नासिक: वाइन कैपिटल ऑफ इंडिया... आपके अगले Weekend को Wow बनाने की एक परफेक्ट जगह

Tripoto
12th Sep 2023
Photo of नासिक: वाइन कैपिटल ऑफ इंडिया... आपके अगले Weekend को Wow बनाने की एक परफेक्ट जगह by रोशन सास्तिक

आपने नासिक का नाम सुना है? हां वही जहां हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन होता हैं। हालांकि नासिक की पहचान सिर्फ कुंभ मेले की वजह से ही नहीं है। यह इलाका अपने अंगूर की खेती के लिए भी जाना जाता है। यहां मौजूद सुला वाइनयार्ड जैसी जगह की वजह से नासिक को भारत का वाइन कैपिटल तक कहा जाता है। नासिक की खुशनसीबी इतनी कि यह हनुमान जी और गोदावरी नदी की जन्मस्थली भी है। और तो और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग भी नासिक में ही मौजूद है। कहानी यहीं खत्म नहीं होती। क्योंकि भगवान राम जी के वनवास के एक बड़े हिस्से का नाता भी नासिक से जुड़ा हुआ है। लक्ष्मण जी द्वारा इस इलाके में रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काटे जाने की वजह से ही इस जगह का नाम नासिक पड़ा। इतने सारे धार्मिक मामलों से गहरा संबंध रखने के चलते नासिक को महाराष्ट्र की आध्यात्मिक राजधानी का तमगा भी हासिल है।

Photo of नासिक: वाइन कैपिटल ऑफ इंडिया... आपके अगले Weekend को Wow बनाने की एक परफेक्ट जगह 1/1 by रोशन सास्तिक

तो चलिए आज हम जानते हैं कि देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से करीब 150 किमी और महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे से करीब 200 किमी दूर स्थित नासिक शहर को अगर अगले वीकेंड पर घूमने का मौका मिले; तो इसकी योजना कैसी होनी चाहिए।

DAY-1

मुक्तिधाम मंदिर

धर्म मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। इसलिए महाराष्ट्र की धार्मिक राजधानी नासिक में हम अपने पहले दिन की शुरुआत भगवान श्री कृष्ण को समर्पित मुक्तिधाम मंदिर से करेंगे। नासिक रेलवे स्टेशन से महज 10 मिनट की चहलकदमी करते हुए आप मुक्तिधाम मंदिर के प्रांगण पहुंच जाएंगे। साल 1971 में बनकर खड़े हुए मुक्तिधाम मंदिर की खास बात यह है कि यहां 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृति बनाई गई हैं। यानी एक छत के नीचे ही आपको सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन हो जाएंगे। सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक भक्तों के लिए खुले रहने वाले मुक्तिधाम मंदिर में ज्योतिर्लिंग के अलावा सभी प्रमुख हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं।

कालाराम मंदिर

इस मंदिर का निर्माण साल 1790 में सरदार रंगराव नामक व्यक्ति द्वारा किया गया। सरदार रंगराव ने एक रात सपने में देखा कि गोदावरी नदी में भगवान राम की काले रंग की मूर्ति पड़ी हुई है। अगले ही दिन जब गोदावरी नदी से भगवान राम की काले रंग के पत्थर से बनी मूर्ति उनके हाथ लगी, तो उन्होंने राम मंदिर का निर्माण कराया। भगवान राम की मूर्ति का रंग काला होने की वजह से मंदिर का नाम कालाराम मंदिर पड़ गया। उस जमाने में करीब 2000 लोगों की 12 साल की मेहनत और कलाकारी का बेहद नायाब नतीजा है कालाराम मंदिर। करीब 70 फीट ऊंचे कालाराम मंदिर का शिखर 27 टन सोने से बनाया गया है। इस मंदिर की खास बात यह है कि 96 पिलर्स के सहारे खड़े इस मंदिर में चारों दिशाओं से प्रवेश किया जा सकता है।

राम कुंड

कालाराम मंदिर से बाहर निकलकर महज 500 मीटर की दूरी पर ही बहती गोदावरी नदी पर राम कुंड स्थित है। और इस जगह का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व है। क्योंकि मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान राम इसी जगह पर स्नान किया करते थे। यह भी कहा जाता है कि भगवान राम ने अपने पिता श्री दशरथ महाराज की अस्थियों का विसर्जन भी इसी जगह किया था। यही वजह है कि हिन्दू धर्म से जुड़े लोग अपने प्रियजनों की आत्मा की शांति के लिए उनकी अस्थियों को विसर्जित करने की खातिर भी राम कुंड आते है। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सरीखी हस्तियों तक की अस्थियों का एक हिस्सा राम कुंड में विसर्जित किया गया है। इसलिए यहां आने के बाद इस कुंड में भक्तिभाव के साथ डुबकी लगाने का मौका मत चुकिएगा।

