दोस्तों, जैसा कि आप सभी को पता हैं कि गणेश चतुर्थी का पावन त्यौहार जिसकी शुरुआत 19 सितंबर से हो गई है। और पूरे देश में गणेश चतुर्थी का त्यौहार बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। खासकर महाराष्ट्र में इस त्यौहार को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। 10 दिन चलने वाले गणेश उत्सव पर लोग अपने घरों में, मुहल्ले में गणेश प्रतिमा स्थापित करते हैं या शहर में लगे गणपति पंडालों में पूजा के लिए जाते हैं। इस मौके पर सभी लोग गणेश मंदिरों के दर्शन के लिए भी जा सकते हैं इसलिए आज हम गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर 400 साल पुराने गणपतिपुले मंदिर के बारे में बताएंगे। जहाँ इस गणेश चतुर्थी आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ गणपतिपुले मंदिर की सैर कर सकते हैं तो आइए जानें, गणपतिपुले मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।
कहाँ स्थित है?
श्री गणेश का विशाल मंदिर मुंबई से 375 किलोमीटर दूर, रत्नागिरि जिले में बना है। जिस जगह यह मंदिर स्थापित है उस जगह का नाम गणपतिपुले है, इसलिए इस मंदिर को भी गणपतिपुले मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस प्रसिद्ध मंदिर में भक्तों का तांता सालभर लगा रहता है व गणेशोत्सव के दौरान यहाँ की रौनक आकर्षण का केंद्र होती है। यहाँ स्थित स्वयंभू गणेश मंदिर पश्चिम द्वारदेवता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। गणेश जी के इस प्राचीन मंदिर में लोग अपना भगवान का आशीर्वाद लेने दूर-दूर से आते हैं और प्रसन्न होकर जाते हैं। यह स्थान धर्म और प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग है।
गणपतिपुले मंदिर का इतिहास
दोस्तों, इस मंदिर का निर्माण किसने किया था इसके बारे में कई लोगों के विचार अलग-अलग है। लेकिन आपको बात दूं, कि प्राचीन काल में गणपतिपुले एक छोटा सा गाँव था।और मंदिर का इतिहास तीन सौ साल पुराना है। भिड़े नाम के एक व्यक्ति को स्वप्न में दैवीय मार्गदर्शन के अनुसार गणेश जी का मंदिर स्थल और मूर्ति मिली। चूंकि देवता समुद्री रेत के पास हैं इसलिए इस स्थान का नाम गणपतिपुले रखा गया है।कुछ लोगों का मानना है कि गणपतिपुले का नाम सफेद रेत से मिला है, जिससे भगवान गणेश की मूर्ति बनाई गई थी। गणेश जी के इस प्राचीन मंदिर में लोग बहुत दूर-दूर से भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। यह मंदिर समुद्र तट पर है। मंदिर के पीछे एक छोटी सी पहाड़ी है जो इष्टदेव यानी गणेश जी से भी जुड़ी हुई है।
400 साल पुराने गणपतिपुले मंदिर की पौराणिक कथा
दोस्तों, ऐसी मान्यता है कि गणपतिपुले मंदिर का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है। गणेश मंदिर में पूजी जाने वाली मूर्ति स्वयंभू है जो स्वयं प्रकट हुई थी। लोगों की मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्त्य ने किया था। साथ ही पौराणिक कथा के अनुसार, इस मंदिर में भगवान गणेश खुद प्रकट हुए थे। उसके बाद में यहाँ ऋषि अगस्त्य पूजा-पाठ करने लगे। मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश जी मूर्ति सफेद रेत से बनी है। गणेश चतुर्थी पर यह मंदिर खास तरीके से सजाया जाता है।
गणेश चतुर्थी पर यहाँ होती बहुत भीड़
गणेश चतुर्थी के खास मौके पर हर दिन हजारों भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार मोदक, भगवान गणपति का पसंदीदा व्यंजन है, इसलिए बाकी मंदिरों की तरह यहाँ भी इन्हें मोदक का भोग लगाया जाता है। पर्यटकों के लिए गणपतिपुले एक आदर्श स्थान है क्योंकि यहाँ 400 साल पुराना गणेश मंदिर है जो अपनी शक्तियों के लिए जाना जाता है।
दर्शन का सही समय
दोस्तों, अगर आप गणपतिपुले मंदिर के दर्शन के लिए जा रहे हैं, तो आपको सबसे पहले मंदिर के दर्शन का सही समय जरूर पता होना चाहिए। गणपतिपुले मंदिर सुबह 5 बजे खुल जाता है और रात को 9 बजे बंद हो जाता है।गणपतिपुले मंदिर में सुबह 6 बजे आज शाम 7 बजे आरती होती है। दोस्तों, कहा जाता है कि गणपतिपुले घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से अक्टूबर के बीच में होता है। इस दौरान यहाँ काफी पर्यटक घूमने के लिए आते हैं।
गणपतिपुले मंदिर कैसे पहुंचें?
दोस्तों, गणपतिपुले में कोई हवाई अड्डा नहीं है क्योंकि यह एक छोटा-सा तटीय शहर है। गणपतिपुले मंदिर रत्नागिरी, मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। रत्नागिरी और मुंबई का भारत और दुनिया के अन्य महत्वपूर्ण शहरों के साथ बेहतरीन सड़क, रेल और हवाई संपर्क है। इसलिए गणपतिपुले मंदिर तक पहुंचने के लिए आप अपनी सुविधानुसार कोई भी साधन लें सकते हैं। दोस्तों, यहाँ से सबसे पास में रत्नागिरी हवाई अड्डा है। हवाई अड्डा से बस, टैक्सी या कैब लेकर आप यहाँ आसानी से पहुंच सकते हैं। इसके अलावा यहां से सबसे पास में रत्नागिरी रेलवे स्टेशन है। जहाँ से देश के किसी भी हिस्से से ट्रेन लेकर आप रत्नागिरी रेलवे स्टेशन तक पहुंच सकते हैं। रेलवे स्टेशन से बस, टैक्सी या कैब लेकर आप आसानी से इस प्रसिद्ध मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
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