किसी नई जगह को देखने और घूमने-फिरने का मजा तब दोगुना हो जाता है, जब मौका किसी उत्सव का हो। इसकी रौनक किसी भी घुमक्कड़ी को यादगार बना देती है। ऐसा ही एक मौका था, खजुराहो को खजुराहो महोत्सव के दौरान देखने का। खजुराहो, जो हर आज को अपने बीते कल की कहानी सुनाता है, कई सदियों की दास्तान। जरूरत है तो बस पलभर उसके पास ठहर जाने की, उस समय में खो जाने की, यह सवाल खुद से ही पूछने की कि आधुनिक हम हैं या वो बीता दौर। बता रहे हैं पंकज घिल्डियाल
हमारी घुम्मक्कड़ी टोली के हर सदस्य ने देश की कई आनंदित करने वाली जगहों को देखा है। कभी बर्फ से ढकी पहाड़ियों में स्केटिंग के लिए रातों-रात कूच किया है तो कभी सुनहरी रेत में सूर्यादय और सूर्यास्त का घंटों इंतजार किया है। मगर खजुराहो टूर कुछ अलग था। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के पन्ना और छतरपुर शहर के बीच में स्थित है, खजुराहो। खजुराहो जो बुंदेलखंड का एक ऐतिहासिक शहर है।
देसी खुशबू और स्वाद
दिल्ली से हमारी 12 लोगों की टोली सुबह शताब्दी से झांसी पहुंची। उसके बाद ओरछा, धूबेला होते हुए हम पहुंचे देश के ऐतिहासिक शहर खजुराहो। शाम करीब 5 बजे खजुराहो में पहले से ही बुक एमपी टूरिज्म के होटल पायल पहुंचे। शाम सात बजे पैदल घूमते हुए 10 मिनट बाद हम खजुराहो डांस फेस्टिवल के मुख्य द्वार पर थे। यहां आकर एक मिनी सूरजकुंड मेला (हरियाणा) देख बहुत सुकून मिला। लोग कोई दूरदराज के गांवों से आए बुनकरों के स्टॉल्स में खरीदारी कर रहे थे तो कुछ स्टेज शोज का आनंद ले रहे थे। लोगों की चहलकदमी और उनकी आवाजों के बीच लगा जैसे सालभर से रुकी हुई जिंदगी की ट्रेन पटरी पर आ गई है।
फूड के बहुत से स्टॉल थे यहां। हमें एक स्टॉल में पारंपरिक अंदाज में पंगत में बिठा कर बड़े ही प्रेम से भोजन परोसा गया। सालों बाद इस तरह मिट्टी की खुशबू के बीच लजीज खाने का आनंद लिया। पत्तलों में परोसे गए कढ़ी-चावल, पूड़ी-सब्जी, सूखी व रसीली सब्जी, बेसन की पपड़ी, आम का अचार, कच्चे आम की चटनी, गुड़ के लड्डू आदि सबका स्वाद एकदम देसी था। वॉटसएप मैसेज में 9.30 बजे एक जगह मिलने का मैसेज कर हम दो लोग जिन्हें फोटोग्राफी का शौक था सीधे डांस मंच की ओर बढ़े। बैकग्राउंड में खजुराहों के मंदिर और आगे विभिन्न डॉन्स फॉर्म ने दर्शकों का मन मोह लिया। अमूमन मेट्रो शहरों के अलावा 9 बजे के बाद दूसरे शहरों में सन्नाटा पसरने लगता है, मगर यहां ऐसा नहीं था। लोग पैदल और गाड़ियों में घूमते हुए दिखे। पूरा शहर एक सप्ताह चलने वाले खजुराहो नृत्य समारोह के रंग में रंगा था।
गांव के रंग
