रावण मंदिर भारत में: जहाँ इस ब्रह्म-राक्षस को जलाते नहीं, पूजते हैं....

Tripoto

जी हाँ।

भारत में रावण को भी पूजा जाता है।

क्यूँ?

अगर आप जान लेते हैं कि रावण कौन था, तो आपके लिए इस राक्षस को पूजे जाने का कारण समझना आसान हो जायेगा।

कौन था रावण

रावण कोई मामूली राक्षस नहीं था।

रावण के दादा का नाम ऋषि पुलस्त्य था, जिन्हें साक्षात् ब्रह्मा का रूप भी माना गया है।

इनके पिता ऋषि वैश्रव नाम के विद्वान ब्राह्मण थे और माँ कैकसी नाम की राक्षसी थी।

ब्राह्मण और राक्षसी की संतान होने की वजह से रावण ब्रह्म-राक्षस थे। ऐसा विद्यावान दानव जिसे ब्रह्मज्ञान हाँसिल था। इसीलिए जब राम ने रावण को मारा तो उन पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा, मगर अनजाने में हुए इस पाप का प्रायश्चित करने के बाद वे पापमुक्त हो गए।

शास्त्रों में दो तरह के पाप के बारे में कहा गया है : एक वो जो इंसान पूरे होशोहवास में करता है। इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं है और कर्म का फल मिलने के बाद ही इससे मुक्ति मिलती है। दूसरा पाप वो है जो इंसान भूल से कर देता है। मन में प्रायश्चित का भाव आते ही इस पाप से मुक्ति मिल जाती है।

राम और रावण की इस कहानी के पूरे एशिया में सैंकड़ों प्रकार हैं। मगर सबमें रावण को दोषी बताया गया है। हो भी क्यूँ न। चाहे कोई कितना भी बड़ा विद्वान् क्यों न हो, कितनी भी बड़ी हस्ती क्यूँ न हो; किसी औरत को उसकी मर्ज़ी के बिना छूना, अगवा करके ले जाना पाप ही नहीं जुर्म भी है। ऐसे पापी और मुजरिम रावण को हम हर साल दशहरे पर जला देते हैं।

मगर क्या आप जानते हैं कि भारत में रावण के कई ऐसे मंदिर भी हैं, जहाँ इस पापी और मुजरिम ब्रह्म राक्षस को पूजा जाता है ?

आइये जाने कि ये मंदिर कौन से हैं, और यहाँ ऐसा क्यूँ किया जाता है :

रावण मंदिर, गाँव बिसरख, जिला उत्तर प्रदेश

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जिस उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम का जन्म हुआ था, माना जाता है कि उसी राज्य के बिसरख गाँव में रावण का भी जन्म हुआ था।

ग्रेटर नॉएडा के बिसरख गाँव का नाम रावण के पिता विश्रव के नाम पर पड़ा है। दशहरे के दिन इस गाँव में न ही रावण का पुतला जलाया जाता है, और न ही रामलीलाएं दिखाई जाती है। बल्कि गाँव के बड़े-बूढ़े इकट्ठे होकर रावण की मौत का शोक मनाते दिखते हैं।

यहाँ के मंदिर में 42 फ़ीट ऊँचा शिवलिंग स्थापित है, और साथ में ही रावण की फ़ीट ऊँची मूर्ति रखी हुई है। अभी हाल ही में केसरिया चुन्नी ओढ़े कुछ अज्ञात युवकों ने यहाँ काफी तोड़-फोड़ की।

दशानन रावण मंदिर, जिला कानपुर, उत्तर प्रदेश

कानपुर जिले के शिवाला इलाके में भी एक प्राचीन मंदिर है, जो साल में सिर्फ एक बार दशहरे के दिन खुलता है।

इस मंदिर के पुजारी बताते हैं कि रावण द्रविड़ गौड़ जाति का एक प्रकांड पंडित था, जिसे हिन्दू धर्म के सारे शास्त्रों का ज्ञान था।

