कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अनेक धार्मिक व ऎतिहासिक जगहों से मनोहर और आकर्षक लगता है हमारा देश भारत |
कई धार्मिक जगह तो ऐसे है जहा होती है आत्मज्ञान की प्राप्ति ,ऐसी ही जगहों में एक जगह है | "बोधगया" जहा बोधि पेड़़ के नीचे तपस्या कर रहे भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी तभी से यह स्थल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है |
आध्यात्मिक शांति से भरपूर, बिहार की राजधानी पटना के दक्षिणपूर्व में लगभग 101 ० किलोमीटर दूर स्थित बोधगया गया जिले से सटा एक छोटा शहर है।|
बुध पूर्णिमा का इतिहास -
करीब 500 ई॰पू. में गौतम बुद्ध फाल्गु नदी के तट पर पहुंचे और बोधि पेड़ के नीचे तपस्या करने बैठे। तीन दिन और रात के तपस्या के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई |
जिस्के बाद से वे बुद्ध के नाम से जाने गए। इसके बाद उन्होंने वहां 7 हफ्ते अलग अलग जगहों पर ध्यान करते हुए बिताया और फिर सारनाथ जा कर धर्म का प्रचार शुरू किया।
बुद्ध के अनुयायिओं ने बाद में उस जगह पर जाना शुरू किया जहां बुद्ध ने वैशाख महीने में पुर्णिमा के दिन ज्ञान की प्रप्ति की थी। धीरे धीरे ये जगह बोध्गया के नाम से जाना गया और ये दिन बुद्ध पुर्णिमा के नाम से जाना गया।
गया मे मेरी यात्रा -
अपने स्कूल के टाइम, इतिहास की किसी बुक मे, मैंने पढ़ा था की बोधगया मे गौतम बुध को ज्ञान की प्राप्ति हुए थी । इसलिए मेरी बोधगया जाने की जिज्ञासा बचपन से ही थी। बस फिर क्या था। दिन मे 12th बोर्ड के लास्ट एग्जाम देकर रात की ट्रैन से हम बुद्धम सरनाम गच्छामि का जाप करते करते दुपहर तक "गया "पहुंच गए।
गया मे हम अपने भैया शिवम शर्मा के घर रुके थे। सुबह सुबह हम फ्रेश हो के हम पहाड़ो पर चढ़ने के लिए अग्रसर हो गए। पहाड़ो पर चढ़ने का निर्णय मेरा था क्योकि किसी ने मेरे से कहा था, की वह का दिन का व्यू बहुत अध्भुत है | यहाँ से वापस आने के बाद हम महाबोधि मंदिर के लिए रवाना हुए |तो चलो आपको बताते हैं हमने यहां कौन कौन से पर्यटन और आकर्षण स्थल के दर्शन किए और उस जगह से गौतम बुद्ध का क्या संबंध था।
महाबोधि मंदिर-
बिहार में इसे मंदिरों के शहर के नाम से जाना जाता है। इस गांव के लोगों की किस्मत उस दिन बदल गई जिस दिन एक राजकुमार ने सत्य की खोज के लिए अपने राजसिहासन को ठुकरा दिया। बुद्ध के ज्ञान की यह भूमि आज बौद्धों के सबसे बड़े तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। आज विश्व के हर धर्म के लोग यहां घूमने आते हैं। पक्षियों की चहचहाट के बीच बुद्धम्-शरनम्-गच्छामि की हल्की ध्वनि अनोखी शांति प्रदान करती है। यहां का सबसे प्रसिद्ध मंदिर महाबोधि मंदिर है।
मेत्ता बुद्धाराम मंदिर -
मेत्ता बुद्धाराम मंदिर को देखते ही हमे ऐसा लगा जैसे हम स्विट्ज़रलैंड या जापान के किसी बुद्धिस्ट मंदिर मे आ गए। हमे ऐसा लग रहा था की हम कीसी चीनी मूवी की शूटिंग प्लेस पर खड़े है। हमने यह 2 घंटे से ज्यादा टाइम लगा दिया फोटो क्लिक करने मे।
बुद्ध प्रतिमा -