सीता गुफा

तो भगवान राम जी के कुंड में स्नान के बाद हम चल देंगे माता सीता जी का पूजा घर देखने। पंचवटी में माता सीता एक गुफा के अंदर भगवान शिव जी की पूजा करती थीं। संकरी सीढ़ियों की मदद से नीचे मौजूद एक प्राचीन गुफा में उतरने के बाद आपको वहां आज भी पुरातन शिवलिंग के दर्शन हो जाएंगे। गुफा के अंदर भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की मूर्तियां बनी हुईं हैं। गुफा के बाहर अति प्राचीन पांच बरगद के पेड़ हैं। इनकी वजह से ही इस इलाके का नाम भी पंचवटी पड़ गया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रावण ने इसी जगह से माता सीता का हरण किया था। इसलिए इस स्थान पर आकर सनातन धर्म से जुड़ी ऐसी अति महत्वपूर्ण स्थल पर माथा जरूर टेकना चाहिए।

तपोवन

सीता गुफा से महज 2.5 किमी दूर तपोवन रामायण से जुड़ा एक महत्वपूर्ण स्थल है। भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी ने अपने वनवास के दौरान का ज्यादातर समय इसी वन में रहकर बिताया था; इसलिए इस जगह को तपोवन कहा गया। तपोवन ही वह इलाका है जहां पर लक्ष्मण जी ने रावण की बहन शूर्पनखा की नाक काटी थी। और फिर इसी बात का प्रतिशोध लेने के लिए रावण ने माता सीता का हरण किया। लक्ष्मण जी द्वारा शूर्पनखा की नाक यानी नासिका काटे जाने की घटना के चलते ही कालांतर में इस स्थान का नाम नासिक पड़ा। गर्मियों के दिनों में जब गोदावरी नदी का जलस्तर बहुत कम हो जाता है, तब आप उस स्थान को देख सकते हैं जहां शूर्पनखा की नाक कट कर जा गिरी थी।

श्री अंबिका मिसल-पाव

पहले दिन सुबह से लेकर दोपहर तक उपर्युक्त सभी धार्मिक जगहों के दर्शन के जरिए मन को तृप्त करने के बाद हम अपने पेट से आ रही आवाज की ओर भी ध्यान देंगे। इसके लिए आप स्वादिष्ट स्थानीय व्यंजनों का सहारा ले सकते हैं। बाकी आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नासिक का मिसल-पाव महाराष्ट्र भर में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। हमारे हिसाब से आप मंदिर दर मंदिर भटकने के बाद पैदा हुई भूख को मिसल पाव के जरिए बड़े प्यार से मसला सकते हैं। पंचवटी में ही आपको मिसल-पाव के लिए प्रसिद्ध 'श्री अंबिका मिसल-पाव' रेस्टोरेंट मिल जाएगा। झन्नाटेदार मिसल-पाव के जायके के जरिए आप अपना दिन बना सकते हैं। हम पेट पूजा करने और फिर थोड़ी देर वहीं सुस्त सुस्ता लेने के बाद नए जोश और जुनून के साथ पंचवटी को अलविदा कह कर अपने अगले पड़ाव की ओर चल देंगे।

पांडवलेनी गुफा

हमारा अगला पड़ाव यानी पड़ावलेनी गुफा पंचवटी से करीब 10 किमी दूर स्थित है। यहां पहुंचकर हम एक बार फिर अध्यात्म और इतिहास के संगम की दहलीज पर होंगे। पांडवलेनी गुफा दरअसल 24 बौद्ध गुफाओं का समुच्चय है। इनका निर्माण 300 ईसवी पूर्व से लेकर ईसवी सन 200 के दौरान किया गया। इससे आप इनकी ऐतिहासिकता का अंदाजा लगा सकते हैं। वैसे पहाड़ पर स्थित चट्टानों को काटकर बनाई गईं इन गुफाओं के बारे में यह भी कहा जाता है कि इनका निर्माण पांडवों द्वारा किया गया। इसलिए इसका नाम पांडवलेनी गुफा पड़ गया। और यह वाक्य इस जगह के धार्मिक महत्व को स्थापित कर देता है। करीब आधे घंटे की चढ़ाई के बाद इन 24 गुफाओं के साथ कुछ देर तक आध्यात्म और अतीत से बातचीत करने के बाद हम यहां से अपनी अगली मंजिल की ओर मुड़ जाएंगे।

