
*सफर मत्स्यगंधा एक्सप्रेस का * : कोंकण रेलवे की यात्रा , प्रकृति से साक्षात् मिलन
बात वर्ष 2000 की थी जुलाई का महीना रहा होगा भोपाल में पदस्थ मित्र अवकाश लेकर उज्जैन आए स्थानीय मित्रों के साथ बैठकर तय हुआ की गोवा घूमने जाया जाए . हम मित्रों में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो गोवा के बारे में अधिक जानकारी रखता हो . मुझे भी इतना ही पता था कि गोवा जाने के लिए मुंबई तो जाना ही पड़ता है . लेकिन असल में पता नही था कि गोवा ट्रेन का कनेक्शन क्या है . तीनों चारों मित्र रेलवे स्टेशन के रिजर्वेशन काउंटर पर पहुंच गए . काउंटर पर जाकर बात कि और कहा कि भाई उज्जैन से मुंबई होते हुए गोवा जाना है , टिकट दे दीजिए.
काउंटर वाले भले मानुस ने बताया कि उज्जैन से गोवा की सीधी ट्रेन नहीं है. मुंबई से होकर कोंकण रूट लेकर गोवा पंहुचा जाएगा . पर्यटन के मामले में हम लोग तब कितने कच्चे थे . यह बात इसी से स्पष्ट हो जाएगी कि हम गोवा के वास्को का टिकट मांग रहे थे जबकि कोंकण रूट से होकर मडगांव जाना होता है . फिर जैसे-जैसे अवंतिका एक्सप्रेस से मुंबई और मुंबई से मडगांव का टिकट बुक करवाया . जाने का टिकट हो गया आने के बारे में सोचा वही जाकर तय करेंगे . दो दिन बाद हमारी ट्रेन थी ,आनन-फानन में तैयारियां कंप्लीट की .कम से कम सामान ले जाने की जुगत भिडाते हुए निश्चित तिथि पर अवंतिका एक्सप्रेस में बैठ गए . इंदौर से चलकर मुंबई सेंट्रल को जाने वाली अवंतिका एक्सप्रेस उज्जैन से 5:30 बजे शाम को निकलती है जो अगले दिन सुबह 8:00 बजे मुंबई सेंट्रल पहुंचाती है . रास्ते में रतलाम , बड़ोदरा ,सूरत ,वापी होते हुए मुंबई पहुंचते हैं . रतलाम पहुंचते-पहुंचते रात 8:00 बज जाती हैं . रतलाम से बड़ौदा के बीच में भोजन आदि से निवृत्त होकर सब लोग सो गए . सुबह मुंबई सेन्ट्रल पर उतरे . समूह का पहला दौरा था इसलिए इकोनामी करना आवश्यक था . मुंबई से हमारा रिजर्वेशन कोंकण रूट पर चलने वाली मत्स्यगंधा एक्सप्रेस से था . ट्रेन रात को 8 बजे थी और इसके लिए हमें लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर पहुंचना था . मुंबई सेन्ट्रल सुबह 8:00 बजे पहुंच गए थे और रात के 8 बजे तक का वक्त हमारे पास था . साथ में गए सभी लोग मुंबई पहले घूम चुके थे इसलिए वंहा घूमने का कोई आकर्षण नहीं था . साथ ही किसी होटल में रुक कर इंतजार करना और उस पर पैसे लगाना हम सब मित्रों की फितरत में नहीं था सो इसलिए मुंबई सेंट्रल के वेटिंग हॉल में जाकर सभी लोगों ने कामन बाथरूम में नहाना धोना किया . यहां की एक मजेदार बात आपसे शेयर करना चाहूँगा कि नहाने के लिए कुल छः लोग में से दो-दो एक साथ एक बाथरूम में घुस कर नहा लिए , लाइन में लगे लोग कुछ समझते इसके पहले दूसरा आदमी लाइन तोड अंदर घुस जाता था . स्नान वगैरह करके बाहर वडापाव का नाश्ता किया और लोकल ट्रेन से ही लोकमान्य तिलक टर्मिनस पहुंच गए .
