पारिवारिक समस्याओं से परेशान, मैं एक ज्योतिषी के पास पहुंच गया उपाय के लिए । उन्होंने कहा महाकाल के दर्शन करो। और मैं दोस्तो के साथ प्लान बनाने बैठ गया। शिवरात्रि पर जाने का कार्यक्रम बना। दोस्त गया टिकट लेने !! लेके आया गोंडा से बढ़नी का टिकट !! मैने पूछा ये क्या है बोला ..? भोलेनाथ के ही तो दर्शन करने है, महाकाल के करो चाहे पशुपतिनाथ के ??
मैने सोचा ये भी भोलेनाथ की महिमा है ।
शायद विदेश यात्रा करवाना चाहते हैं।
10 लोगो का टिकट था, जाने के दिन 7 बचे । फिर क्या निकल लिए गोंडा स्टेशन के लिए । समय से पहुंच तो गए लेकिन बातों बातों में ट्रैन मिस कर दिए। फिर मित्र के फूफा जी ने दूसरे ट्रैन में TTE से जुगाड़ करके सबको बढ़नी तक पहुंचाया। रात 9 बजे बढ़नी बॉर्डर पार कर लिया, प्राउड फील हुआ की विदेश आ गया।
काठमांडू की बस पता की तो मालूम हुआ, सुबह 6 बजे जायेगी । फिर पास में ही होटल लेके स्टे किये । मिलते है अगले दिन......
सुबह 4 बजे बस के पास पहुंचे तो देखा आगे की सारी सीटे फुल हो गई। मरता क्या न करता, टिकट ली, पैसे एक्सचेंज करवाए और नेपाल की 1 sim ली। और सफ़र शुरू.......
बुटवल के पास पहली बार पहाड़ के दर्शन हुए । नारायणी नदी के आगे धीरे धीरे पहाड़ी रास्तों पर गोल गोल घूमते हुए रात 8 बजे काठमांडू पहुंचे। झमाझम बारिश ने हमारा स्वागत किया । मंदिर के लिए फिर बस पकड़ी और पहुंच गए पशुपतिनाथ जी के शरण में। गूगल बाबा के बताए धर्मशाला पहुंचे तो वहां शिवरात्रि की वजह से जगह नहीं मिली। फिर पास में होटल लिया । स्टाफ ने पूछा खाना यहीं खाओगे ?? हमने पूछा नॉनवेज मिलेगा ??? बोले हां !! हमने कहा फिर नहीं खाएंगे। और निकल लिए शुद्ध शाकाहारी खाने के तलाश में ...आगे जा कर 1 मारवाड़ी रेस्टोरेंट मिला। 4 बार अलग अलग लोगों ने घुमा फिरा कर कन्फर्म किया, फिर खाना खाया । क्या करें भाई शुद्ध शाकाहारी जो ठहरे।
सुबह 4 बजे का अलार्म सेट था, और उठ गए हम 3 बजे ही। नहा धोकर 4 बजे 2 km लम्बी लाईन में लग गए । वो भी नंगे पांव। कांवड़ न सही लेकिन श्रद्धा में कमी नहीं थी, शिवरात्रि के पावन पर्व पर भोलेनाथ के दर्शन का उत्साह चरम पर था। इसलिए तो आए थे इतनी दूर। हर हर महादेव के उदघोष से पूरा मंदिर प्रांगण गूंज रहा था। कभी लगा ही नहीं हम विदेश में है। सुबह 10 बजे पशुपतिनाथ जी ने दर्शन दिए। आने का उद्देश्य सफ़ल हुआ। 12 बजे गूगल बाबा के बताए धर्मशाला में आयोजित भंडारे में प्रशाद ग्रहण किए। पूड़ी सब्जी नुक्ति (मिठाई) और नेपाल का राष्ट्रीय भोजन दाल -भात।
आत्मा तृप्त हुई।
फिर यात्रा आरम्भ हुई पोखरा की
छोटी बस में सीट बुक करके निकल लिए पोखरा के लिए...
प्राकृतिक नजारो का लुत्फ उठाते हुए,
रात 10 बजे हम पोखरा पहुंचे।
होटल में बैग रख कर यात्रा शुरू हुई शुद्ध शाकाहारी भोजनालय तलाशने की।
3 km वॉक करके हम सफल हुए मारवाड़ी भोजनालय को ढूंढने में । पेट पूजा करके आज की यात्रा सफ़ल हुई
(मोबाइल मंदिर में नहीं ले गए थे इसलिए मंदिर की फोटो नहीं है।)
सुबह 6 बजे आंख खुली और नहा धोकर रूम से बाहर निकल के पहली बार नेपाली चाय का आनंद लिया। पोखरा की सुबह को निहार ही रहे थे की ऊपर निगाह गई !! और अन्नपूर्णा की सुनहरी चोटियों को देख कर हम हतप्रभ रह गए। पहली बार पर्वतों से मोहब्बत हुई, ये दृश्य देख कर। और यही वो क्षण है जब मुझे घुमक्कड़ी का चस्का लगा....
फिर लोकल बस पकड़ कर
फेवा झील के लिए चल दिए और आगे जा कर डेविस फॉल (झरना) देखा। जहां पानी की 1 बूंद नहीं थी 😁😁😁
पास में गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में गए जहां धरती के अंदर प्राकृतिक गुफा में भोलेनाथ विराजमान थे। और फिर पहुंचे फेवा झील। फ़ोटो शूट किया
और निकल लिए घर के लिए वापस भारत
हमारा देश
दोपहर 1 बजे बस पकड़े ।
अगले दिन सुबह 5 बजे बढ़नी बॉर्डर पार करके भारत में आगमन हुआ। सुबह 10 बजे अपने घर ।
रास्ते में कहीं खाना नहीं खाया। वजह .....आप तो जानते होंगे ।
शुद्ध शाकाहारी
आप सभी का धन्यवाद