श्री धर्मचक्र प्रभाव तीर्थ जैन मंदिर

पांडवलेनी से करीब 5 किमी का सफर तय कर आप एक बेहद ही ज्यादा खूबसूरत जैन मंदिर को अपनी आंखों के सामने पाएंगे। गुलाबी रेत के पत्थर और सफेद संगमरमर से बनाए गए इस मंदिर की आभा ऐसी कि पहली बार देखने वाला इसे काफी देर तक बस एक टक देखता ही रह जाएगा। यह तीन मंजिला जैन मंदिर मुख्यतः भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है। इसके अतिरिक्त पंचधातु से बनी करीब 12 टन वजनी भगवान महावीर की मूर्ति भी यहां का प्रमुख आकर्षण बिंदू हैं। करीब 135 फीट ऊंचे इस मंदिर को तो बड़े सलीके से तराशा ही गया है। लेकिन इसके साथ ही इसका परिसर भी उतना ही अधिक सुंदर है। तो पहले दिन की थकावट को इस मंदिर के परिसर में बहती ठंड हवाओं के साथ बैठकर मिटा सकते हैं।

त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

शाम खत्म होने से पहले हम अपने इस सफर के सबसे अहम मोड़ पर पहुंच जाएंगे। हम बात कर रहे हैं 12 ज्योतिर्लिंग में से एक त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की। ब्रह्मगिरि पर्वत की ओट में स्थित त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग अकेला ऐसा ज्योतिर्लिंग हैं जहां आपको एक साथ ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों देवताओं के एक साथ दर्शन होते हैं। सुबह 5 बजे से लेकर रात 9 बजे तक त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के द्वार भक्तों के लिए खुले रहते हैं। त्रयम्बकेश्वर मंदिर का नजर आने वाला वर्तमान स्वरूप साल 1755 से 1786 के दौरान नाना साहेब पेशवा द्वारा बनाया गया। ब्रह्मगिरि पहाड़ से घिरा यह मंदिर बरसात के समय में बेहद दिव्य और भव्य नजर आने लगता है। मॉनसून के मौसम में इस जगह की प्राकृतिक खूबसूरती अपने चरम पर होती है। हम शिवलिंग के दर्शन और शाम की आरती में शामिल होने के बाद रात को ठहरने के लिए आसपास ही कोई ठिकाना ढूंढ लेंगे।

दूसरे दिन की शुरुआत हम तड़के सुबह 5:30 बजे से 6 बजे तक मंगल आरती में शामिल होकर त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के साथ करेंगे। और फिर यहां से निकलकर हम दूसरे दिन के दूसरे पड़ाव की ओर यानी ब्रह्मगिरि पर्वत की ओर चल देंगे। जहां हम गोदावरी के उद्गम स्थल का दर्शन करेंगे।

गोदावरी उद्गम स्थल

ब्रह्मगिरि पर्वत पर दक्षिण भारत की गंगा कही जाने वाली पवित्र नदी गोदावरी का उद्गम स्थल है। गोदावरी नदी की उत्पत्ति से जुड़ी कहानियों में एक कहानी ऐसी है कि जब भगवान शिव जी की जटाओं से हिमालय से गंगा जी धरती पर आईं। तब दक्षिण भारत में भी पानी की जरूरत को देखते हुए भगवान शिव जी ने अपनी जटाओं को ब्रह्मगिरि पर्वत पर झटका देकर शेष गंगा का पानी यहां प्रवाहित कर दिया। आज भी आपको इस पर्वत से पतली-पतली धाराओं के जरिए पानी नीचे गिरते नजर आएगा। वैसे गोदावरी नदी का कोई ठीक-ठीक उद्गम स्थल नहीं है। ब्रह्मगिरि पर्वत और इसके आसपास के इलाकों से गुजरते हुए इनका लुकाछिपी का गजब का खेल चलता रहता है।