यह विशालकाय बुद्ध प्रतिमा बौद्ध तीर्थ और पर्यटन मार्गों में से एक बोधगया, बिहार (भारत) में है। यह बुद्ध मुर्ति ध्यान मुद्रा में 25 मीटर (82 फ़ुट) ऊँची खुली हवा में एक कमल पर विराजमान है। यह बुद्ध प्रतिमा पूरा करने के लिए 12,000 राजमिस्त्रीओं को सात साल लग गए थे। यह प्रतिमा बलुआ पत्थर ब्लॉक और लाल ग्रेनाइट का एक मिश्रण है। यह संभवतः सबसे बड़ा भारत में बनाया गया और 14 वें दलाई लामा ने 18 नवंबर 1989 को पवित्रा किया गया था।बुद्ध मूर्ति के लिए नींव पत्थर 1982 में रखा गया था।
ककोलत झरना -
ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भों से युक्त ककोलत एक बहुत ही खूबसूरत पहाड़ी के निकट बसा हुआ एक झरना है। यह झरना बिहार राज्य के नवादा जिले से 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोविन्दपुर पुलिस स्टेशन के निकट स्थित है। नवादा से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31 पर 15 किलोमीटर दक्षिण रजौली की ओर जाने पर फतेहपुर से एक सड़क अलग होती है। इस सड़क को गोविन्दपुर-फतेहपुर रोड के नाम से जाना जाता है। यह सड़क सीधे थाली मोड़ को जाती है,जहाँ से तीन कीलोमीटर दक्षिण ककोलत जलप्रपात है।
थाड़ी मोड़ से जलप्रपात की शीतलता का एहसास होने लगता है। रास्ते के दोनो ओर खेत,,पेड़- पौधों की हरयाली यात्रा का मजा बहुगुणित कर देती है।
यह जिस पहाड़ी पर बसा है, उस पहाड़ी का नाम भी ककोलत है। ककोलत क्षेत्र खूबसूरत दृश्यों से भरा हुआ है। लेकिन इन खूबसूरत दृश्यों में भी सबसे चमकता सितारा यहां स्थित ठण्ढे पानी का झरना है। इस झरने के नीचे पानी का एक विशाल जलाशय है।
ककोलत में एक जलप्रपात है। इस जल प्रपात की ऊँचाई १६० फुट है। ठण्ढे पानी का यह झरना बिहार का एक प्रसिद्ध झरना है। गर्मी के मौसम में देश के विभिन्न भागों से लोग पिकनिक मनाने यहां आते हैं। इस झरने में 150 से 160 फीट की ऊंचाई से पानी गिरता है। इस झरने के चारो तरफ जंगल है। यहां का दृश्य अदभुत आकर्षण उत्पन्न करता है। यह दृश्य आंखो को ठंडक प्रदान करता है।
मंगोलियन मंदिर -
यह मंदिर शाम के समय बंद था तो हमने मंदिर के बहार से ही कुछ फोटोज क्लिक करे और दुसरी मंदिर की तरफ रवाना हो गए। बोधगया मे बहुत सारे मंदिर है । इसलिए , हम घूमते घूमते थक गए थे। तो हमने चाय और ब्रेड का आनंद उठाया। आप 2 दिन मे सारे मंदिर आराम से घूम सकते है और टंगे और व्हीकल भी आपको घूमने के लिए मिल जायेंगे।
महाबोधि परहिता म्यांमार मंदिर -
चाय और ब्रेड खाकर हम एनर्जी से भर गए थे और हम दूसरी ओर महाबोधि परहिता म्यांमार मंदिर की ओर चले। यह हमने 1 घंटा समय बिताया ओर फिर हम इ-रिक्शा पकड़ के घर की ओर रवाना हुए।
विष्णुपद मंदिर -
बिहार के गया में भगवान विष्णु के पदचिह्नों पर मंदिर बना है। जिसे विष्णुपद मंदिर कहा जाता है। पितृपक्ष के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है। इसे धर्मशिला के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि पितरों के तर्पण के पश्चात इस मंदिर में भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन करने से समस्त दुखों का नाश होता है एवं पूर्वज पुण्यलोक को प्राप्त करते हैं। इन पदचिह्नों का श्रृंगार रक्त चंदन से किया जाता है।
