1799 में जयपुर के महाराजा प्रताप सिंह ( पाठक संशय में न आयें यहां चित्तौड़ के महाराणा प्रताप की बात नहीं हो रही।) ने उस्ताद लाल चंद को एक महल का निर्माण करने का आदेश दिया। इस महल का मुख्य उद्देश्य रनिवास में रहने वाली शाही महिलाओं को बाजार और मुख्य मार्ग से गुजरने वाले उत्सव समारोह की रौनक दिखाना था। महाराजा प्रताप सिंह की भगवान कृष्ण में अनन्य श्रद्धा थी, इस कारण इस अद्भुत महल का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के मुकुट की बनावट जैसा बनाया गया। रनिवास की महिलाओं को वातानुकूलित अनुभव देने के लिए 900 के करीब छोटे बड़े झरोखे और 153 खिड़कियां बनाई गईं, बाहर से कोई अंदर न देख पाए इसलिए खिड़कियों के कांच की अन्दर की सतह रंगीन बनाई गई , किन्तु आप अंदर से बाहर स्पष्ट देख सकते हैं।
गुलाबी शहर के शानदार भवनों में हवामहल सबसे आकर्षक लगता है।
इस अनोखे भवन के निर्माण में सहायक सभी मजदूरों के परिश्रम को नमन करता हूं।
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