यात्राओं पर जाना आसान नहीं होता है। प्लान करने से लेकर यात्रा से वापस आने का समय सबसे हसीन समय होता है और बीच में होते हैं वो ख़ास लम्हें जो आपके यादों के संदूक में हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं। ऐसे पलों को जीने के लिए ज़्यादातर लोग पहाड़ों की तरफ़ जाते हैं और पहाड़ों का ज़िक्र होते ही सबसे पहले मन में हिमाचल का खयाल आता है। यहाँ पहाड़ हैं, वादियों का सुकून है, नदियाँ हैं और सर्दियों में दूर तक फैली बर्फ़ है। गर्मियों में ये जगह हरियाली से लहलहा उठती है। फूलों से भरे मैदान और यहाँ का सुहाना मौसम हर किसी का मन मोह लेता है। ये वो जगह है जहाँ ज़िन्दगी की रफ़्तार भी थोड़ी सुस्त पड़ जाती है। हिमाचल में ऐसे बहुत से गाँव हैं जहाँ आप स्लो ट्रैवल का मज़ा ले सकते हैं और ऐसी ही एक जगह है लाहौल।
लाहौल घाटी के बारे में
अगर आप लाहौल और स्पीति को एक जैसा समझते हैं तो बता दें लाहौल और स्पीति भारत और तिब्बत पर बसी दो अलग घाटियाँ हैं। स्पीति का ज़्यादातर हिस्सा ठंडे और बंजर मैदानों से बना हुआ है और लाहौल में हरियाली देखने को मिलती है। स्पीति घाटी के मुकाबले लाहौल काफ़ी विकसित इलाका है। लाहौल और स्पीति दोनों ही ट्रेकिंग करने के लिए बढ़िया जगहें हैं। लेकिन अगर आप प्राकृतिक सौंदर्य से रूबरू होना चाहते हैं तो आपको लाहौल आना चाहिए। लाहौल में दर्शनीय स्थलों का भंडार है। जिस तरफ़ भी देख लें हर तरफ़ खूबसूरती ही नज़र आएगी। ग्लेशियर से घिरी झीलें, छोटे बड़े पहाड़ों की चोटियाँ, ठंडी हवा ये सब लाहौल को घुमक्कड़ों के लिए परफ़ेक्ट जगह बनाते हैं।
कैसे जाएँ?
लेह लद्दाख की तरह स्पीति और लाहौल के लिए सीधी बसें या फ़्लाइट नहीं हैं इसलिए आपको बस या टैक्सी लेकर ही आना होता है। दिल्ली से लाहौल जाने के लिए दो रास्ते हैं। पहला आप मनाली के रास्ते लाहौल आ सकते हैं। दूसरा शिमला से होते हुए भी लाहौल पहुँचा जा सकता है।
बस से: अगर आप बस से लाहौल आना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको मनाली या शिमला आना होगा। अगर आप मनाली वाला रास्ता लेते हैं तो आपको रोहतांग पास से होते हुए चंद्रताल झील को पर करते हुए कुंजुम पास आना होता है जहाँ से फिर लाहौल आया जा सकता है। दूसरी तरफ़ शिमला वाले रास्ते में सांगला, नको, तबो और काज़ा को पार करना होता है। दोनों ही रास्ते बेहद खूबसूरत हैं और दोनों के लिए आपको जगह-जगह पर बसें बदलनी पड़ती हैं।
फ़्लाइट से: भुंतर एयरपोर्ट सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है। बड़े शहर जैसे दिल्ली, चंडीगढ़ से यहाँ के लिए फ़्लाइट आसानी से मिल जाएगी। हालांकि ज़्यादातर फ़्लाइट एयर इंडिया की ही मिलेंगी। ये एयरपोर्ट मनाली से 40 किमी. दूर है और इस सफ़र को तय करने में कुल 6 घंटों का समय लग जाता है।
ट्रेन से: ऊँचाई पर होने की वजह से लाहौल तो क्या उसके आस पास भी कोई स्टेशन नहीं है। सबसे नज़दीकी स्टेशन चंडीगढ़ है जहाँ से आप शिमला के रास्ते लाहौल पहुँच सकते हैं। इसके अलावा अगर आप चाहें तो सीधे ट्रेन लेकर शिमला या जोगिंदर नगर स्टेशन भी पहुँच सकते हैं।
क्या देखें?
