अगर आप जैसलमेर आए तो लोंगेवाला वॉर मेमोरियल जरूर देखने जाए।लोंगेवाला पोस्ट को एक ओपन वॉर मेमोरियल की तरह रखा गया है।
1971 की लड़ाई में पाकिस्तानियों ने भारत के वेस्टर्न रीजन पर सबसे पहले यही अटैक किया था और अपनी मुंह की खाई थी।
मेजर कुलदीप सिंह मेजर कुलदीप सिंह के नेतृत्व में कुछ 120 जवानों ने तीन हजार पाकिस्तानी टैंक रेजीमेंट को रोके रखा पूरी रात भर जब तक एयर फोर्स का सपोर्ट नहीं आया।
यह बात शायद आप लोगों को घर बैठे हैं यह ब्लॉग या बॉर्डर फिल्म देखकर ना समझ आए। एक बार यहां खुद आकर इस जगह को देखिए, आप महसूस करेंगे उन जवानों की ऊर्जा को जिन्होंने इस मातृभूमि की रक्षा के लिए उस वक्त और आज भी कर रहे हैं।
मैं लगभग यहां दोबारा ढाई साल बाद आया हूं। सच बताऊं तो उस वक्त भी रोंगटे खड़े हुए थे और आज भी।
यह पोस्ट लगभग 20 से 25 किलोमीटर दूर है बॉर्डर से, आप समझ रहे हैं ना मतलब इतनी अंदर तक पाकिस्तानी फोर्सेस आ गई थी।और मेजर कुलदीप सिंह और बाकी के अफसरों की सूझबूझ से यहां एंटी टैंक माइंस बिछा दी गई थी। जिससे कुछ पाकिस्तानी टैंक उड़ाई भी गए थे। यह माइंस आज भी यही बिछी हुई है और यहां बैरियर लगे हुए हैं कि यहां से पार ना जाए।
थोड़ा और गौर करें तो आप देखिएगा कि किस तरह एक्टिवली फौज काम करती है। यहां रेत में कुछ ऐसी नाली बनाई गई हुई है जिसमें हमारे जवान डटे रहे होंगे और यह नाली दूर ऊपर तक जाती है।
कुछ बनकर से बनाए गए होंगे उस वक्त उनका नमूना यहां पर इस ओपन म्यूजियम में रखा हुआ है।
बॉर्डर फिल्म काफी हद तक इस लड़ाई को जस्टिफाई करती हुई पाई मैंने। जरूर देखिएगा उस पिक्चर को।
अगर मैं ढाई साल पहले से कंपेयर करूं तो यह जगह काफी डेवलप कर दी गई है| जब हम लोग यहां पर आए थे तो ज्यादा लोग नहीं दिखे मुझे । शायद Corona Pandemic की वजह से।
यहां कब आए
यहां सही आने का समय सर्दियों का है मतलब नवंबर और मार्च के बीच में |
यहां कैसे पहुंचे हैं
लोंगेवाला वॉर मेमोरियल 120 किलोमीटर दूर है जैसलमेर से। नजदीकी हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, सब जैसलमेर में है। जैसलमेर से आप यहां आने के लिए प्राइवेट टैक्सी कर सकते हैं या आप बस से भी आ सकते हैं।
आशा करता हूं कि यह blog आपको पसंद आया होगा। फिर आऊंगा एक नई डेस्टिनेशन के साथ।तब तक के लिए इजाजत चाहता हूं| ईश्वर आपको खुश रखे स्वस्थ रखे।