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रमज़ान का महीना हो और आप पुरानी दिल्ली न जाएं तो रमजान अधूरा ही समझें। इसका मतलब ये भी है कि आपने एक अलग रौनक देखने का मौका गंवा दिया। पर मैं ऐसा मौका कभी हाथ से जाने नहीं देता। क्योंकि खाने का असली मज़ा तो रमज़ान के महीने में ही है । तो 2019 के रमज़ान का भी बेसब्री से इंतज़ार था। फिर क्या, आ ही गया वो दिन भी। पहुँच गए मेट्रो पकड़ के जामा मस्जिद।
एक अलग सी रौनक होती है हर तरफ। बच्चे, बूढ़े, जवान सब इस रौनक में शरीक हो रखे थे। मैं भी हो लिया😎
इफ़्तार के बाद का समय था तो हर तरफ भीड़ और रौनक लगी हुई थी। मुझे तो लग रही थी भयंकर दर्जे की भूख। इसलिए मैंने पहले रुख किया कुरेशी जी के कबाब की तरफ।
कुछ तो शांति मिली। स्टार्टर के तौर पे कबाब का कोई जवाब नहीं। पर जो दूसरा सवाल मेरे मन में था वो था कि अब क्या खाया जाए। थोड़ी ताक़ झांक करने के बाद जवाहर होटल पे जाने का फैसला किया और चल पड़े।
अब कुछ तसल्ली हुई पर एक सवाल अब भी बाकी था कि मीठे में क्या खाया जाए तो नज़र पड़ी एक लाजवाब चीज़ पे।
और क्या चाहिए एक इंसान को। थोड़ा खाना, थोड़ा मीठा और सुकून। एक बात तो साफ है कि त्योहार का मज़ा साथ मनाने में ही है।
क्या बीती थी शाम। अगले साल के इंतज़ार में चल पड़े अपने घर की तरफ एक बात दिल में लिए की सबके साथ मिल जुल के रहने में ही पूरी इंसानियत की भलाई है।