उत्तराखंड का वो गाँव, जहां हनुमान जी का नाम लेना सख्त मना है।

Tripoto
2nd Mar 2021
Photo of उत्तराखंड का वो गाँव, जहां हनुमान जी का नाम लेना सख्त मना है। by Prince Verma

हमारे भारत वर्ष को हमेशा से रहस्यों से भरा देश माना गया है। ऐसे कई स्थान है जो अपनी रोचक विशेषता बनाकर रखे हुए है। उत्तराखंड राज्य को देवभूमि कहा जाता है, यहां की हर जगह को लोग पवित्र मानते है। हमारे हिन्दू धर्म में हनुमान जी को प्रमुखत: से पूजा जाता है, पूरे भारत वर्ष में अनेकों मंदिर है।

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लेकिन उत्तराखंड के एक गांव में क्या कारण है कि लोग हनुमान जी से इतने नाराज है, कि वहां उनकी तस्वीर तक नहीं ले जाने देते है। दोस्तों इस गांव का नाम है द्रोणागिरी गांव।

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द्रोणागिरी कैसे पहुँचे:

उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ से मलारी की ओर जाते हुए लगभग 50 किलोमीटर आगे एक जुम्मा नाम की एक जगह पड़ती है. यहीं से द्रोणागिरी गांव जाने के लिए पैदल रास्ता शुरू हो जाता है. यहां धौली गंगा नदी पर बने पुल के दूसरी तरफ सीधी खड़ी पर्वत श्रृंखला दिखाई पड़ती है, उसे पार करने के बाद ही द्रोणागिरी तक पहुँचते है। संकरी पहाड़ी पगडंडियों वाला तकरीबन दस किलोमीटर का यह पैदल रास्ता काफी कठिन लेकिन, बहुत रोमांचकारी है। द्रोणागिरी गांव से ऊपर बागिनी, ऋषि पर्वत और नंदी कुंड जैसे कुछ चर्चित स्थल भी हैं जहां गर्मियों में काफी ट्रेकर्स पहुंचते हैं। जाहिर सी बात है कि सर्दियों में ये स्थान लोगों की पहुंच से बिलकुल दूर हो जाते हैं।

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छह महीनों तक वीरान रहे गांव में जब लोग वापस आते हैं तो सबसे पहले यहां एक अनुष्ठान किया जाता है स्थानीय लोग इसे रगोसा कहा जाता है। गांव के लोगों का मानना है कि जब लंबे समय तक घर खाली रहते हैं तो उनमें नकारात्मक शक्तियां निवास हो जाता है। इसीलिए रगोसा के जरिये पूरे गांव का शुद्धिकरण किया जाता है। रगोसा में सार्वजानिक अनुष्ठान के बाद गांव के चारों तरफ कुछ अभिमंत्रित कीलें ठोक दी जाती हैं। गांव के लोग मानते हैं कि ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियां गांव में दाखिल नहीं होतीं। परंपरा पुरानी है और लोगों की स्मृति में काफी गहरी पैठ बनाई हुई है।

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गांव में क्या है खास:

द्रोणागिरी नीति घाटी में ही बसा एक बेहद खूबसूरत गांव है। इस गांव की कई खूबियां हैं, इनमें से एक यह भी है कि यह गांव साल में सिर्फ छह महीने ही आबाद होता है। लेकिन जब आबाद होता है तब यह कमाल लगता है। नीति घाटी में मुख्यतः भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं। द्रोणागिरी भी भोटिया जनजाति के लोगों का ही एक बसा हुआ गांव है। लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस गांव में करीब सौ परिवार रहते हैं। सर्दियों में द्रोणागिरी इस कदर बर्फ में ढक जाता है कि यहां रह पाना असंभव हो जाता। लिहाजा अक्टूबर के दूसरे-तीसरे हफ्ते तक सभी गांव वाले चमोली शहर के आस-पास बसे अपने अन्य गांवों में लौट जाते हैं। मई में जब बर्फ पिघल जाती है, तब एक बार फिर से द्रौणागिरी आबाद होता है।

छह महीनों तक वीरान रहे गांव में जब लोग वापस आते हैं तो सबसे पहले यहां एक अनुष्ठान किया जाता है स्थानीय लोग इसे रगोसा कहा जाता है। गांव के लोगों का मानना है कि जब लंबे समय तक घर खाली रहते हैं तो उनमें नकारात्मक शक्तियां निवास हो जाता है। इसीलिए रगोसा के जरिये पूरे गांव का शुद्धिकरण किया जाता है। रगोसा में सार्वजानिक अनुष्ठान के बाद गांव के चारों तरफ कुछ अभिमंत्रित कीलें ठोक दी जाती हैं। गांव के लोग मानते हैं कि ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियां गांव में दाखिल नहीं होतीं। परंपरा पुरानी है और लोगों की स्मृति में काफी गहरी पैठ बनाई हुई है।

