२०२० चालू हुआ और सोच रखा था कि इस साल यादगार ऐसे २० ट्रेक तो करने ही है। लेकिन कारोना २०२० की जय हो बोलकर मार्च से ही घर में अटक गए थे। इस दुनिया ने एक नई दुनिया का भयानक चेहरा देखा। सब के लिए ये साल खतरों के खिलाड़ी से कम नहीं था। अभी कुछ दिनों पहले उत्तेरखंड ट्रिप से वापस आने के बाद सोचा १५ दिन बचे है लास्ट का एक ट्रेक तो बनता है। और वो भी थोड़ा डिफिकल्ट लेवल करते है। दोस्तो के संग ही गोरखगड़ का नाम सोच लिया था। लेकिन वो प्लान बनने से रहा। लेकिन सोच लिया था। करेंगे तो गोरख गड़ ही। तभी इंस्टाग्राम पे सह्याद्रि रेंजर का मुझे चाहिए था उसी तारीख का गोरख गड़ ट्रेक था। मैं ने एक पल भी देर ना करते हुवे बुक कर लिया । तुषार मेरा दोस्त जो इसान मेरे किसी भी प्लान को सुने ने पहले ही हा करनेवाला इंसान यह भी तयार हो गया। १९ को रात को हम निकालनेवाले वाले थे। ऑफिस में टाइम जा नहीं रहा था। वैसे तो मेरा ३० ट्रेक था। लेकिन पहले नाइट ट्रेक था। इसलिए जादा उस्सहित थी। वैसे तो सह्याद्रि रेंजर ने दो दिन पहले ही ग्रुप बना दिया था। तो बिना देखे नए दोस्तो से मस्ती चालू हो गई थी। अभी सिर्फ ट्रेक चालू होना बाकी था।
रात को ९.२० को मेरा पिकअप था मुंबई खार के टीचर्स कॉलनी स्टॉप से, तुषार भी वही आगया था। वही पहली मुलाकात हमारी अहमद से हुई, और हमारा ट्रेक चालू हो गया था। बस से पहले ही सूरज जो सह्याद्रि रेंजर के फाउंडर है, वो मिले। कुछ काम के कारण वो हमारे साथ आने वाले नहीं थे। बाकी बस आगई और हम बस में चढ़ गए। अंदर जाते ही आदित्य, लॉय्येड और पर्सी से मुलाकात हुई । वही थे जिनकी वजह से २ दिन से ग्रुप पे धमाल कर के रखी थी। और आगे के किए हम निकाल पड़े । टीम लीडर ने हमारा टेंप्रेचर एंड हार्ट बीट चेक कर के सनेटाइज किया। और आगे के लिए हम निकाल पड़े। कल्याण के बाद रीयल ट्रेक चालू हुआ। और चालू हुवी फूल धमाल मस्ती .. फूल टू डांस चालू हुआ। उसी डांस करते वक्त देहरी गाव कब आया मालूम ही पड़ा। देहरी गाव गोरखगड का बेस विलेज है। रात के २ बजे हम पोच गए थे। उतारने के बाद फ्रेश हुए और पोहे और चाय के साथ एक इंट्रो राउंड हुआ। सब की अच्छे से पहचान हुई। हमारे ट्रेक लीडर टीना, जुगल और नरेन थे।
२.३० बजे हमने ट्रेक चालू किया। मैं बहुत उस्साहित थी। पहेला नाइट ट्रेक था। रात को अंधेरा जंगल का मोहल बहुत ही सुकून ड दे रहा था। बीच बीच में चलने वाले नए दोस्तो के जोक ने नीद ही उड़ गई थी। जोरदार ठंडी होगी ऐसा लगा था। लेकिन पसीने से लटपट हो गए थे। ४.३० के आस पास हम गोरख गड़ के दरवाजे के पास पोहच गए। सूर्योदय होने की राह देखने वाले थे। थोड़ी देर रुक गए। थोड़ी सी पेट पूजा कर के उप्पर जाने का सोच लिया। क्यूंकि ठंडी बढ़ने लगीं थी। शायद हम रुक गए थे इस वजह से वो समझे में आने लगा। ट्रेक लीडर के मदत से हमें वो स्टेप चढ़ना चालू किया। चढ़ते समय अधेरा होने के कारण डर नहीं लग रहा है। लेकिन आते वक्त फट ने वाली है ये समझ आने लगा था। सुबह के ५.३५ को हम शिखर पर पहोच गए थे। वो खुशी मैं बाया नहीं कर सकती। क्यू कि में पहले पोहोच गई थी। लेकिन हमेशा से मुझे होने वाली ट्रेक्किंग की तकलीफ नहीं हुई। इस वजह से मैं बहुत खुश थी। अभी तो सिर्फ सूर्योदय का इंतजार था। मेरा पहली बार थी, किसी फोर्ट से सूर्योदय देखना का मौका मिलना। लेकिन ठंडी का मौसम होने के कारण उसने हमे बहुत तरसा रहा था। और ७.