मुर्दा जाग उठेगा तब ...!

Tripoto
22nd Aug 2019
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Day 1


मुर्दा जाग उठेगा तब ...!

उस दिन शाम में करीब साढे पांच बज रहे होंगे । सूरज ने तब तक हमारा साथ नहीं छोङा था । महीना अप्रैल और साल था 2017 । मैं, अपनी पत्नी माधुरी आनंद, साली सुष्मिता आनंद, दोनों बच्चों और पत्नी के भांजा आशुतोष प्रकाश के साथ कब्र परिसर में दाखिल हो चुका था । छोटी दरगाह परिसर में गिने-चुने की उपस्थिति थी जिसमें हम भी शामिल हो गए । कब्र में लेटा व्यक्ति शाही नहीं था । मतलब यह कि दरगाह कोई ताजमहल नहीं था वर्ना हमारी उपस्थिति भीङ में कहीं गुम हो जाती । हमारे खङा होने की जगह योगी और भोगी का फर्क बता रहा था । 

मनेर शरीफ पटना से लगभग 25 किलोमीटर दूर है । बिहार में मुगलकालीन वास्तुकला के जो इक्के-दुक्के नमूने दिखते हैं, उनमें छोटी दरगाह सबसे शानदार है । यह चुनार के लाल बलुआ पत्थर से बना है । पत्थरों पर नक्काशी ऐसी कि लकङी के नक्काशनवीस शर्मा जाएं । फिरदौसी सिलसिला के सूफियों को राजनीतिक सत्ता की नजदीकी से गुरेज नहीं होता था । सरकार के भारतीय पुरातत्व विभाग ने अब उन्हेें अपनी पनाह मेें रखा है । जीवन के साथ भी जीवन के बाद भी... यह है शाह की कमाई हुई  दौलत ! जानकारी के अनुसार, मुगल बादशाह जहांगीर का बंगाल-बिहार के सूबेदार इब्राहिम खां फतेहगंज ने छोटी दरगाह को सत्रहवीं सदी के पूर्वाद्ध में बनवाया था ।

मनेर शरीफ मेें दो दरगााहें हैैं । बड़ी दरगाह मेें फिरदौसी सूूूफी संत हजरत मखदूम यहिया मनेरी 1291 ई० से लेेेटे हुुुए हैं जबकि छोटी दरगाह जो कि बेहद खूबसूरत है, मेें शाह दौलत का मकबरा है । छोटी दरगाह की इमारत एक नीची चबूतरे पर बना है । चबूतरे के कब्र वाले कक्ष के चारों तरफ दीवारें हैं और उसके चारों ओर 12 स्तंभों पर टिका लगभग 3.5 मीटर का एक खुला बरामदा है । इस्लाम में मानव चित्र बनाने की जो पाबंदी है उसका पालन बखूबी यहां दिखता है । हाङ मांस के मानव को साकार सामने देखिए , दिमाग से देखिए , कल्पना में देखिए लेकिन चित्र में मत देखिए ! जब खुदा ही निराकार हो तब उसका बंदा आकार वाला दिख कर खुदा से बढत लेने की कैसे सोच सकता है ! छोटी दरगाह में मानव चित्र न सही उसकी जगह हम यहां कुरान शरीफ की आयतों की कैलियोग्राफी को तो उत्कीर्ण देख ही सकते हैं । फूल -पत्ती तो उकेरे गए हैं ही ।

                  कब्र को घेरते कक्ष की दीवारों में ताखे भी बने हुए हैं । ताखों के मेहराब में पत्थर की जालियां लगायी गयी हैं । कोने पर खुले कक्ष है जिनके ऊपर छोटे गुम्बद बने हुए हैं । मुख्य गुम्बद जो कि बङा है, कक्ष के बीचोबीच है । बरामदा से चारों ओर बाहर छज्जा निकला हुआ है । ऊपर में चारों दिशाओं में पत्थर की जालीदार रेलिंग लगाई गयी है । बाहर से देखने पर इमारत दो मंजिला दिखाई पङता है । कक्ष के बीच में शाह दौलत की समाधि है । शाह दौलत की बीवी ने अब भी उनका साथ नहीं छोङा है । तीन तलाक की नौबत नहीं आयी थी । वह अपने शौहर के पूरब लेटी हुई हैं । शाह दौलत का चेला दरगाह निर्माता इब्राहिम खां भला अब कहां जाता ! उसने अपनी कब्र के लिए शाह की कब्र के पांव के नीचे की जमीन मुकर्रर की है ।

