कुछ सालों बाद नहीं बचेंगी भारत की ये 10 खूबसूरत जगहें!

Tripoto

ऐमज़ॉन के जंगलों में आग लगी है, ग्रीनलैंड के ग्लेशियर पिघल रहे हैं, रेगिस्तानों में बाढ़ आ रही है और चक्रवाती तूफ़ान, भूस्खलन और अकाल बढ़ते जा रहे हैं। ये किसी ख़तरनाक हॉलीवुड फ़िल्म की कहानी नहीं है बल्कि ये अख़बारों में रोज़ आ रहे हेडलाइंस हैं। अगर आप एक जागरूक युवा हैं तो आपने ब्राज़ील की आपदा की स्टोरीज़ अपने इंस्टाग्राम पर शेयर कर के इस समस्या को सुलझाने की कोशिश कर ली होगी। पर अगर आप इसे और एक क़दम और बढ़ाना चाहेंगे तो मैं आपका ध्यान कुछ ऐसी जगहों की ओर ले जाना चाहूँगा जिनके अस्तित्व को ख़तरा है।

1. माजुली द्वीप, आसाम

एक समय में विश्व के सबसे बड़े नदी द्वीप के रूप में घोषित माजुली द्वीप ने वर्ष 2019 तक अपनी आधी ज़मीन खो दी है। हर वर्ष ब्रह्मपुत्र नदी द्वीप का कुछ भाग अपने साथ बहा ले जाती है और लोगों को टापू के बीच में शरण लेनी पड़ती है।

2. राम सेतु, तमिल नाडु

राम सेतु भारतवर्ष के लिए धार्मिक तौर पर बहुत महत्त्वपूर्ण है और रामायण का साक्षात् प्रमाण है। पर बढ़ते समुद्र की सतह के कारण भारत को श्री लंका से जोड़ने वाला ये पुल द्वारका नगरी की तरह पूर्ण रूप से समुद्र में समा सकता है।

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3. फूलों की घाटी, उत्तराखंड

पहले पहुँचने में कठिन रहे फूलों की घाटी में जाना अब थोड़ा आसान हो गया है। पर लोगों की आवाजाही की वजह से यहाँ पर्यावरण पर दबाव भी बढ़ गया है। हालाँकि यह राष्ट्रीय उद्यान प्रदूषण से संरक्षित है पर मनुष्यों के होने मात्र से पर्यावरण में बदलाव आ सकते हैं। ब्रह्मकमल के साथ-साथ यहाँ कई फूल अब कम संख्या में खिल रहे हैं और भविष्य में ये भी हो सकता है कि कोई भी फूल ना खिलें।

4. लक्षद्वीप के कोरल रीफ

मूंगा चट्टानें बड़ी आसानी से पानी के तापमान और खारेपन से प्रभावित होती हैं। इसके अलावा स्थानीय लोगों द्वारा मूंगा चट्टानों की तस्करी ने भी लक्षद्वीप के कोरल रीफ को नुकसान पहुँचाया है। बंगाराम द्वीप के आस-पास 90 प्रतिशत मूंगा मर चुके हैं। इस दर पर कुछ ही वर्षों में सारी मूंगा चट्टानें ख़त्म हो जाएँगी। कोरल रीफ को पहुँची क्षति के अलावा बढ़ते समुद्र सतह ने पराली 1 नामक एक द्वीप को अपनी आगोश में ले लिया है।

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श्रेय: लेनिश नामत

5. सुंदरबन, पश्चिम बंगाल

40 फ़ीसदी सुंदरबन भारत का हिस्सा हैं और बाक़ी बांग्लादेश का। भारतीय हिस्से में बने बाँध और हाईडेल प्रोजेक्ट्स ने सुंदरबन के पानी को खारा बना दिया है। मछुराओं की गतिविधि के कारण भी सुंदरबन के पेड़ों का नुकसान हुआ है जिसके कारण पानी टापुओं तक आने लगा है। एक द्वीप घोड़ामारा डूबने की कगार पर है।

6. वुलर लेक, कश्मीर

भारत की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील लोगों के ट्रैवेल बकेट लिस्ट में सबसे ऊपर नहीं आता लेकिन फिर भी यह सिकुड़ रहा है। प्राकृतिक रूप से इसका हनन हो रहा है। इसके किनारे उगे पेड़ इसके लिए मुसीबत बन रहे हैं। ये पेड़ मिट्टी के प्रवाह को रोकते हैं जो झील के किनारे जमता जा रहा है जो वुलर झील के आकार को छोटा करता जा रहा है। इस झील के संरक्षण के लिए सरकार ने यहाँ के पेड़ों को काटने के प्रावधान शुरू किये हैं।

7. स्वर्णरेखा नदी, झारखण्ड

जहाँ पड़ोसी राज्य बिहार बाढ़ग्रस्त है, झारखण्ड की नदियाँ सूखती जा रही हैं। स्वर्णरेखा झारखण्ड की एक मात्र बड़ी नदी है, लेकिन अब इसे नदी कहना मुश्किल हो गया है। अत्यधिक खनन और प्रदूषण के कारण कुछ वर्षों में ये नदी विलुप्त हो सकती है।

8. आरे वन

मुंबई की भीड़ भाड़ से अलग आरे वन शहर के बीचोबीच हरियाली की बहार था। पर कुछ ही वर्षों में इस जंगल को पूरी तरह से काट कर यहाँ मुंबई मेट्रो और इमारतें बना दी जाएँगी।

9. मुनरो द्वीप

इस बहुत ही सुन्दर द्वीप को आपदा और विपदा दोनों की मार झेलनी पड़ी। थेणमाला डैम के बनने से यहाँ पर ताज़े पानी का प्रवाह बंद हो गया और फिर सुनामी ने यहाँ के मैन्ग्रोव वनों को नुकसान पहुँचा दिया जो समुद्री लहरों से इस द्वीप को बचाते थे। यह द्वीप धीरे-धीरे समुद्र में डूब रहा है और कुछ ही वर्षों में गायब हो सकता है।

10. बेंगलुरु के झील

ये एक अनुमान नहीं बल्कि सच्चाई है कि बेंगलुरु ने पिछले तीस सालों में 90 झीलों को खो दिया है। यहाँ के छोटे बागान और हरे चौराहों को हटा कर सड़कों और इमारतों को जगह दे दी गयी। मैजेस्टिक बस स्टैंड जैसे कई स्थानों को झीलों को भर कर बनाया गया है। जो बचे खुचे झील और तालाब रह गए हैं वो प्रदूषण कि मार झेल रहे हैं और उन्हें कुछ वर्षों में कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स के हवाले दे दिया जाएगा।

इस आर्टिकल को पढ़ कर आपको इनमें से कुछ जगहों पर जाने कि इच्छा हो रही होगी। पर हम आपसे विनती करते हैं कि आप इन जगहों पर न जाएँ।

टूरिज़्म और इंसानी गतिविधियों के कारण ये जगह पहले ही मुसीबत में हैं। अगर आप जागरूक पर्यटक भी हैं तो भी लोगों के आगमन से इन जगहों पर सैनिटेशन और गार्बेज डिस्पोजल का दबाव बढ़ जाता है। साथ ही यहाँ के जीव-जंतुओं का भी बर्ताव बदल जाता है जिससे इकोलॉजिकल बैलेंस बिगड़ जाता है। इसलिए अच्छा यही रहेगा कि हम इन जगहों को कुछ वर्षों के लिए प्राकृतिक रूप से संवर्धित होने दें।

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