मुंबई के टिकट चेकर आए दिन मुंबई पहुंचने वाले नए पंछियों की तुरंत पकड़ कर लेते हैं . कभी कभी मुंबई जाने वाला अमूमन हर यात्री एक गलती जरूर करता है. मुंबई सेंट्रल में एक साइड में जहां बड़ी लाइन के प्लेटफार्म है दूसरी तरफ लोकल ट्रेंस के लिए प्लेटफार्म है जब आप एक प्लेटफार्म से दूसरे लोकल ट्रेन वाले प्लेटफार्म पर शिफ्ट करते हैं और सोचते हैं कि दुसरे प्लेटफार्म पर जाकर लोकल का टिकट लेंगे तो इसी दौरान मुंबई रेलवे में कार्यरत चतुर टिकट चेकर ताड़ लेते हैं . पकड़े जाने पर अच्छा खासा जुर्माना कर के ही छोड़ते हैं . क्योंकि हममें से एक व्यक्ति पहले ही इस हादसे का शिकार हो चुका था इसलिए समझदारी से पहले ही टिकट कटवा लिया और लोकल ट्रेन से अपने निर्धारित लोकमान्य टर्मिनस पर पहुंच गए .
हम कोई दोपहर का 12 बजे लोकमान्य टर्मिनस पंहुचे . हमारी ट्रेन रात 8 बजे थी . रात 8 बजे तक क्या किया जाए. घूमना था नहीं , गोवा के टूर के लिए पैसे बचा कर रखना थे . इसलिए वंहा ज्यादा लग्जरी की भी गुंजाइश नहीं थी . साथी लोगों ने बेग अपने कंधों पर लादे और टर्मिनस के आखरी प्लेटफार्म जहां पर गाड़ियों की शंटिंग होती है , डिब्बे जोड़े जाते हैं दरी बिछा कर बैठ गए . कुछ लोग लेट गए और कुछ खाने पीने के साथ ताशबाजी करने लगे . ताश एक ऐसा खेल है चाहे बिना पैसे के खेलो या पैसे के समय उससे बहुत आसानी से कट जाता है . हालाँकि कि मेरी आज तक समझ में नहीं आया है कि जब हार जीत हजार दो हजार से ज्यादा नही होती है तो लोगों इतना मजा क्यों आता है . फिर भी भाई लोग तन्मयता के साथ ताश पत्ती खेलने में लग गए 6 में से 2 लोग ऐसे थे जो प्लेटफॉर्म्स पर यंहा वंहा घूम कर समय काटने में लगे रहे जैसे तैसे करके समय को शाम तक खींच कर लाए . बार-बार नोटिस बोर्ड पर जाकर मत्स्यगंधा एक्सप्रेस के बारे में देख आते. शाम का खाना हमने सब्जी पूड़ी प्लेटफार्म से ही लिया और सभी लोगों ने खा लिया . इधर बारिश भी शुरू हो गई थी . अगस्त का महीना था मुंबई की बारिश वैसे ही धुआंधार होती है . हमें लगा कहीं गलत समय में तो नही चले आए. यदि इसी तरह की बारिश गोवा में हुई तो कहां घूमने जायेंगे , क्या देखेंगे . तेज बारिश में उस समय कोंकण रेल रूट पर लैंड स्लाइडिंग हुआ करती थी . पत्थर गिर कर के रेलवे ट्रैक पर आ जाते थे . कोंकण रेलवे ताजा-ताजा बना ही था . इसलिए अधिकांश समय रेल गाड़ियां लेट चलती थी. उस दिन भी यही हुआ 8 बजे रात को आने वाली ट्रेन कोई 2 बजे रात पहुंची . हम लोग थक कर चूर हो चुके थे. सब अपनी अपनी सीट पकड़कर सो गए .
