Ram Raja Mandir 1/undefined by Tripoto
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4 out of 15 attractions in Orchha

Ram Raja Mandir

ओरछा (राम राजा सरकार)ओरछा की कहानी बहुत दिलचस्प है! ये कहानी इतिहास और आस्था के मध्य पुल की तरह बयां होती है! अयोध्या पर बाबर का हमला होने पर राम भक्तों को यह चिंता हुई कि इस आक्रमण से प्रभु की पवित्रता को कैसे सुरक्षित रखे? तभी उन्हें ये खयाल आया कि मध्यप्रदेश में ओरछा जो प्राकृतिक दृष्टि से प्रभु श्रीराम के लिये सुरक्षित और पवित्र स्थान है सही रहेगा! क्योंकि ओरछा के राजा औ रानी वैष्णव संप्रदाय को मानते थे और विष्णू के उपाशक् थे! एक दिलचस्प कहानी और है! राजा और रानी दोनों ही भगवान के भक्त थे! राजा कृष्ण भक्त थे और रानी श्रीराम की भक्त थी! राजा ने एक भव्य मंदिर निर्माण योजना बनाई! रानी ने अपने प्रभु श्रीराम के लिए मंदिर बनवाने की बात राजा से कही, जबकि राजा का मन था की मंदिर में कृष्ण की मूर्ति रखी जाये! लेकिन राजा रानी की बात भी नहीं काट सकते थे, तो उन्होंने रानी से कहा कि अगर वो अपने प्रभु श्रीराम को अयोध्या से लेकर आ जाएं तो मंदिर में उन्हीं की स्थापना कर दी जायेगी! रानी ने राजा की ये शर्त मान ली और अपने प्रभु को साथ लाने के लिये अयोध्या निकल पड़ीं! अयोध्या पहुँच कर रानी ने प्रभु से विनती की परंतु उन्हें प्रभु श्रीराम का कोई इशारा नहीं मिला तो वो सरयू नदी में आत्मदाह करने के लिये उतर गयीं! रानी जब डूबने ही वाली थी तभी भविष्य वाणी हुई और रानी के हाथ में प्रभु श्रीराम की मूर्ति आ गई लेकिन भविष्यवाणी मे एक शर्त थी कि पहली बार रानी इस प्रतिमा को जहाँ रख देंगी वहीं इसकी स्थापना हो जायेगी! रानी खुशी खुशी ओरछा की तरफ चल पड़ी! पुरानी किवदंती है कि जब प्रभु श्रीराम को लेकर रानी ओरछा आयीं तब नीम के पेड़ पर जो फूल होते हैं वे स्वर्ण मे बदल गये और उन स्वर्ण के फूलों की वर्षा हुई! रानी जब महल पहुचीं तब रात हो चुकी थी तो रानी ने सोचा कि राजा को यह खुशखबरी सुबह दूंगी! खुशी के मारे रानी भविष्यवाणी की चेतावनी भूल गयीं और मूर्ति को रसोईघर मे रख दिया (क्योंकि रसोई महिलाओं का सबसे पसंदीदा स्थान होता है)! आज भी प्रभु श्रीराम की मूर्ति महल के रसोईघर मे ही स्थापित है! उधर राजा जो मंदिर बनवा रहे थे वह खंडहर बन गया! दोनों कहानियों को मिलाया जाए तो (बाबर द्वारा अयोध्या आक्रमण और राजा- रानी की मंदिर के लिये शर्त) यह कहा जा सकता है कि ओरछा मे राम राजा सरकार की स्थापना की कहानी इतिहास और आस्था के मध्य पुल की तरह है!ओरछा मे राम दरबार के साथ ही और भी बहुत सी चीजें हैं!राजा का महलजहाँगीर का महलबेतवा नदी का तट
Ram Raja TempleRam Raja Temple is devoted to Lord RamJi. The Holy Temple has Marvellous Construction with a Marble made Courtyard & Coloured Walls. The Temple holds an Enthralling Religious Importance.
Afsarul haq
भगवान श्रीराम का ओरछा में ४०० वर्ष पूर्व राज्याभिषेक हुआ था और उसके बाद से आज तक यहां भगवान श्रीराम को राजा के रुप में पूजा जाता है। यह पूरी दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है।एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी राम भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। क्रोध में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपनेराम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ से दृढतर होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए। अंतत: वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पडी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए। रानी ने उन्हें अपना मंतव्य बताया। रामराजा ने ओरछा चलना स्वीकार किया किन्तु उन्होंने तीन शतर्ें रखीं- पहली, यह यात्रा पैदल होगी, दूसरी- यात्रा केवल पुष्प नक्षत्र में होगी, तीसरी- रामराजा की मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी वहां से पुन: नहीं उठेगी।रानी ने राजा को संदेश भेजा कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं। राजा मधुकरशाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए करोडों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुर्हूत में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया। कहते हैं कि राम यहां बाल रूप में आए और अपनी मां का महल छोडकर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे। राम आज भी इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोडों का चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान पडा है। यह मंदिर आज भी मूर्ति विहीन है।यह भी एक संयोग है कि जिस संवत 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ। जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं। जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति गणेशकुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी। यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं। रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। छडदारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं। ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर , राजामहल, रायप्रवीण महल, हरदौल की बैठक, हरदौल की समाधि, जहांगीर महल और उसकी चित्रकारी प्रमुख है। ओरछा झांसी से मात्र 15 किमी. की दूरी पर है। झांसी देश की प्रमुख रेलवे लाइनों से जुडा है। पर्यटकों के लिए झांसी और ओरछा में शानदार आवासगृह बने हैं।राय प्रवीन महल