1. अटल टनल
अगर आप मनाली के रास्ते लाहौल आ रहे हैं तो आप अटल टनल से भी लाहौल पहुँच सकते हैं। लाहौल घाटी में कड़ाके की ठंड पड़ती है और ऐसे में यहाँ कई फुट बर्फ़ जम जाती है। लेकिन इस सुरंग के बनने के बाद अब ऐसा नहीं होगा। समुद्र तल से 10000 फुट की ऊँचाई पर बनी ये सुरंग दुनिया की सबसे लंबी हाईवे टनल है। इस टनल की कुल लंबाई 9.02 किमी. है और पर्यटन और व्यापार के नज़रिए से ये बेहद ख़ास है। टनल में सभी तरह की मॉडर्न सुविधाएँ हैं और हर थोड़ी दूर पर कैमरे भी लगाए गए हैं।
इस सुरंग की सुरक्षा को लेकर काफी हाइटेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है जिसमें फायर कंट्रोल की चीज़ें शामिल हैं। इस सुरंग के बनने के बाद मनाली से लेह के बीच सड़क की दूरी 46 किमी. कम हो गई है जिसकी वजह से अब लेह पहुँचने में 4 से 5 घंटों का समय कम लगेगा। इस सुरंग में 2 पोर्टल हैं। इसका साउथ पोर्टल मनाली से 25 किमी. दूर है और इसका नॉर्थ पोर्टल लाहौल घाटी के गाँव के पास है। टनल बेहद खूबसूरत है और इससे निकलते ही आपको लाहौल घाटी का मोहक नज़ारा दिखाई देता है।
2. सिस्सू
सिस्सू एक छोटा सा गाँव है जो चन्द्र नदी के दाहिने किनारे पर स्तिथ है। 3130 मीटर की ऊँचाई पर बसा ये गाँव छोटा ज़रूर है लेकिन ये इतना सुन्दर है कि इसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी। इस गाँव तक जाने वाली सड़क के दोनों तरफ़ विलो और पॉपलर के पेड़ हैं। गर्मियों के मौसम में ये पेड़ इतने घने हो जाते हैं कि कुछ जगहों पर सूरज की रोशनी भी नहीं पहुँच पाती है।
सिस्सू में आपको काफ़ी सारे खेत देखने के लिए मिलेंगे जिनमें आलू, मटर और बाजरा उगाए जाते हैं। इसके अलावा यहाँ पर फूलों के बागीचे भी हैं। ये गाँव एक रिज पर बसा हुआ है जिसके पीछे घीपंग पहाड़ का बेहतरीन नज़ारा दिखाई देता है। घीपंग लाहौल के लोकल देवता का नाम है जिसपर इस पर्वत का नाम पड़ा है। चन्द्र नदी के उस पार दो पहाड़ों के बीच सिस्सू वॉटरफॉल का शानदार नज़ारा दिखाई देता है। इतनी ऊँचाई से गिरता ये झरना बेहद सुन्दर लगता है और फ़ोटोग्राफी के शौकीन लोगों को ये जगह बहुत पसंद आएगी।
3. तांदी
कीलोंग से केवल 7 किमी. दूर पट्टन घाटी का ये गाँव चन्द्र और भागा नदियों के संगम पर स्थित है। लोगों का कहना है इस गाँव की स्थापना राजा राणा चंद राम ने चंडी के नाम से की थी जिसको बाद में तांदी कर दिया गया। इस जगह से जुड़ी कई पौराणिक कहानियाँ भी हैं। एक कहानी के अनुसार चन्द्र और भागा चाँद और सूर्य देवताओं के बेटे और बेटी थे। वो दोनो एक दूसरे के प्यार में थे। अपनी सेलेस्टियल शादी करने के लिए उन्होंने बरालाचा ला पास पर चढ़ाई करने का फैसला किया और वहाँ से उल्टी दिशाओं में लाहौल का चक्कर लगाना शुरू किया। कहा जाता है दोनों तांदी गाँव में मिले जहाँ उन्होंने शादी की। ख़ास बात ये है कि मनाली लेह हाईवे पर इस जगह के अलावा आपको कहीं और पेट्रोल नहीं मिलेगा। इसलिए अगर आप यहाँ से आगे जा रहे हों तो अपने साथ एक्स्ट्रा पेट्रोल ज़रूर रखना चाहिए।
