क्या आप सब जानते है कि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार हमारे देश में है। यह हमारे लिए बहुत गौरव की बात है की कुम्भलगढ़ किले की दीवार लगभग 36 किमी लम्बी है और इसकी चौड़ाई लगभग 15 फीट है। जिस पर एक साथ दो कारे इस किले की दीवार पर चल सकती है। यह किला अपने आप में पराक्रम से भरे हुये इतिहास को समेटे हुये है।
कुम्भलगढ़ किला, राजस्थान के राजसमन्द जिले में स्थित है। उदयपुर से लगभग 80 किमी दूर, अरावली की पहाडियों पर यह किला राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला भी है। महाराणा कुम्भा, महाराणा प्रताप, महाराणा उदय सिंह, महाराणा सांगा, कुंवर प्रथ्वीराज जैसे पराक्रमी राजाओ का सम्बन्ध इसी किले से है।
महाराणा कुम्भा ने इस अजेय किले का निर्माण बनास नदी के तट पर सन 1459 में करवाया था। उन्होने साथ-साथ सिक्के भी बनवाये थे जिसपर किले का नाम अंकित था।
इस अजेय किले पर कई आक्रमण हुए। पहला आक्रमण मांडू के शासक महमूद खिलजी ने किया था, किन्तु खिलजी को सफलता नही मिली थी। गुजरात के सुलतान कुतुबुद्दीन ने इस किले पर आक्रमण किया परन्तु वह भी असफल रहा था।
इस किले का एक काला इतिहास भी है, जब महाराणा कुम्भा की हत्या उनके बड़े पुत्र उदय सिंह ने छल से करवा कर स्वयं महाराणा बन गया। परन्तु उसे मेवाड़ के सामंतो ने हटाकर कुम्भा के दूसरे पुत्र रायमल को महाराणा बना दिया। रायमल के दो पुत्र प्रथ्वीराज और राणा सांगा जिनका जन्म इसी किले में हुआ था।
इस किले में एक और अनहोनी हुई थी जब एक दासी के पुत्र बनबीर ने महाराणा सांगा के पोते विक्रामादित्य की हत्या कर दी थी। वह उदयसिंह को भी मरवाना चाहता था परन्तु पन्ना धाय माँ ने अपने पुत्र का बलिदान देकर उदयसिंह को बचाया। राणा उदय सिंह का बचपन इसी किले में बीता और बाद में इसी दुर्ग में इनका राजतिलक हुआ।
कुम्भलगढ़ किला अरावली की पहाड़ियों में फैला हुआ है। लंबी घुमावदार दीवार दुश्मनों से रक्षा के लिए बनवाई गई थी। मुख्य किला और उसकी प्राचीर को मजबूत पत्थर से बनाया गया है जिसके कारण किला आज भी मजबूती के साथ खड़ा है।
इस किले में सात बड़े दरवाजे हैं। इनमें से सबसे बड़ा राम पोल के नाम से जाना जाता है। किले की ओर जाने वाले मुख्य रास्ते हनुमान पोल पर पर्यटक एक मंदिर देख सकते हैं। हल्ला पोल, राम पोल, पाघरा पोल, निम्बू पोल, भैरव पोल एवं तोप-खाना पोल किले के अन्य दरवाजे हैं।
राणा कुम्भा की भगवान शिव में बहुत गहरी आस्था थी। किले का सबसे महत्वपूर्ण और पूजनीय मंदिर नीलकंठ महादेव का मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। इसके विशाल गोल गुंबद, नक्काशीदार छत पर 24 खंबे, चौड़ा आँगन और 5 फुट उँचे शिव लिंगम, मंदिर का बेजोड़ कला का नमूना पेश करता है। उन्होंने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था। पूरे किले में लगभग 360 मंदिर है। जिसमें 300 जैन और 60 हिंदू मंदिर हैं। किले में ही एक गणेश मंदिर है जो सभी मंदिरों में सबसे प्राचीन माना जाता है। अन्य उल्लेखनीय मंदिर पार्श्वनाथ जैन मंदिर, बावन देवी मंदिर, वेदी मंदिर, गोलारे जैन मंदिर और सूर्य मंदिर प्रमुख मंदिर हैं।
किले के सबसे ऊपर है बादल महल। यह दो मंजिला महल पूरे भवन को दो भागों में विभाजित करता है। एक मर्दाना और दूसरा जनाना महल कहा जाता है। बादल महल के अंदर सुंदर रंगीन कमरे है, पेस्टल रंग के भित्ति चित्र बनाये गए है। महल के कमरे को फ़िरोज़ा, हरे और सफेद रंग से रंगवाया गया है। महल के कमरो की वातानुकूलन प्रणाली बड़ी रचनात्मक है, जिससे ठंडी हवा को कमरों में प्रवेश करती रहती है।
कुम्भलगढ़ गर्मियों के दौरान गर्म और शुष्क होता है। अक्टूबर से फरवरी में कुम्भलगढ़ की यात्रा करने का समय सबसे अच्छा है। यह मौसम दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए काफी अच्छा रहता है। इस मौसम में वन्यजीव अभयारण्य में जंगली जानवरों को स्पॉट करने की संभावना भी बहुत ज्यादा होती है।
राजस्थान सड़क मार्ग द्वारा यात्रा करना बहुत अच्छा है। रोड नेटवर्क भारत के कई प्रमुख शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली, इंदौर, कोटा और अहमदाबाद से जुड़ा है। कुंभलगढ़ के लिए बस सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं। बस के अलावा आप कार, टैक्सी या कैब किराए पर लेकर कुम्भलगढ़ पहुंच सकते हैं।
उदयपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर है जो रेल और हवाई जहाज द्वारा अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है। जहाँ से कुम्भलगढ़ जाने के लिए बस, टैक्सी या कार ले सकते है।
इस किले का इतिहास वीरता से अपनी मजबूती से अपनी दृढ इरादों से भरा पड़ा है कभी भी उदयपुर तरफ आइये तो कुम्भलगढ़ को जरूर देखिएगा।