हम तय कार्यक्रम के अनुसार अगली सुबह 6.30 बजे गांव की झलक देखने के लिए निकल पड़े। सड़कों को फेस्टिवल के कारण खूब चमकाया हुआ था। थोड़ी देर बाद पैदल-पैदल चलते हुए हम ऐतिहासिक महत्त्व वाले ओल्ड खजुराहो विलेज पहुंच चुके थे। गांव में 4 ऐसे बड़े मंदिर हैं, जो भले ही आज जर्जर हालत में हों और पूजा-अर्चना किए जाने वाले मंदिरों में न गिने जाते हों, मगर इन्हें देखना उसी सदी में पहुंचने जैसा ही है। गांव के हर कोने में ये मंदिर बने हुए हैं। गांव के चौक-चौराहों पर पुरानी मूर्तियां दिखाई देनी शुरू हो जाती हैं। गांव की शुरुआत में एक बड़े तालाब के किनारे बने ब्रह्मा मंदिर से होती है। पानी में मंदिर का रिफलेक्शन अद्भुत लगता है। इसी तरह जावेरी, वामन आदि मंदिर खुद ही अपनी ऐतिहासिक कहानी कहते हैं। आप इनके परिसरों में घंटों बिता सकते हैं।
चौराहे पर खड़े ग्रामवासी संजय द्विवेदी ने बताया कि पक्के मकान बनाने की रफ्तार में पिछले दस साल में तेजी आई है। दुखी मन से उन्होंने बताया कि जब आप अगली बार आएं तो शायद ही कोई पुराना घर दिखे। जगह-जगह पुराने शिवलिंग में पूजा करते हुए लोग, सिर पर घास-फूस और गोबर के बड़े टोकरे लिए महिलाएं नजर आ रही थीं। गाय-बैलों के गले की टन-टन बजती घंटी मनमोहक धुन पैदा कर रही थी। करीब 3 घंटे गांव घूमने के बाद गांव के चौराहे से ऑटो लेकर हम सीधे खजुराहो के मुख्य द्वार पर पहुंचे। मेन गेट के साथ ही मतंगेश्वर शिव मंदिर है, जिसमें विशाल शिवलिंग है। मंदिर के पुजारी ने बताया है कि यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है, इस शिवलिंग पर मस्तक लगाने से हर मनोकामना पूरी होती है। यह शिवलिंग हर साल बढ़ता है।
वेस्टर्न ग्रुप
कुछ देर बाद हम वेस्टर्न ग्रुप के मंदिर कैंपस में थे। भले ही खजुराहो को समझने के लिए आपने इतिहास के पन्ने न पलटे हों, मगर यहां जैसे-जैसे मुख्य द्वार से आगे बढ़ते हैं खजुराहों के मंदिर खुद अपनी कहानी बयां करते हैं। उस समय की जीवनशैली, राजाओं का रहन-सहन सब कुछ खुद-ब- खुद समझ आने लगता है। यहां हर मंदिर दूर से एक जैसा लगता है, लेकिन सबकी अलग खासियत है। कैंपस में प्रवेश करते ही एक बोर्ड दिखता है, जिस पर खजुराहो के बारे में लिखा है। चंदेल राजाओं ने खजुराहो में 85 मंदिर बनवाए थे, लेकिन अब सिर्फ 22 ही बचे हैं। यहां के लिए आपके साथ एक अनुभवी गाइड का होना बेहद जरूरी है। हमें इस शहर को महज देखना ही नहीं था, बल्कि बटोरने थे ढेर सारे अनुभव।