4. कीलोंग
कीलोंग लाहौल और स्पीति घाटी का ज़िला मुख्यालय है। 3156 मीटर की ऊँचाई पर बसी ये जगह रोहतांग और बारालाचा के बीच बने ट्रेड रूट पर स्थित है। एक तरह से कीलोंग भागा नदी के ऊपर ही है। सरकारी दफ्तरों से लेकर ज़रूरी दुकानों तक सभी चीज़ें यहीं कीलोंग में ही हैं। कीलोंग का बाज़ार वो जगह है जहाँ आपकी ज़रूरत की सभी चीज़ें आसानी से मिल जाएंगी। लाहौल की सभी कमर्शियल एक्टिविटी भी ज़्यादातर कीलोंग में ही होती हैं और इसी वजह से इस जगह पर सबसे ज़्यादा लोग रहते हैं। अगर आप लाहौल आना हो तो इस जगह पर आपको देखने के लिए सबसे ज़्यादा जगहें मिलेंगी। यहाँ आप बरालाचा ला पास पर ट्रेकिंग कर सकते हैं, दीपक ताल के हसीन नज़ारे देख सकते हैं और बौद्ध धर्म से जुड़ी मोनस्ट्री भी देख सकते हैं।
5. जिस्पा
कीलोंग से 20 किमी. दूर बसे जिस्पा को झीलों और वॉटरफॉल वाली जगह भी कहा जा सकता है। ये गाँव भागा नदी की दो छोटी नदियों के संगम पर स्थित है जहाँ पर आप कैंपिंग करने का मज़ा उठा सकते हैं। जिस्पा की ख़ास बात है यहाँ एक बहुत बड़ी सुखी नदी है जो लाहौल जैसे हरे भरे इलाके में मिलना असामान्य है। इसके अलावा जिस्पा के कुछ हिस्सों में भागा नदी की गहराई थोड़ी कम है। इन सभी जगहों पर गर्मियों में बहुत सारी ट्राउट मछली होती हैं और आप फिशिंग भी कर सकते हैं। यहाँ का माहौल शांत है और जगह सचमुच में स्वर्ग जैसी लगती है।
कब जाएँ?
लाहौल जाने के लिए सबसे अच्छा समय गर्मियों का होता है। एक तरफ़ जहाँ मैदानी इलाकों में तेज़ धूप और उमस जैसे हालात रहते हैं वहीं लाहौल घाटी में मौसम खुशनुमा बना रहता है। ठंडी हवाओं के साथ लाहौल घाटी घूमने का मज़ा ही कुछ और है। अगर स्नोफॉल देखना चाहते हैं तो ठंड के समय भी लाहौल आ सकते हैं। साल के इस समय लाहौल का ज़्यादातर हिस्सा बर्फ़ से ढका होता है। वैसे देखा जाए तो सही मायनों में लाहौल घूमने का मज़ा सर्दियों में ही है क्योंकि लोकल लोगों की ज़िंदगी और पहाड़ी जीवन में आने वाली मुश्किलों को नज़दीक से देखने का मौका भी मिलता है।
इन बातों का रखें ध्यान:
1. अगर आप इंडियन हैं तो लाहौल में एंट्री करने के लिए आपको इन्नर लाइन परमिट की जरूरत नहीं होती है लेकिन अगर आप रोहतांग पास से आ रहे हैं तो आपके पास रोहतांग परमिट होना ज़रूरी है इसलिए अपने साथ आईडी प्रूफ रखना ना भूलें।
2. लाहौल जैसी जगहों पर लोगों की ज़्यादातर कमाई पर्यटन पर ही निर्भर रहती है इसलिए कोशिश करिए कि आप होमस्टे में रुकें।
3. ऐसी जगहों पर एक्यूट माउंटेन सिकनेस होने का खतरा बना रहता है इसलिए फर्स्ट एड किट ज़रूर साथ रखें।
4. ठंडी जगहों पर शरीर में पानी की कमी होना बहुत आम बात होती है इसलिए हर थोड़ी देर में पानी पीना ज़रूरी है।
5. ऊँचाई वाली जगहों पर दोपहर में धूप बहुत तेज़ होती है इसलिए सनबर्न से बचने के लिए सनस्क्रीन, हैट और लोशन ज़रूर रखना चाहिए।
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