दिनभर यात्रा करने के इंतजार में थका दिया था . जैसे ही ट्रेन में बैठे , ट्रेन चली नींद लग गई । सोते वक्त कोंकण रेलवे के बारे में जितना पढ़ा लिखा था उसको लेकर कौतूहल तो था .लेकिन कुछ उम्मीद से ज्यादा अच्छा होने वाला है यह विचार मन में नहीं आया था . कोंकण रेलवे के बारे में जब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था , समय रहा होगा कोई19 90 से 95 के बीच का तब काफी कुछ पढ़ने को मिला . इसके बारे में की जाने वाली तैयारियों और कोंकण रूट को मूर्त रूप देने वाले इंजीनियर ई श्रीधरन के बारे में तत्कालीन समय में समाचार पत्रों में काफी छपा करता था . महाराष्ट्र कर्नाटका , गोवा इन तीन राज्यों के संयुक्त प्रयासों और केंद्र सरकार के नेतृत्व में कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन का गठन हुआ . इस रेलमार्ग के निर्माण में आने वाली समस्याओं से जूझते हुए किस तरह से इसका निर्माण हुआ . इसके बारे में काफी कुछ विस्तार से पढ़ चुका था . कोंकण रेलवे रूट की लंबाई 738 किलोमीटर है. यह महाराष्ट्र के रोहा से शुरू होकर कर्नाटक के थोकुर मेंगलुरु के निकट तक जाता है .निर्माण की प्रक्रिया से गुजर कर 26 जनवरी 1998 को इस मार्ग का उद्घाटन हुआ . कोंकण रेलवे रूट भारत का सबसे सुंदर और रोमांचकारी मार्ग है . निर्माण की दृष्टि से यह सबसे चुनौतीपूर्ण था . गहरी घाटियां, गगनचुंबी पहाड़ , सैकड़ों नदियाँ पर पुल निर्माण . पुल के नीचे हर-हराकर बहती नदिया , मार्ग निर्माण की अनेको चुनौतियां थी . ऊंचे पहाड़ों और गहराइयों के बीच कोंकण रेलवे में कुल 2000 पुलों का निर्माण किया गया .निर्माण के दौरान काम करने वाले 24 कर्मचारियों को इसमें अपने जीवन कि आहुति भी देना पड़ी. इस मार्ग में सबसे ऊंचा पुल पनवेल में बना है 64 मीटर ऊंचा और 424 मीटर लंबा । लंबाई में सर्वाधिक लंबा पुल शरावती नदी पर है जो 2.7 किलोमीटर लंबा है . रेल मार्ग में कुल 91 टनल है . इनमे में सबसे लंबी सुरंग कारबड़े सुरंग है जो 6 .5 किलोमीटर लम्बी है .
सुबह के कोई 8:00 बजे होंगे . अचानक से मत्स्यगंधा एक्सप्रेस झटके से रुक गई , नींद खुल गई .सोचा बाहर गेट पर जाकर देखा जाए क्या मामला है . जैसे ही दरवाजे पर पहुंचा प्रकृति का अनुपम उपहार सामने खड़ा था .दूर तक फैली ऊंची पहाड़ियां . बारिश के मौसम में बस छू लो इतनी ऊंचाई पर बादल पहाड़ों पर मंडराते हुए .दूर दूर तक फैली हरियाली अलौकिक दृश्य सामने था . मैंने अपने मित्रों को उठाया . वे जैसे ही उठे उन्होंने बाहर जाकर झांका सबके मन प्रफुल्लित हो उठे .अब सबने सोच लिया था कि कोंकण रूट की खूबसूरती देखने के लिए आगे सोना नहीं है . ट्रेन चल पड़ी स्टेशन चिपलून आ गया था . इस रूट पर आने वाले स्टेशनों में रत्नागिरी के अलावा कोई बड़ा नाम सामने नहीं आता है . पनवेल से ट्रेन जब छूटती है तब उसके बाद खेड , चिपलुन, संगमेश्वर रोड, रत्नागिरी, राजापुर रोड, वैभववाडी, सिंधुदुर्ग , सावंतवाड़ी रोड और फिर मडगांव गोवा आता है ।