गाइड ने सबसे पहले वराह मंदिर दिखाया। वराह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर आयताकार बना हुआ है। ये मंदिर 14 खंभों पर खड़ा है और पिरामिड स्टाइल में बना है। मंदिर में भगवान विष्णु के वराह रूप की 2.6 मीटर लंबी मूर्ति स्थापित है। इसकी खास बात ये है कि पूरी मूर्ति में अनगिनत देवी-देवताओं की छोटी-छोटी प्रतिमाएं बनी हुई हैं। मूर्ति की नीचे एक सांप बनाया गया है। मंदिर के छज्जे पर बेहतरीन नक्काशी है। लक्ष्मण मंदिर यहां से ठीक सामने है। लक्ष्मण मंदिर को 930 ईस्वी में राजा यशोवर्मन ने बनवाया था। इस मंदिर का नाम तो लक्ष्मण है, लेकिन ये भगवान विष्णु का मंदिर है। यह पंचायतन शैली में बना हुआ है। मंदिर के अंदर भी चारों तरफ छोटी-छोटी मूर्तियां हैं। मंदिर के भीतर कोई खिड़की नहीं है, लेकिन मूर्ति पर पड़ रही रोशनी से दर्शन साफ-साफ हो जाते हैं। खजुराहो का नाम आते ही आमतौर पर लोगों के जेहन में सिर्फ कामुक मूर्तियां ही आती हैं, मगर ऐसा नहीं है। मंदिरों की दीवारों पर नृत्य करती हुए प्रतिमाएं तो हैं ही, यहां योग करती हुई मूर्तियां भी है। धार्मिक अनुष्ठान, शिकार, संस्कृति और लोगों का जनजीवन कैसा था, ये सब इन मूर्तियों को देखकर समझ आता है।
कंदारिया महादेव
यहां से थोड़ी ही दूर कंदारिया महादेव मंदिर भी है। ये इन सभी मंदिरों से सबसे बड़ा और खूबसूरत है। ये मंदिर रथ शैली का बना हुआ है। दूर से देखने पर ये मंदिर रथ की तरह दिखाई देता है। 117 फुट ऊंचे, 117 फुट लंबे और 66 फुट चौड़े इस मंदिर के अंदर-बाहर बहुत-सी मूर्तियां हैं। इसके अलावा यहां जगदंबी मंदिर भी है। वेस्टर्न ग्रुप की कुछ मूर्तियां टूटी-फूटी हालत में भी यहां दिखीं। ये उन हमलों की गवाह हैं, जो विदेशी आक्रमणकारियों ने किए। चंदेल वश के द्वारा बनाये गए ये मंदिर आज विश्वभर में प्रसिद्ध हैं।
कॉम्पेलक्स में मौजूद हर मंदिर भव्यता, संपन्नता और शक्ति का प्रतीक है। हिन्दू और जैन धर्म के मंदिरों का सबसे बड़ा समूह, खजुराहो में स्मारकों का समूह, दुनिया की सबसे खूबसूरत और प्रसिद्ध ऐतिहासिक विरासतों में से एक है। मुख्य तौर पर अपनी वास्तु विशेषज्ञता, बारीक नक्काशियों और कामुक मूर्तियों के लिए जाना जाने वाली यह रचना यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर की सूची में भी शामिल है।
खजुराहों एक नजर
खजुराहो टैंपल का समय : सुबह 8 से शाम 6 बजे, टिकट: 40 रुपए, 15 साल से नीचे के उम्र के बच्चों के लिए प्रवेश मुफ्त है
फेस्टिवल: हर साल फरवरी-मार्च, खजुराहो डांस फेस्टिवल का सप्ताह भर तक
नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन: खजुराहो झांसी, सतना, छत्तरपुर, महोबा, अगरा, वाराणसी, भोपाल, इंदौर ग्वालियर से जुड़ा हुआ है।
ई बाइक टूर
वेस्टर्न ग्रुप से ईस्टर्न ग्रुप टेंपल तक 7 किमी (समय 2 घंटे)
हेरिटेज वॉक
वेस्टर्न ग्रुप से लेकर कंदारिया महादेव मंदिर होते हुए लक्ष्मण टेंपल तक (समय 2 घंटे) प्रवेश सुबह 8 बजे से
कैंम्पिंग
बहुत से ऑपरेटर कैम्पिंग करवाते हैं।
विलेज टूर
ओल्ड खजुराहो विलेज टूर, लालगौन विलेज टूर