बहुत समय बाद मैं और मेरा भाई सौरभ एक आउटिंग पर निकले। सौरभ मुझे बहुत अनोखी जगह लेकर गया जो कि आगरा के बहुत नजदीक थी।इस बार मैं आपको एक खोए हुए इतिहास के बारे में बताता हूं।
बटेश्वर के बारे में
सच बताऊं तो इस जगह के लिए श्री के के मोहम्मद जी की जितनी बड़ाई करी जाए उतनी कम है | जो कि उस समय एएसआई भोपाल regional superintendent the अगर उन्होंने इस जगह पर रुचि नहीं दिखाई होती तो आज यहां सिर्फ आ रे तिरछे पत्थर होते|
माना जाता है कि इस जगह किसी जमाने में और बात कर रहा हूं सन ७५०-८०० सी- ई, मतलब लगभग १२००-१२५० साल पहले की जब यहां पर 200 मंदिर हुआ करते थे| और जो कि गुर्जरा प्रतिहारस डायनेस्टी में बने थे|
यह सारे मंदिर विष्णु शिव शक्ति के लिए बनाए गए थे
यह जगह सर एलेग्जेंडर ने सन अट्ठारह सौ बयासी में ढूंढी थी| अगर आपको सर अलेक्जेंडर के बारे में नहीं पता तो तो मैं आपको बता दूं कि यह एएसआई आरके लॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के फाउंडर रहे हैं|
1924 में आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इस जगह को अपने संरक्षण में लिया| लगभग 81 साल तक इस टूटी फूटी जगह की स्टडी करी गई, हजारों की तादात में फोटोग्राफ्स लिए गए और उन्हें रिकॉर्ड किया गया|
ऐसा कोई प्रूफ तो नहीं मिला कि आखिर यह मंदिर टूटे कैसे| ऐसा कोई एविडेंस तो नहीं मिला कि क्या इन्हें किसी बाहरी ताकतों ने तोड़ा? पर माना जाता रहा है कि सन 13 सौ के आसपास के समय में यह जगह भूकंप से तहस-नहस हो गई होगी|
एक बहुत दिलचस्प बात आपको बताता हूं। इस जगह और इसके आसपास के इलाकों में किसी समय डाकुओं की दहशत थी। इसमें जो प्रमुख डाकू था उसका नाम था निर्भय सिंह गुर्जर। इसकी दहशत इतनी ज्यादा थी कि यहां से एक भी मूर्ति या कलाकृति कुछ भी गायब नहीं हुई। यह लोग कुछ हद तक इस जगह को पूज्यते भी थे, यहां रहते भी थे। इन डाकुओं के समूह ने इस जगह की खूब हिफाजत करी।
पर निर्भय सिंह गुर्जर था कौन? इसके ऊपर 239 मर्डर किडनैपिंग और रॉबरी के केसेस थे|
जब श्री केके मोहम्मद जी यहां आए एक समझौता करार हुआ एएसआई और निर्भय कंपनी के बीच में| वह लोग एएसआई के काम के बीच में नहीं आएंगे और मंदिरों का पुनः निर्माण करने दिया जाएगा| निर्भय सिंह ने भी काफी मदद करी इन मंदिरों के निर्माण में|
हालांकि यह समझौता बहुत कम समय के लिए रहा| निर्भय सिंह सन 2005 में पुलिस एनकाउंटर द्वारा मारा गया और इसके साथ ही इसके बाकी साथी भी धीरे-धीरे तितर-बितर हो गए।
एसआई का काम लगभग 7 साल तक चला। 2012 तक यहां पर 60 मंदिरों को दोबारा खड़ा किया गया। यह जगह अब देखते ही बनती है।
मेरा अनुभव
मैं जब यहां पर आया तो मैं आवाक हो गया|
मैं पूरा समय एक बात सोचता रहा कि किस तरह इन लोगों ने पिलर मैच करे होंगे छत मैच करी होगी मूर्तियां मैच करी होंगी मैं बहुत ज्यादा आश्चर्यचकित रहा। आखिर किया कैसे होगा यह सब।
इन आड़े तिरछे पत्थरों को बिल्कुल उनके रूप में लाना, यह अपने आप में एक अद्भुत काम है।
मेरा आभार सबको जो इस प्रोजेक्ट में शामिल हुए।
काम यहां पर ऐसा लगता है जैसे एकदम से बंद हुआ 2012 में। अगर आप यहां पर आए तो ऐसा लगेगा जैसे काम करने वाले लोग लंच के लिए निकले हैं और वापस आते ही काम चालू हो जाएगा।
मेरा सुझाव अगर माने तो एक बार यहां पर जरूर आएं। मेरा धन्यवाद सौरभ को भी जो मुझे यहां लेकर आया। एक बात और यहां अंदर आने के लिए हाल फिलहाल कोई भी टिकट नहीं है।
यहां कैसे आए
हम दोनों यहां अपनी कार से आए थे और यह जगह गूगल मैप्स पर भी है। हालांकि मेन हाईवे छोड़ने के बाद रोड सिंगल है, और कई छोटे-छोटे गांव से होकर निकलती है। रूट्स की कंडीशन भी कुछ खास अच्छी नहीं है। पर फिर भी हमें यहां पहुंचने के लिए कोई भी दिक्कत नहीं हुई।
अगर आप बाहर से आ रहे हैं तो -
1.) नजदीकी हवाई अड्डा ग्वालियर में है। वहां से आपको इस जगह के लिए टैक्सी लेनी पड़ेगी।
2.) नजदीकी रेलवे स्टेशन मुरैना में है, जो कि 30 किलोमीटर दूर है बटेश्वर मंदिरों से।
3.) नजदीकी बस स्टॉप भी मुरैना में है। हालांकि यहां पहुंचने के लिए आपको प्राइवेट टैक्सी या कार लेनी पड़ेगी
बटेश्वर के बाद हम लोग चौसठ योगिनी मंदिर भी गए थे पर वह मैं आपको दूसरे ब्लॉग मैं बताऊंगा। तब तक के लिए इजाजत चाहता हूं, ईश्वर आपको खुश रखे और स्वस्थ रखें|