हम लोगों ने सोचा नहीं था कि हम क्या करने जा रहे हैं । आने वाले 8 घंटों में प्रकृति हमसे किस रूप में मिलने जा रही है । प्रकृति के अनुपम रूप से साक्षात्कार होने जा रहे था । प्रकृति अपने विभिन्न रूपों में सदैव मन को मोहती रही है ।नया नया बना कोंकण रेल रूट और हमारा पर्यटक मित्रो का समूह दोनों ही एक अलग मूड में थे ।
हमने सोचा बिना पलक झपकाए जितना प्रकृति के सौंदर्य के नजारे आत्मसात कर सकें करते चलो । चिपलुन के आगे संगमेश्वर रोड है और उसके आगे किसी एक छोटे से स्टेशन का जाकर ट्रेन खड़ी हो गई ।बारिश का वक्त था लैंडस्लाइडिंग हो रही है । जगह जगह रुकते ट्रैन मन्थर गति से आगे बढ़ रही थी ।मत्स्यगंधा एक्सप्रेस एकदम से कहीं भी खड़ी हो जाती । यह पता नहीं लगता था कि ट्रैन कितनी देर खड़ी रहेगी . कभी जैसे रुकती वैसे ही चल देती और कभी आधा घंटा , 50 मिनट तक खड़े हो जाती । किसी अनाम से स्टेशन पर क्रॉसिंग होती थी तो भी ट्रेन रुकी रहती । इधर अगस्त के महीने में मानसून की बारिश कोंकण क्षेत्र में टूटकर हो रही थी । हरियाये धान के खेत , कभी हापुस आम के बगीचे , सुपारी ,नारियल के पेड़ दूर-दूर तक फैले जंगल तो कभी समुद्र का किनारा । दूर दूर तक बस्तियां नही ,कहीं कोई आदमी दिख जाए तो आप सौभाग्य समझिये । गोवा पहुंचने तक ट्रेन को कुल 71 टन पार करनी थी । दो हजार पुल है इस पूरे मार्ग पर । एक पुल से निकले तो दूसरी टनल में जाना है । बस गिनते जाइए । मानसून में पहाड़ी नदियां जिस तरह से उछल कर चल रही थी लगता था कोई प्रेयसी अपने प्रीतम से मिलने लोकलाज छोड़कर भाग रही है । थोड़ी थोड़ी दूर पर पहाड़ों से बहते मनोहारी झरने मानो आमंत्रित कर रहे थे ,मुझ संग खेलो ।
कोकण क्षेत्र की प्रकृति पूरे शबाब पर थी । ट्रेन कभी तेज तो कभी धीमे , कभी खड़ी होकर प्रकृति के रूप को प्रदर्शित करते हुए आगे बढ़ रही थी । भीगे मौसम का अपना अलग नशा होता है । बारिश में पहाड़ हो , हरियाली हो , धूप बिखरी हो झरने बह रहे हो तो बात ही कुछ और होती है। इन सब के साथ मत्स्यगंधा एक्सप्रेस अद्भुत दृश्यों का रसपान करवा रही थी । संगमेश्वर रोड स्टेशन के आगे ट्रैन थोड़ा आउटर पर खड़ी हो गई ।ताजा ताजा तराशे हुए पहाड़ के बीचो बीच ट्रेन खड़ी थी ।मौसम साफ था धूप निकल आई थी उमस हो रही थी । पहाड़ के पास से तेजी से पानी झरने के रूप में गिर रहा था। हमारे मित्र अंगद जी से नहीं रहा गया। गमछा लपेटा और उतर कर झरने में नहाने लग गए ।हमारी चिंता का विषय था कि स्टेशन नहीं है, ट्रेन क्यों रुकी है यह भी पता नहीं है , कितनी देर रुकेगी इसका भी अता पता नहीं ।भाई अच्छी खासी लगी में थे । गमछा पहना और नहाने उतर गए । कई बार हम मस्ती में अनजाने ही नियम के विपरीत काम करने लग जाते हैं .