इस पर गदा, चक्र, शंख आदि अंकित किए जाते हैं। यह परंपरा भी काफी पुरानी बताई जाती है जो कि मंदिर में अनेक वर्षों से की जा रही है। फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं के अलावा पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है।
विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु का चरण चिह्न ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर है। राक्षस गयासुर को स्थिर करने के लिए धर्मपुरी से माता धर्मवत्ता शिला को लाया गया था,
जिसे गयासुर पर रख भगवान विष्णु ने अपने पैरों से दबाया। इसके बाद शिला पर भगवान के चरण चिह्न है। माना जाता है कि विश्व में विष्णुपद ही एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान विष्णु के चरण का साक्षात दर्शन कर सकते हैं।
तिब्बतन मंदिर -
4th दिन की शुरुआत तिब्बतन मंदिर से शुरुआत की यह की सुंदरता देखते ही बनती थी। यहाँ की सुंदरता देख कर ऐसा लग रहा था ,
जैसे हम किसी तिब्बतन १८वी शताब्दी की फिल्म मे हो। मंदिर की बनावट बहुत शानदार थी।
हमने यह ३० मिनट का बहुत अच्छा टाइम बिताया | रॉयल भूटान मठ की ओर अग्रसर हो गए।
रॉयल भूटान मठ -
रॉयल भूटान मठ मे घूमते घूमते शाम हो चुकी थी ओर हमने शाम की चाय मंदिर के बाहर एक रेस्टोरेंट मे चाय पी। इसी के साथ हमने इ-रिक्शा बुक किया घर के लिए ओर घर पहुंच गए। आपको हर तरह के व्हीकल मिल जायेंगे गया मे घूमने के लिए जिनमे ज्यादातर ऑटो रिक्शा कैब ओर इ-रिक्शा मिल जाते है।
बोधगया घूमने जाने का सबसे अच्छा समय –
बोधगया जाने का सबसे अच्छा समय भगवन बुध के जन्मदिन दिन को मन जाता है। जिस दिन को बुध पूर्णिमा के रूप मे सम्पूर्ण विशव मे मनाया जाता है।और महाबोधि मंदिर मे बुध पूर्णिमा बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। और सभी मंदिर को बहुत अच्छे से सजाया जाता है।
गया में खाने के लिए प्रसिद्ध स्थानीय भोजन –
गया मे आपको बहुत तरह के बिहारी व्यंजन मिलेंगे जैसे लिटी चोखा , जलेबी और नॉन वेजिटेरिअन स्वदिस्थ व्यंजन भी मिल जायेंगे।
गया मे आपको देशी सत्तू और बिहारी मीठा पैन भी खाने को मिलेंगे।
गया में कहाँ रुके –
गया के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की यात्रा करने के बाद यदि आप गयामें रुकने के स्थान की तलाश कर रहे हैं, तो हम आपको बता दें कि गया में कई लो-बजट से लेकर हाई-बजट के होटल आपको मिल जायंगे। तो आप अपनी सुविधानुसार होटल ले सकते है।
गया कैसे जाये –
गया की यात्रा पर जाने वाले पर्यटक फ्लाइट, ट्रेन और बस में से किसी का भी चुनाव कर सकते है।
गया जाने के लिए आपको फ्लाइट्स नई दिल्ली और सभी एयरपोर्ट्स मिल जाएगी जो गया एयरपोर्ट पर आपको उतारेगी और रेलवे से गया जंक्शन आपको पहुंचा देगी। यह से २५ कम की दुरी पर है गया। गया
बोधगया विशव स्तरीय टूरिज्म प्लेस होने की वजह से प्रमुख एयरपोर्ट्स और नेशनल एयरपोर्ट से भी जुड़ा हुआ है