गांव वालों के वापस लौटने पर यहां पारंपरिक खेती बाड़ी का काम फिर से शुरू हो जाता है इतनी ऊंचाई पर ज्यादा फसलें नहीं होती लेकिन रोजमर्रा के खाने का इंतजाम हो जाता है। जड़ी-बूटियों और मसालों के लिए तो द्रोणागिरी विशेष तौर से जाना जाता है। यहाँ फरन,जम्मू, काला जीरा, चोरू, कुटकी, अतीस, कूट जैसी कई बूटियां और मसाले भी यहां पैदा होते हैं. इनमें से कई तो खेती करके उगाए जाते हैं लेकिन कुछ स्वतः प्राकृतिक रूप से उगते है।

समय ने द्रोणागिरी को भी बदला है, गांव के लोग बताते हैं कि पहले उनका मुख्य काम तिब्बत से व्यापार करना था। भोटिया जनजाति के इन सभी लोगों के पास पहले सैकड़ों बकरियां, खच्चर और घोड़े हुआ करते थे। इन्हीं जानवरों की मदद से ये लोग नीति दर्रा पार करते हुए तिब्बत में दाखिल हो जाया करते थे। लेकिन बीते कई सालों से इस व्यापार को बंद कर दिया गया है। लिहाजा अब द्रोणागिरी के लोग लगभग पूरी तरह से प्रकृति पर ही निर्भर हो गए हैं.

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कीड़ा जड़ी एक रहस्यमयी बूटी:

कीड़ा जड़ी को यहां का खजाना कहा जाए तो गलत नहीं होगा। जिसकी खोज गांव वाले हर साल किया करते हैं और इसका कुछ लोगों को यह हासिल भी हो जाता हैं। कीड़ा जड़ी एक ऐसी जड़ी-बूटी है जिसके लिए माना डाता है कि यह यौन शक्ति बढ़ाने का काम करती है। आकार में कीड़े जैसी होने की वजह इसे स्थानीय भाषा में कीड़ा जड़ी कहते हैं. इसका मूल्य अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 16-20 लाख रु. प्रति किलोग्राम तक है। चीन, हांगकांग, कोरिया व ताईवान के अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कीड़ा जड़ी का व्यापारिक नाम यारसा गंबू है। यहां के लोगों को कीड़ा जड़ी के बारे में सिर्फ 15-16 साल पहले ही मालूम हुआ है। इससे पहले न तो यहां के लोग कीड़ा जड़ी के बारे में जानते थे और न ही इसकी उपयोगिता को समझते थे। असल में खेती ज्यादा नहीं हो पाती इसलिए यहां के लोगों के लिए कीड़ा जड़ी वरदान बनकर आई है। एक दिन में एक ग्रामीण आम तौर पर 5-7 से 30-40 तक की संख्या में इसका संग्रह कर लेता है। बताते हैं कि एक सीजन में किसी व्यक्ति को इससे दो से लेकर छह लाख रुपए तक की आय हो सकती है।

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आखिर क्यों है हनुमान जी से नाराज:

गांव में हनुमान जी की पूजा कभी नहीं होती, गांव के लोग हनुमान जी बहुत नाराज़ होते है। और उनके पास इसका कारण है, द्रोणागिरी गांव के लोग ‘पर्वत देवता’ को अपना आराध्य मानते हैं और यहां सबसे बड़ी पूजा अर्चना द्रोणागिरी पर्वत की जाती है। यह वही द्रोणागिरी पर्वत है जिसको रामायण में संजीवनी बूटी के संदर्भ में बताया गया है। मान्यता है कि रामायण काल में जब लक्ष्मण मूर्च्छित हुए थे तो हनुमान संजीवनी बूटी लेने द्रोणागिरी ही आए थे और जब उन्हें समझ में नहीं आया कि यह बूटी है कौन सी तो वे इस पर्वत का एक हिस्सा ही उखाड़ कर ले गए थे. गांव के लोग मानते हैं कि हनुमान उस समय उनके द्रोणागिरी पर्वत देवता की दाहिनी भुजा उखाड़ कर ले गए थे। तब से वो हनुमान जी से नाराज रहते है।

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