मीलों दूर सामने आकाश और धरती क्षितिज पर एक दूसरे में घुल रहे हैं। एक पतली सी सड़क है, जिसके दोनों और फैला है हरा घास का मैदान। सर्दियों में घास के ये मैदान सफ़ेद बर्फ़ की चादर के आग़ोश तले दब जाते हैं। बीच में एक छोटा सा पुल है, जिसके आगे भी पहाड़ हैं और पीछे भी। थोड़ा आगे चलता हूँ तो कुछ पीले फूलों का छोटा सा बागीचा नज़र आता है। हरा मैदान और नीला आसमान जब एक दूसरे में मिलते हैं तो सूरज की पीली दूधिया रौशनी उस पर एक अलग ही क़िस्म की कलाकारी करती है।
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आपकी आने वाली पहली ट्रिप कल्गा और पुल्गा की हो तो नज़ारे कुछ ऐसे ही होने वाले हैं। पार्वती घाटी को छूने के बाद लोगों का दिल अक्सर कल्गा और पुल्गा का नाम सुनकर मचल ही जाता है।
कल्गा
तो आइए, सबसे पहले सुनते हैं कल्गा की कहानी। यहाँ पर पहुँचता हूँ तो 90 के दशक का ज़माना आँखों के आगे चित्रहार हो जाता है। एक गाँव, जहाँ पर लकड़ी के दस पंद्रह होटल हैं। उनके नीचे नान वाला तंदूर रखा है, सर्दियों के मौसम में यही तंदूर हाथ तापने के भी काम आता है। सुबह उठते ही पहाड़ों से निकलती सूरज की किरणें आपको जगाती हैं तो बिस्तर में दुबककर सोने की इच्छा कम होती है, दिल करता है बाहर निकलकर नई सुबह का स्वाद चखा जाए। हल्की मीठी ठण्ड इस मौसम को और ख़ुशबहार कर देती है। अपने पारम्परिक परिधान में पहने हुए लोग वैसे ही सुन्दर लगते हैं जैसे तमिलनाडु की महिलाएँ कांजीवरम साड़ी और और पंजाब के लोग अपने रंगबिरंगी पगड़ियों में, मानो स्वाद ही आ जाता है यहाँ होने का।
पुल्गा
पुल्गा भी कुछ ऐसा ही है। बस नवम्बर की सर्दियों में पेड़ पर भारी भरकम सेब लटकते हों तो मेरे अन्दर का चोर अपने आप जाग उठता है। मुश्किल से तीन से चार किमी0 का छोटा सा ट्रेक है कल्गा से पुल्गा के लिए। ये पूरा करने में अधिकतम 2 घंटे लगेंगे अगर बिल्कुल आराम-आराम से भी चले तो। कुछ कैफ़े भी हैं यहाँ पर जो सर्दियों के मौसम में लोगों के धूप सेंकने का गवाह बनते हैं। चाय की चुस्कियाँ यहाँ भी उतनी मीठी हैं, जितनी कि कल्गा में। एक शान्ति, जो शहर में नहीं है; यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है।
पुल्गा के पास एक फ़ेयरी जंगल भी है, जिसे पार करने के बाद पहाड़ और ख़ूबसूरत दिखते हैं। ये ट्रेक कुल तीन घंटे का होता है, लेकिन इस घने जंगल को पार करने के बाद जो सुख पाते हैं आप, वो भी अनमोल है।
ये तो रहा मेरे दिल का क़िस्सा, अब कुछ ट्रैवल के लिहाज़ से ज़रूरी बातें।
घूमने के लिए दूसरी जगहें
पार्वती घाटी
कल्गा और पुल्गा के बाद नज़दीक ही पार्वती घाटी के छोटे से ट्रिप का प्लान तो बनाया ही जाना चाहिए।
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खीरगंगा
खुले आसमान में पहाड़ों के बीच नहाने का क्या आनन्द होता है, ये अगर जानना है तो आपको खीरगंगा के सफ़र पर निकलना चाहिए। हर साल सैलानियों का एक बड़ा जत्था यहाँ अपनी छुट्टियाँ मनाने आता है। अगर कल्गा पुल्गा आते हैं और यहाँ नहीं जाते तो बुरा लगेगा ना उसको।