यंहा भी कुछ ऐसा ही था , मित्र मस्ती में आकर झरने में नहाने लग गए . वापस ट्रेन से जाना है यह बिना सोचे । जब तक उनका मन नहीं भरा तक नहाते रहे और खुद ही लौट के आए . . सकुशल लौटे उसके बाद भी 10 मिनट बाद ट्रेन चली . चिंता में केवल हम थे कहीं उनकी ट्रेन छूट न जाए . ट्रेन से यात्रा करते समय हमें कई तरह की सावधानियां बरतना चाहिए . हमारे पर्यटन समूह में कई लोग ऐसे हैं जो जहां ट्रेन रुकती है वहीं उतर कर टहलने लग जाते है . बिना बताए हवा खाने के लिए 100 की स्पीड से चलने वाली ट्रेन मैं दरवाजा खोलकर गुटखा थूकने चले जाते हैं । हम लोग निकलते हैं मस्ती के लिए , ऐसे में कोई दुर्घटना हो जाये तो सारा मजा किरकिरा हो सकता है। .इसलिए जब भी कहीं जाना हो तो स्वयं को अनुशासन की गाइडलाइन तैयार करके ले जाना चाहिए ।
मत्स्यगंधा एक्सप्रेस अपनी गति से आगे बढ़ रही थी दोपहर का कोई 2 बजा होगा एक टनल से निकले तो सामने जलप्रपात व् छोटा सा स्टेशन खड़ा था . ट्रेन प्रपात पर रुक गई . आँखों के सामने अलौकिक दृश्य था . मडगांव आने में कुछ देर थी . सावंतवाड़ी स्टेशन पर कुछ देर के लिए ट्रेन का स्टॉपेज हो गया । सामने से राजधानी एक्सप्रेस की क्रासिंग होना थी .राजधानी एक्सप्रेस 120 की गति से तेज भागती है . जिस स्टेशन से गुजरती है वह पूरा स्टेशन कांपने लगता है . ट्रेन गुजरते समय एक छोटे मोटे तूफान का अहसास करवाती है . ट्रेन रुकी तो हमारे मित्र प्रदीप सामने के स्टॉल पर बन रहे समोसे का मोह नहीं छोड़ पाए और उतर कर दूसरी ओर चले गए . हालाँकि वे गये मेरे लिए थे . राजधानी एक्सप्रेस की गति इतनी तेज होती है सामने से दूर दिखती है पर क्षण भर में पास आ जाती है . मित्र समोसे लेकर वापस ट्रेन की तरफ आने लगे . हमारी ट्रेन तीन पटरी क्रॉस करके खड़ी हुई थी. उनको यह डर भी था कि मत्स्यगंधा चल ना दे. इसी उहापोह में उन्होंने पटरी क्रॉस करने के लिए कदम आगे बढ़ा दिए. स्टेशन पर खड़े लोगों ने समझ लिया कि सवारी पटरी क्रॉस करना चाहती हैं . तभी राजधानी ठीक सामने आ रही थी . मित्र यदि आगे बढ़ गए होते तो वह हमारे बीच नहीं रहते , लोगों ने पकड़ कर खींच लिया . हम सब सकते में . क्या से क्या हो जाता एक मिनट के अन्तर से . सोचा कि यदि मित्र को पीछे नहीं खींचा गया होता तो क्या होता. बस उसकी कल्पना मात्र से रूह कांप गई .क्षण भर के लिए सभी लोग अनिष्ट की आशंका से कांप उठे . कुछ ही देर में घटना से उबर भी गये . लेकिन ऐसी घटना लंबे समय तक सबक दे जाती है. रेल यात्रा और रेल जितनी सुंदर लगती है उतनी ही लापरवाही करने से सख्ती से पेश आती है .कई लोगों को यहां वहां जान गवाते देखा जा सकता है . इसलिए यात्रा में यह गांठ बांध लेना चाहिए रेल के भी कुछ नियम होते हैं और उन नियमों का पालन करना ही चाहिए . रेल यात्रा हमारे मस्तिष्क पर छाई रहती हैं और हवाई यात्रा की तुलना में ज्यादा आनंददाई होती है . तो निकले रेल यात्रा पर ।
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*हरिशंकर