हनुमान जी की जन्मस्थली

गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के दर्शन के बाद हम सीधे हनुमान जी के जन्मस्थान को देखने के लिए चल देंगे। त्रयम्बकेश्वर मंदिर से करीब 11 किमी की दूरी पर अंजनेरी पर्वत स्थित है। मान्यताओं की माने तो हनुमान जी का जन्म इसी पर्वत पर हुआ था। हनुमान जी की माता अंजनी के नाम पर ही पहाड़ का नाम अंजनेरी पड़ा। जमीन से करीब 4300 फीट ऊंचाई पर स्थित अंजनेरी पर्वत के शिखर पर पहुंचने के लिए आपको 2 घंटों की चढ़ाई करनी पड़ती है। इस काम में मेहनत तो हैं, लेकिन वहां से नजर आने वाले प्राकृतिक नजारे इतने ज्यादा सुंदर होते हैं कि उन्हें देखकर सारी थकावट दूर हो जाती है। दोपहर होने से पहले हम अंजनी माता के मंदिर में माथा टेक कर अपने अगले पड़ाव की ओर चल देंगे।

सुला वाइनयार्ड

नासिक में एक जगह से दूसरी जगह गुजरते वक्त आपने अनगिनत बार अंगूर की खेती देख ली होगी और इसका स्वाद भी चख लिया होगा। लेकिन अपने नासिक यात्रा के अंतिम पड़ाव पर हम ऐसी जगह जाएंगे जहां अंगूर से वाइन बनाने का काम होता है। और यह सब इतने बड़े स्तर पर होता है कि इस वजह से नासिक को भारत का वाइन कैपिटल तक करार दे दिया गया है।

अंजनेरी पहाड़ से करीब 15 किमी की दूरी पर गंगापुर डैम के पास ही स्थित है सुला वाइनयार्ड। साल 1999 में महज 30 एकड़ से शुरू हुआ सुला वाइनयार्ड का सफर बढ़कर अब करीब 1800 एकड़ जितने बड़े एरिया में फैल गया है। यहां बनने वाले वाइन को भारत समेत दुनियाभर में एक्सपोर्ट किया जाता है।

सुला वाइनयार्ड में सिर्फ वाइन बनाई ही नहीं जाती बल्कि इस पूरी प्रक्रिया को लोगों तक पहुंचाने के लिए एजुकेशनल टूर का भी आयोजन किया जाता है। लोग यहां करीब एक घंटे की टूर में वाइन बनने की पूरी प्रक्रिया को देख और समझ सकते हैं। इसके लिए आपको प्रति व्यक्ति करीब 250 रुपए देने होते हैं। टूर के दौरान आपको 5 तरह की वाइन टेस्ट करने के लिए भी दी जाती है। अगर आप वाइन टेस्ट नहीं करना चाहते और आपकी दिलचस्पी सिर्फ वाइनयार्ड घूमने की है तो फिर आपको काउंटर पर मात्र 100 रुपए अदा करने होते हैं।

इसके अलावा एक दिन के पिकनिक के लिए भी पर्यटकों के बीच सुला वाइनयार्ड की लोकप्रियता काफी ज्यादा है। सोमवार से लेकर शुक्रवार तक आप 600 रुपए प्रति व्यक्ति और शनिवार-रविवार के दौरान 1000 रुपए प्रति व्यक्ति खर्च कर पूरा एक दिन यहां बीता सकतें हैं। सुला वाइनयार्ड में वाइन टेस्ट करने के अलावा खाने-पीने, घुमने-फिरने और रहने की भी बहुत बढ़िया व्यवस्था है।

जनवरी से मार्च महीने के दौरान आप यहां अंगूर स्टॉम्पिंग यानी वाइन बनाने के लिए अंगूर को नंगे पैरों से कुचलने की प्राचीन रोमन प्रक्रिया का हिस्सा बन सकते हैं। यकीन मानिए अगर आपने एक बार इसका अनुभव ले लिया फिर इससे जुड़े यादगार अहसास को आप कभी नहीं भूल पाएंगे। वाइनयार्ड में शाम के वक्त जब दिन और आपकी यात्रा दोनों अपने समापन की और तेजी से अग्रसर हो रहे होंगे, तब अंगूर के बाग में टहलते हुए ढलते सूरज को अलविदा कहना आपके लिए मुस्कुराहट और मायूसी दोनों की वजह बन जाएगा। मुस्कुराहट इसलिए कि आपने बीते दो दिनों में कितना कुछ देखा और मायूसी इस बात की कि सब कुछ अब अतीत का हिस्सा हो गया है।

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