रणथंभौर :-
रणथंभौर दुर्ग, रणथंभौर नेशनल पार्क के बीच एक बड़ी सी चट्टान पर स्थित है। इस किले में एक बहुत विशाल सुरक्षा दीवार और सात द्वार हैं जिनके नाम नवलखा पोल, हाथी पोल, गणेश पोल, अंधेरी पोल, दिल्ली पोल, सतपोल और सूरज पोल हैं। किले में एक कचहरी भी स्थित है जिसको हम्मीर कचहरी कहते हैं, इस कचहरी में तीन कक्ष है जिसमें केंद्रीय कक्ष सबसे बड़ा है। बरामदे की छत को सपोर्ट देने के लिए संरचना में खम्बें है। इस किले के अंदर हम्मीर सिंह के शासनकाल के दौरान बना एक महल भी स्थित है जिसको हम्मीर पैलेस कहा जाता है। इस महल में कक्ष और बालकनी है जो छोटे पारंपरिक दरवाजों और सीढ़ी से जुड़े हुए हैं। इस तीन मंजिला इमारत में 32 खंभे हैं जो छत्रियों या गुंबदों को सपोर्ट देते हैं। इस किले की संरचना में एक बरामदा है जो भवन के प्रत्येक स्तर तक लेकर जाता है।
रणथंभौर किले का इतिहास और रहस्य –
रणथंभौर का किले में एक 84 स्तंभों वाला एक बड़ा हॉल भी है जिसकी ऊंचाई 61 मीटर है। इस हाल को बदल महल के रूप में जाना जाता है और इसका उपयोग सम्मेलनों और बैठकों के लिए किया जाता था।
किला परिसर के अंदर गणेश मंदिर भी स्थित है जो यहां आने वाले भक्तों और पर्यटकों के बीच काफी प्रसिद्ध है। मान्यताओं की माने तो अगर कोई अपनी इच्छाओं को लेकर भगवान गणेश को पत्र लिखकर भेजता है तो उसकी इच्छाएं जरुर पूरी होती हैं।
रणथंभौर किले के रहस्य और इतिहास की बात करें तो इस किले का निर्माण कब हुआ उसका सटीक समय आज भी अज्ञात है जो आज तक रणथंभौर किले का रहस्य बना हुआ है। हालांकि कई पुरातत्वविदों का कहना है कि किले का निर्माण 10 वीं शताब्दी में चौहान वंश के राजपूत राजा सपल्क्ष्क्ष शासनकाल के समय शुरू हुआ था। राजस्थान के चौहान शाही परिवार ने किले का शेष निर्माण पूरा किया था। जब चौहानों ने किले का प्रबंध किया तब इस किले को रणस्तंभ के नाम से जाना जाता था। पृथ्वीराज चौहान प्रथम के शासनकाल के समय यह किला जैन धर्म से प्रमुख रूप से जुड़ा था। 1192 ईस्वी में इस किले पर मुस्लिम शासक मुहम्मद ने कब्जा कर लिया और पृथ्वीराज चौहान तृतीय हरा दिया। इसके बाद 1226 ईस्वी में किले पर दिल्ली शासक इल्तुतमिश ने कब्जा कर लिया था। हालांकि चौहानों ने 1236 में फिर से किले पर कब्जा कर लिया।
1259 में बलबन ने कई असफल प्रयासों के बाद जैतसिंह चौहान से किले पर कब्जा कर लिया। फिर 1283 में जैतसिंह चौहान के उत्तराधिकारी शक्ति देव ने किले को जीत लिया और इसके बाद राज्य का विस्तार भी हुआ। 1301 में किले को अला उद्दीन खिलजी ने कब्जा कर लिया था।








