कोणार्क सूर्य मंदिर जाने से पहले ये बातें जरूर जान लेवे

Tripoto
Photo of कोणार्क सूर्य मंदिर जाने से पहले ये बातें जरूर जान लेवे by Rishabh Bharawa

रामायण से जामवंत जी को सभी जानते ही हैं। जामवंत जी हिन्दू धर्म के 7 चिरंजीवियों में से एक तो नहीं माने गए है। लेकिन वे त्रेता और द्वापर युग में रहे...चिरंजीवी मतलब जो लम्बे समय (या अनंत काल ) तक जीवित रहे। हनुमान जी,अश्वत्थामा भी ऐसे ही चिरंजीवी हैं जो अभी भी इस दुनिया में रह रहे माने जाते हैं। खैर ,आजकल चिरंजीवी पर फिल्में भी बन रही हैं जैसे हनु-मेन ,कल्कि आदि। रामायण में जामवंत जी ने ही हनुमान जी को अपनी शक्तियां याद दिलायी थी,वह बात थी त्रेता युग की। उसके बाद द्वापर युग में श्रीकृष्ण के साथ भी जामवंत जी की कथा वर्णित हैं। जामवंत जी के पास थी स्मंतक मणि (जिसे कोई कोहिनूर हीरे से भी जोड़ते हैं) जिसके लिए श्रीकृष्ण और जामवंत जी में युद्ध हुआ। श्रीकृष्ण जीत गए ,जामवंत जी की बेटी जाम्ब्वती से फिर श्रीकृष्ण का विवाह हुआ। इनके एक पुत्र हुआ नाम था -साम्ब।

यहाँ तक की गाथा मैंने कई दफा अलग-अलग जगहें पढ़ी थी। अब बात करते हैं आगे। जब अभी कुछ दिनों पहले में ओडिशा के गोल्डन ट्रायंगल टूर पर था। तो उसी दौरान कोणार्क के सूर्य मंदिर भी जाना हुआ ,वही मंदिर जिसके बारे में बचपन में स्कूल की किताबों में काफी पढ़ा था कि "कोणार्क के सूर्य मंदिर को ब्लैक पेगोडा भी बोलते हैं। "... यह मंदिर भारत के 7 वंडर्स में से एक माना जाता हैं और यह एक यूनेस्को हेरिटेज साइट हैं। अब ऐसी जगहों पर जाने से पहले वहां के इतिहास को पढ़ा जाना चाहिए,वहां की प्रचलित लोककथाओं को जानना चाहिए। तो मंदिर से पहले ही 50 रूपये का टिकट लेकर मैं मंदिर के इतिहास ,शैली ,बनावट आदि को समझने एक म्यूजियम में गया। इंटरनेट से मैंने पढ़ तो लिया ही था कि यह 13वी शताब्दी का मंदिर हैं जिसे माना जाता हैं कि राजा नरसिँह देव प्रथम ने बनवाया था। इसके अलावा यह मंदिर एक रथ के आकार में बना हैं जिसके 12 -12 पहियों के दो जोड़े लगे हैं और बीच में विराजमान हैं सूर्य देव।

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"ये पहिये 10 RS के नोट पर छपे हुए हैं। ये 12 पहिये साल के 12 महीने या दिन के 12 घंटे बताते हैं। सूर्य की पहली किरण मंदिर पर पड़ती हैं। मंदिर का गर्भगृह अंग्रजो ने रेत भरकर बंद करवा रखा है जो आज तक बंद हैं। अंदर कोई मूर्ति भी नहीं हैं ,असली मूर्ति जग्गन्नाथ मंदिर में रखी हैं, मूल मंदिर अब ज्यादा बचा नहीं हैं ,कई कारणों से टूटता गया। ", ये चीजें मैंने पहले ही इंटरनेट पर पढ़ ली थी। पर जो गाथा इंटरनेट पर पूरी नहीं थी वह थी इस मंदिर का श्री कृष्ण से कनेक्शन। इसी म्यूजियम में एक वीडियो फिल्म के माध्यम से यह गाथा मैंने जान पाया। जो आगे इस प्रकार हैं -

साम्ब को एक बार चतुराई से नारद जी ने श्रीकृष्ण से श्राप दिलवा दिया। जिससे साम्ब को कोढ़ हो गया। तब साम्ब को श्राप मुक्ति के लिए उपाय सुझाया गया कि सूर्य की पहली किरण कोणार्क नामक एक जगह पर पड़ती हैं, साम्ब को वही जाकर सूर्य की आराधना करनी होगी।उस जगह पहुंच कर चंद्रभागा नदी के किनारे 12 साल तक साम्ब ने सूर्य आराधना की।तब सूर्य देव प्रकट होकर उन्हें फिर एक खूबसूरत राजकुमार की तरह रूप प्रदान कर देते हैं। तब वही साम्ब ने सूर्य मंदिर की स्थापना की थी। महाभारत ,श्रीकृष्ण का काल आज से करीब 5500 साल पहले का ही आज दावा किया जाता हैं।

