखा है।

सांस्कृतिक तौर पर मयोंग महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसे भारत में काले जादू का केंद्र माना जाता है। आपको ख़ुद ही यहाँ पर कुछ जादू-टोने देखने को मिल जाएँगे। कुछ मन्त्र और तरकीबें आपको हास्यास्पद भी लग सकती हैं जैसे साँप के काटने का इलाज, उल्टी-दस्त से निवारण इत्यादि। पर यह तो तय है कि आप यह समझ जाएँगे कि इस गाँव का इतिहास साधारण नहीं रहा होगा।

ऐसा माना जाता है कि तीस साल पहले तक भी तंत्र-मन्त्र का मयोंग में भारी प्रचलन था। हर घर में बेज नाम से बुलाया जाने वाला एक तांत्रिक होता था। पर जो मन्त्र उनको तब पता थे अब किसी को नहीं पता। अब सिर्फ़ बुज़ुर्गों ही बता पाते हैं कि उन्होंने ऐसी चीज़ें ख़ुद से होते देखी हैं और उन्होंने ही अपने बच्चों और नाती-पोतों को उन घटनाओं के बारे में बताया है। कई परिवारों के पास जादूगरी से सम्बंधित प्राचीन किताबें और दस्तावेज़ भी हैं पर वे बाहरी लोगों को उन्हें नहीं दिखाते। उनकी मान्यता है कि अजनबियों के सामने अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करने से वे कम हो जाती हैं। यहाँ की नई पीढ़ी का इस पर वैसे एक अलग नज़रिया है। कुछ रिसर्च में लगे हैं और पता लगा रहे हैं कि इन क़िस्सों-कहानियों में कितनी सच्चाई है और कई लोग मयोंग कि धरोहर को उसके पुरातात्विक मूल्य के लिए संजोना चाहते हैं।

कई लोगों ने यहाँ के रोग उपचारों को सीख लिया है। उनका मानना है कि पहले जब डॉक्टर या एलोपैथी का चलन नहीं था तब रोगों का निवारण मन्त्रों और जड़ी-बूटियों द्वारा ही किया जाता था। और ये विद्या खो ना जाए इसलिए वे उसे साधने कि कोशिश करने हैं। स्थानीय लोगों ने यहाँ एक संग्रहालय भी बना लिया है जहाँ पर उन्होंने पुराने दस्तावेज़ों और वस्तुओं को इकठ्ठा किया है जो समय कि मार, डकैती और आक्रमण से बच गए हैं। अगर आप पुरानी और अनजान चीज़ों के शौक़ीन हैं तो मयोंग के इस संग्रहालय में आपके देखने के लिए बहुत सारी ख़ास चीज़ें हैं।

मायोंग कैसे पहुँचें?

रोड से: मायोंग गुवाहाटी से 45 कि.मी. दूर है। आपको यहाँ के लिए टैक्सी और बसें मिल जाएँगी।

रेल से: अगर आप ट्रेन से जा रहे हैं तो गुवाहाटी या फिर जागिरोड रेलवे स्टेशन से मयोंग जा सकते हैं। जागिरोड से मायोंग 28 कि.मी. दूर है।

क्या देखें?

मयोंग संग्रहालय: यहाँ आपको तंत्र-मंत्र से जुड़ी चीज़ें, बलि चढ़ाने के लिए इस्तेमाल की गई तलवारें, कौड़ियाँ, मूर्तियाँ आदि देखने को मिलेंगी।

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ओल्ड मयोंग: इस पहाड़ी गाँव में कई और रहस्य छुपे हैं। यहाँ का क़रीब चार मीटर लम्बे पत्थर पर किया गया धार्मिक शिलालेख एशिया का सबसे बड़ा शिलालेख है। गाँव में आपको चारों तरफ शिव-पार्वती, गणेश, शिव लिंग इत्यादि की आकृति चट्टानों पर खुदी मिलेंगी।

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पोबित्रा वन्यजीव अभ्यारण्य: यहाँ आप एक सींग वाले गेंडे, हाथी, रिवर डॉलफिन और अनेक प्रकार के पक्षी देख सकते हैं। पोबित्रा को मिनी काज़ीरंगा के नाम से भी जाना जाता है।

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मयोंग पोबित्रा फ़ेस्टिवल: हर साल नवम्बर के महीने में तीन दिनों के लिए मयोंग और पोबित्रा के लोग अपनी सांस्कृतिक विविधता दिखने के लिए एक-जुट होते हैं। इसे मयोंग पोबित्रा फ़ेस्टिवल के नाम से जाना जाता है जहाँ पर आपको यहाँ के खान-पान और कला में सराबोर होने का मौक़ा मिलेगा।

कब जाएँ?

सितम्बर से फरवरी के बीच मायोंग जाएँ। तापमान खुशनुमा रहता है। हालाँकि दिसम्बर के आस-पास यहाँ सुबह गहरी धुंद हो सकती है।

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