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तोष
कुल्लू मनाली, मैक्लोडगंज और कसोल के रास्ते मुसाफ़िरों का सफ़र तोष भी पहुँचता है। मैंने पहले बार किसी को सूरज की पहली धूप के साथ बाँसुरी बजाते हुए एक मुसाफ़िर को यहीं देखा था। संतोष पाना हो, तो तोष ज़रूर आएँ।
रहने के लिए
रहने के लिए कल्गा और पुल्गा में आपको कम बजट में कमरे मिल जाएँगे। सिंगल के लिए भी और कपल के लिए भी। डबल बेड रूम मिलेगा, जिसमें ऑफ़ सीज़न की क़ीमत ₹400 की होगी। उनकी लिए आप ऑनलाइन बुकिंग भी कर सकते हैं और वहाँ पहुँचकर भी। सही मायनों में यही जगहें होमस्टे कहलाती हैं, जहाँ पर ठहराने वाला ही आपके खाने पीने और रहने का इंतज़ाम करता हो।
खाने के लिए
ढाबों और कैफ़े से सजा हुआ है कल्गा और पुल्गा का बाज़ार। बस पहुँचे नहीं कि आपको खाने पीने की सुविधा हो जाएगी।
खाने को लेकर तो आपको कोई ख़ास समस्या नहीं होगी, लेकिन हो सकता है वैराइटी को लेकर हो। चूँकि यह जगह अभी शिमला मनाली की तरह प्रसिद्ध नहीं है, इसलिए उनके जैसा रखरखाव भी मुश्किल है। आपको खाने में सामान्य चीज़ें, जैसे दाल चावल, रोटी, गोभी आलू टमाटर की सब्ज़ी।
कब जाएँ
सर्दियों में इस जगह का तापमान काफ़ी नीचे गिर जाता है। कई बार तो बर्फ़ भी पड़ने को होती है। अगर इतनी ठण्ड में आपको कोई दिक्कत नहीं, तो आप निश्चित रूप से सर्दियों का मौसम आज़माएँ, मेरी मानें तो गर्मियों का मौसम बेहतर रहेगा। क्योंकि गर्मियों में पहाड़ अपनी ठण्डी हवा से बार-बार आपका मन मोह लेते हैं। कैंपिंग और ट्रेकिंग वाली इस पहाड़ीदार जगह पर जाने का सबसे ख़राब समय है मॉनसून का समय। संभवतः आप यहाँ पर पहुँच ही ना पाएँ।
कैसे जाएँ
अक्सर तोश, खीरगंगा और पार्वती घाटी पर आने वाले मुसाफ़िर अपने लिए यहाँ का रास्ता भी अपना लेते हैं। तो यहाँ पर पहुँचने के लिए सबसे नज़दीकी जगह है बर्षैनी, उसके सबसे नज़दीक कोई जगह पड़ती है तो वो है भोले बाबा के प्रसादप्रेमियों का कसोल। वहाँ पहुँचने के लिए आप तीन तरह के मार्ग अपना सकते हैं।
रेल मार्गः कसोल के सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर का है, जो कि यहाँ से क़रीब 144 किमी0 दूर है। वहाँ से आपको कसोल के लिए टैक्सी या बस आराम से मिल जाएँगे।
हवाई मार्गः यहाँ से सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा भुंतर का है जो कसोल से क़रीब 31 किमी0 दूर है। यहाँ से टैक्सी लेने पर आप अधिकतम एक घंटे में कसोल पहुँच जाएँगे।
सड़क मार्गः सबसे सही रास्ता यही कहा जा सकता है। कसोल के लिए दिल्ली के आईएसबीटी कश्मीरी गेट से बसें चलती हैं जो क़रीब 12 घंटे में आपको मंज़िल तक पहुँचा देंगी। इसका किराया क़रीब ₹1500 होगा।
जब आप कसोल पहुँचेंगे तो वहाँ से आपको बर्षैनी के लिए बस पकड़नी होगी। यहाँ से बसें आसानी से मिल जाती हैं। बस रात के समय दिक्कत के आसार हैं। इसलिए ऐसा समय चुनें जब सुबह सुबह बर्षैनी पहुँचें।
अगर आपको कोई विशेष जानकारी चाहिए, तो कृपया कमेंट बॉक्स में पूछें।
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