मेरी बेटी इधर-उधर भागती हुई जब एक रेलिंग के पास पहुंची तो जोर से कहा , ''ममा देखो पानी ।'' हमने झांका तो एक जलाशय नजर आया जिसका जल गंदला था । बाद में पता चला कि लगभग पांच एकङ में फैले इस तालाब को कभी सोन नदी पानी देती थी । सोन नदी गंगा से मनेर में ही मिलती है । अत: तालाब में एक सुरंग के द्वारा सोन नदी का पानी लाने की व्यवस्था थी । सोन नदी अब दूर भाग चुकी है । इमारत की संरचना की योजना में जलाशय का वैसा कोई जोङ नजर नहीं आता जो शेरशाह की दरगाह में दिखता है । मुख्य भवन के बाहर खुले में कई दूसरे कब्रे भी बने हुए हैं जिनके ऊपर भी चादरें चढी हुई थीं । यह बाहरी कब्र किनका है , पता नहीं । यह तो तय है कि ये बाद में बनवाये गए हैं जो इमारत की संरचना में भद्दे जोङ लगते हैं । भारत में पेबन साटने (पैबंद) की पुरानी मजबूरी रही है । वैसे भी सबको छत आज तक सरकार नहीं दे पाई है । भूदान के दिनों में भी इन खुले कब्रियों को जमीन नहीं मिला । 

खैर, छोटी दरगाह परिसर में प्रवेश द्वार से लगा हुआ एक लंबा आयताकार कक्ष दिखता है जिसे एक ओर से खुला रखा गया है । दरगाह परिसर में बिना गुम्बद की मेहराबदार छत वाली एक मस्जिद भी है । परिसर में एक तहखाना भी है जिसे दिखाकर हमने अपने बच्चों को डराया भी । कहते हैं कि शाह दौलत खुदा की इबादत इसी कोठरी में किया करते थे । दरगाह के उत्तर में मुगल शैली का दरवाजा है जिसकी छत गुम्बदनुमा है । दरवाजा के दोनों ओर बाहर की ओर खिङकियां बनी हुई हैं । 

कुछ तस्वीरें खींची तो वहां मौजूद ताबेदार ने मना किया लेकिन जिसे अब तक इतिहास की कई किताबों में पढते आया था, उसका साक्षात्कार अधूरी कैसे छोङ सकता था ! चोर निगाही के साथ फिर क्लिक-क्लिक करने पर गुस्साते हुए ताबेदार ने चेतावनी दी कि यह कब्र है । इन्हें मत जगाइये । जगाइये मत ... से हम थोङा सिहरें । सूरज भी आसमां से जा चुका था । अब समर, अन्नी की जगह हमारे डरने की बारी थी । मुर्दा बोल उठेगा ...!! मतलब प्रेतों के बीच हम खङे हैं ! ताजमहल भी तो कब्र है । वहां प्रेत नहीं ! वहां तो कोई फोटोबाजी पर नहीं टोंकता । अच्छा...तो भोगी और योगी का मामला है । दरबार लगाने की आदत शाहजहां की अब तक नहीं गयी और मनेरी साब को चाहिए केवल शांति । आश्चर्य यह था कि साल में दोनों सूफी संतों के नाम पर जो पुण्यतिथि मनायी जाती है, वह आखिर कैसे शांति से मनाया जाता होगा ! भीङ-भाङ से उनके जग जाने की आशंका नहीं होती ! इनका जगना आज हिंदुस्तान की जरुरत है । सूफी तहजीब को उसके एक गढ कश्मीर से विदा कर दिया गया है । ये जग जाएं तो देख सकेंगे कि उनकी शिक्षा ने दम क्यों तोङ दिया ? लेकिन साहब को नहीं जगने देंगे ताबेदार ...! तो . .. लो शांति ... सरकार ने भी कश्मीर पर मुहर मार दी है शांति का । 

...तो मनेर मतलब मनेर का लड्डू ही नहीं होता , हम वहां देख रहे थे । मनेर एक धार्मिक नगरी थी, है और ऐतिहासिक भी । कहते हैं कि आज के पिछङे शहर मनेर में कभी राजशाही हुआ करती थी । पूरा शहर प्राचीर से घिरा हुआ था । मनेर के उत्तर-पूर्व कोने पर अब भी एक गढ देखा जा सकता है जो ऊंचा है। बदमिया बुढिया ने बताया कि वही राजा का किला था ।

धुंधलका हो चुका था । आशुतोष ने गाङी स्टार्ट की और थोङी देर में बिहटा-पटना सङक पर स्थित महीनावां आ गया जहां हम एक रिश्तेदार की शादी समारोह में शामिल होने आए हुए थे । मेरी माताजी भी अतिथि के रुप मेंं महीनावां में ही थीं । पहुंचने पर हम में से किसी को नहाने का आदेश उन्होनें जारी नहीं किया । ताज्जुब कि हमें छूतका नहीं लगा था ! श्मशान घाट और दरगाह का यह फर्क दिमागी है कि नहीं ! 

--------
कैसे पहुंचे :- दानापुर, बिहटा और पटना रेलवे स्टेशन पर उतर कर सङक मार्ग के जरिए पहुंचा जा सकता है । औरंगाबाद से बिहटा होते पटना आने वाली सङक से सीधे मनेर पहुंचा जा सकता है । नजदीकी हवाई अड्डा पटना है ।

कहां ठहरें :- पूरा कार्यक्रम एक दिन का है । रात ठहरने की जरुरत नहीं है । वैसे बिहटा, पटना में हर बजट की होटले हैं ।

क्या खरीदें :- मशहूर मनेर का लड्डू ।

© अमित लोकप्रिय

Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya
Photo of मुर्दा जाग उठेगा तब ...! by Amit Lokpriya

Further Reads