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अब बात करते हैं 13वी शताब्दी की ,मतलब करीब 800 साल पहले की। राजा नरसिंह देव की माता ने उन्हें बताया कि कोणार्क में स्थित एक छोटे से सूर्य मंदिर में पूजा पाठ करने से ही उन्हें पुत्ररत्न (नरसिंह देव )की प्राप्ति हुई थी और अब वो वहां एक भव्य सूर्यमंदिर देखना चाहती हैं। वास्तुशास्त्र ,खगोलशास्त्र के उस समय के ज्ञान का इस्तेमाल करके 12 साल में इस इस मंदिर का निर्माण पूरा करवाया गया। यह उस समय का सबसे बड़ा मंदिर और आश्चर्य था। लेकिन इसमें एक दिक्कत थी। मंदिर के गुम्बद पर कलश स्थापित कोई नहीं कर पा रहा था। नरसिंह देव के क्रोध से सब कारीगर डरने लगे। मंदिर के मुख्य शिल्पकार के 12 वर्षीय पुत्र धर्मपद को इसका एक उपाय सूझता हैं और वो अकेला मंदिर के शिखर पर चढ़ कर कलश स्थापित कर देता है। अधिकतर लोग खुश हो जाते हैं ,लेकिन अन्य कारीगर इस बात का विरोध करने लग जाते हैं कि जो काम वे लोग न कर पाए वह काम एक बच्चा कर बैठा। उनके हिसाब से राजा इस बात को सुनकर सब कारीगर पर नाराज होगा इसीलिए उन्होंने धर्मपद को मारने तक की बाते कर डाली। उसी समय धर्मपद मंदिर के शिखर पर फिर चढ़ता हैं और आत्मबलिदान कर लेता हैं।और फिर उसी समय से मंदिर में टूट फुट शुरू हो जाती हैं। कोई भी उस मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाता हैं और तभी से आजतक इस मंदिर में कभी पूजा नहीं हुई हैं। यह मंदिर उसके बाद से एकदम निर्जन छोड़ दिया जाता है ,इसके आसपास जंगल बस जाते हैं। तब कई सालों बाद अंग्रजो को यह मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में मिलता हैं और यह मंदिर आगे क्षतिग्रस्त ना हो जाए इसीलिए इसके गर्भगृह में रेत भरवाकर इसे बंद करवा दिया ,जो आज भी बंद ही हैं। यह कथा मैंने वहां एक फिल्म के माध्यम से देखी।

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इसी म्यूजियम में यह भी बताया गया कि इस मंदिर का निर्माण उस समय किस तकनीक से करवाया गया होगा। मुख्य मंदिर से पहले यहाँ एक बड़ा सा "नट मंदिर" बना हैं जो लगभग जीर्ण अवस्था में ही हैं। उसमें से गुजर कर मुख्य मंदिर तक पंहुचा जाता हैं। यहाँ अश्व और गज की मूर्तियां काफी बनी थी। मंदिर के पीछे ही सूर्य देव की पत्नी "माया देवी" का मंदिर भी हैं जिसकी अब केवल एक मंजिल ही बची हैं। बाकी मंदिर का जो मैंने ओरिजिनल मैप और स्ट्रक्चर म्यूजियम में देखा उसके हिसाब से मंदिर प्रांगण में केवल कुछ % हिस्सा ही अब नजर आता हैं। अधिकतर मंदिर टूट गए हैं और अब यह मंदिर एक संरक्षित मंदिर हैं।मंदिर की बाहरी दीवारों पर खजुराहो मंदिर की तरह कामुक मूर्तियां बनायीं हुई हैं। मंदिर के 24 पहिये ,कोणार्क चक्र कहलाते है जिन्हे आप 10 रूपये के नोट पर भी देख सकते हैं।

आप जब भी इधर जाए इसके म्यूजियम में जरूर जाए। मंदिर से कुछ किलोमीटर पास में ही पूरी का सबसे खूबसूरत बीच "चंद्रभागा बीच " पड़ता है ,वहां जरूर जाए। पूरी से कोणार्क की दुरी करीब 35 किमी हैं लेकिन इस रास्ते में एक तरफ समुद्र रहता हैं तो नज़ारे काफी खूबसूरत दिखते हैं।ओडिसा के गोल्डन ट्राएंगल टूर में कोणार्क ,पूरी और भुबनेश्वर आते है।

फोटो :कोणार्क मंदिर ,जून 2024

-ऋषभ भरावा