कश्मीर …धरती पर स्वर्ग

Tripoto

मधुर यादें वो सुनहरे पल होते हैं जो जीवन के उदास लम्हो में होठों पर मुस्कराहट की लकीरें खींच देते हैं और यदि बात धरती के स्वर्ग की हो तो यादें खुशनुमा शीतल हवा के झोंको सी अंतर्मन को तिरोहित कर जाती हैं।

3अगस्त २०१४ में आये भूकंप ने जम्मू कश्मीर को तहस नहस कर दिया था। जिधर नज़र जाती तबाही का मंज़र था । धरती के स्वर्ग को जैसे नज़र लग गयी थी। अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात थी, जब हम जम्मू की सैर पर निकले थे। बर्फ की चादर से ढके पर्वत और रंग बिरंगी फूलों की चादर ओढ़े धरती। इतना दिलकश नज़ारा तो सिर्फ फिल्मो में देखा था वो सचमुच में आँखों के सामने था किसी हसीं ख्वाब की हकीकत बनकर।

जम्मू से श्रीनगर, सोनमर्ग, गुलमर्ग, पेहलघम और फिर कश्मीर ….गुनगुनाती नदियां, मुस्कुराती वादियां, खिलखिलाते झरने और सीना ताने पर्वत…जैसे कह रहे हों यही बस जाएं।

ट्रैन से जम्मू तक का सफर भी कुछ अलग ही था।

मानव मन की प्रवृति ही होती है नकारात्मक विचारों को पिरोने की। कदम कदम पर सेना के जवानों की चहलकदमी, आपातकालीन व्यवस्था और पथ प्रदर्शन अनचाहे भय को सम्बल दे रहा था । दुर्गम जगहों पर रहने वाले लोग बहुत विनम्र होते हैं।खुले दिल से लोगों का स्वागत करते हैं, अगर आप में लोगों को पहचानने का हुनर है तो आप उन पर विश्वास कर सकते हैं।

जम्मू से स्थानीय वाहनों में प्रकृति का आनंद लेते हुए सोनमर्ग पहुंचे। वहां से घुड़सवारी करते हुए टेढ़े मेढ़े ऊँचे नीचे पथरीले रास्तों से हम बर्फीले पहाड़ों तक पहुंच गए । स्नोबूट बर्फीली ढलानों पर संतुलन बनाते हुए। सरकने में मददगार होते हैं, सो हम सबने अपने अपने साइज के स्नोबूट चुन लिए और बर्फ पर चलने का साहस जुटाते हुए सबसे अधिक ऊंचाई तक पहुंचने की होड़ में लग गए। चढ़ते फिसलते और फिर चढ़ने की पुरजोर कोशिश….।स्लेज से सरसराते हुए क्षण भर में नीचे ….गज़ब के रोमांच और ख़ुशी से भरा था एक एक पल। मन में हल्का सा भी डर एहसास कराता है कि जिंदगी कितनी खूबसूरत है और हमारी परेशानियां इन सबके सामने कितनी छोटी।बर्फीली चट्टानों को काटकर तेज़ी से बहते हुए पानी के स्रोत लगातार आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देते हुए मानो कहते हैं जीवन चलने का नाम ……………

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