३० बजे के बाद हमे उसके दर्शन हुए। और जैसे किं वो आके मुझे आशीर्वाद दे रहे है। वो सूरज किरणे और भी ऐसे सूर्योदय को देखना का आशीवार्द से रहीं थी। फिर चालू हुआ हमारा फोटोशूट। और ग्रुप फोटो निकाल के हम नीचे उतरना चालू किया। रात के अंधेरा का मजा अब दिन के घबराहट में बदल गया था। आते वक्त अंधेरा होने कारण उपर चढ तो गये लेकीन अब सब दिख रहा था। और नीचे दिखने वाली खाई बहुत डरावनी लग रहीं। हर स्टेप में एक भयानक सा डर लग रहा था । २ स्टेप तो मेरी जान ही निकाल गई थी। इश्क मूवी का आमिर वाला राम राम का सीन सामने आ गया था। एक साइट घनी खाई और छोटे छोटे स्टेप डाल के में उतर रही ही। Go pro निकालने की बहुत इच्छा हो रही थी। लेकिन टाइम भी ठीक नहीं था और ट्रेक लीडर चिल्ला भी रहे थे। मतलब उनका काम था हमे अच्छे से नीचे लेके आना लेकिन मेरे अंदर का फोटोग्राफर उभर रहा था। लेकिन वो खाई उसे बाहर नहीं आने डी रहा था। दो जगह मुझे तो बाप्पा दिखने लगे थे। लेकिन सह्याद्रि रेंजर और नए दोस्तो ने बहुत ही खूबी से मुझे और सब को सुरक्षित नीचे उतारा। अभी आते वक्त फोर्ट को अच्छे से देखना था। अभी सब साहसिक स्टेप खत्म हो गए थे। फिर हम गोरख के यह कि गुफा में आकें रुक गए। सह्याद्रि मे आयी और कोई मिला नहीं ऐसा हुआ नहीं। गुफा में से आवाज आई वो trekophy कंपनी के अमोल सर थे। बहुत दिनों के बाद मिलने से सुपर खुशी हुवि। बाकी यह वहा की बाते करके नीचे उतरने लगे। गोरख गड़ मे गुफा के साथ पानी के कुंड भी है ।गोरख गड़ के साथ सामने मचिंद्र गड़ भी है। ये दोनों सह्याद्रि के घाट के रास्तों पे नज़र रखने के किए बनाए गए थे। इस तरह ही गड़ के उपर गोरक्ष नाथ महाराज कि प्राचीन समाधि और महादेव जी का मंदिर है। इसके अलावा और भी प्राचीन शिलालेख ,सातकर्णी प्राचीन शिल्पकृति और छुपे हुए दरवाजे देखने जैसे है। ये सब देखते हुए हम नीचे उतर रहे थे। ११.३० बजे हम नीचे उतर गए। नीचे देहरी गाव का विट्टल मंदिर है। वहा फ्रेश होने की अच्छी सुविधा है। और वो मंदिर भी बहुत ही सुंदर है। नीचे उतर के फ्रेश हो कर मस्त खाने पें ताव मर दिया। गांव के चुले पे बना स्वादिष्ट खाना खा ट्रेक खत्म हुआ। उसके बाद हम बहुत सारी यादें लेके मुंबई के लिए रवाना हुए।
२०२० मैं गोरख गड़ किया, ये सोच कर खुश हो रही थी। सह्याद्रि रेंजर का सुपर इवेंट के वजह से ये मौका मिला। सभी नए दोस्तो के साथ सह्याद्रि रेंजर का बहुत सारा शुक्रिया 😍🙏
गोरख गड़ कैसे पोहचे :
कल्याण के माध्यम से: -
गोरखगढ़ पहुँचने के लिए, मुंबईकरों को कल्याण से यात्रा करनी चाहिए, मुरबाड से - म्हासा - देहरी फात्या के माध्यम से धसई गांव में आते हैं। निजी जीप या एसटी सेवा यहां से डेहरी तक उपलब्ध है। डेहरी गांव से, दो शंकु सामने देखे जा सकते हैं। छोटा शंकु मच्छिंद्रगढ़ का है और बड़ा शंकु गोरखगढ़ का है। गांव में विठ्ठल के मंदिर में कोई भी ठहर सकता है। मंदिर के पीछे स्थित वन पथ को गोरखगढ़ की चट्टान में खोदे गए दरवाजे तक पहुंचने में एक से डेढ़ घंटे लगते हैं। इस मार्ग से किले तक पहुंचने में दो घंटे लगते हैं।
कहा रहे : किले की एक गुफा में 20-25 लोग आराम से रह सकते हैं। देहरी गांव में रुक सकते है।
भोजन: किले में भोजन की कोई सुविधा नहीं है। भोजन की व्यवस्था आपके द्वारा की जानी चाहिए। देहरी गाव मे आप को भोजन मिल सकता है
पानी की आपूर्ति: किले पर बारहमासी पानी के टैंक हैं।
यात्रा का समय: डेहरी से होकर 2 घंटे लगते हैं। पर्वतारोहण में अनुभव के बिना एक शंकु पर चढ़ने की हिम्मत मत करो।