इस बात से ये पता चलता है कि अगर इंसान ज्ञान को पढ़ने के साथ-साथ गुण भी ले तो वो काफी अच्छी ज़िन्दगी लम्बे समय तक जीता है। इस बात का एक अपवाद रावण है, जो अपने कामदोष और अहंकार की वजह से मारा गया।

रावण मंदिर, जिला जोधपुर, राज्य राजस्थान

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पुराने वक़्त में जोधपुर की राजधानी मंडोर हुआ करती थी। कहते हैं कि रावण की पत्नी मंदोदरी इसी मंडोर गाँव की रहने वाली थी।

ये गाँव अब बढ़कर तहसील बन चुका है। एक तहसील में कई सारे गाँव आते हैं।

अब चूंकि मंदोदरी जोधपुर जिले की बेटी हुई, तो यहाँ के लोग रावण को अपना जमाई राजा मानते हैं, और मंदिर में शिव और खारन्ना माता के साथ रावण की भी पूजा करते हैं।

जोधपुर में आज भी मुद्गल गोत्र के परिवार मिलते हैं, जो अपने आपको रावण के वंशज बताते हैं।

रावण मंदिर, गाँव रावणग्राम, राज्य मध्य प्रदेश

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मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के गाँव रावणग्राम में आज से करीब हज़ार साल पहले बना रावण का मंदिर है, जिसमें इस दानव राजा की 10 फ़ीट ऊँची मूर्ति को लिटा कर रखा जाता है।

कहते है कि ये मूर्ति गाँव में सम्पन्नता लाती है, लेकिन अगर लेटी हुई मूर्ति को खड़ा कर दिया जाए तो गाँव में शुभ घटनाएं नहीं होती।

पिछले 600 से ज़्यादा सालों से यहाँ कान्यकुब्ज गौत्र के ब्राह्मण रावण की पूजा करते आ रहे है। कहते हैं कि रावण के पूर्वज कभी इसी गौत्र के रहे थे।

रावण मंदिर, जिला मंदसौर, राज्य मध्य प्रदेश

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जिला मंदसौर के लोग भी कहते हैं कि मंदोदरी उन्हीं के गाँव की थी।

यहाँ रहने वाले नामदेव वैष्णव समाज की औरतें दशहरे के दिन घूंघट में रहती हैं। इनका मानना है कि रावण इनका जमाई था। यहाँ के मंदिर में रावण की 35 फ़ीट ऊँची मूर्ती थी, जो बिजली गिरने से टूट गयी। मगर लोग आज भी मंदिर में जाकर मन्नत मांगते हैं।

रावण मंदिर, शहर काकिनाड, राज्य आंध्र प्रदेश

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आंध्र प्रदेश के काकिनाड शहर में समुद्र के किनारे रावण का मंदिर बना हुआ है, जहाँ की शान्ति और समुद्र के नज़ारे का लुत्फ़ लेने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं।

यहाँ के मंदिर के द्वार से घुसते ही आपको दस सर वाले रावण की बड़ी सी मूर्ति दिख जाएगी, मगर यहाँ इस मूर्ती के साथ ही शिवलिंग भी है।

रावण मंदिर में आपको शिवलिंग ज़रूर दिखेगा, क्यूँकि रावण जितना बड़ा प्रकांड पंडित था, उतना ही बड़ा शिवभक्त भी था।

बैद्यनाथ मंदिर, क़स्बा बैद्यनाथ, राज्य हिमाचल प्रदेश

हिमाचल राज्य के बैजनाथ कस्बे में बर्फ से ढकी धौलाधार पर्वतमाला के नज़ारे लिए बैद्यनाथ मंदिर है, जो असल में तो शिव मंदिर है, मगर यहाँ से जुडी रावण की कहानी भी काफी मज़ेदार है।

तीनों लोकों को जीतने के बाद शिव भक्त रावण ने तप के बल पर शिव को प्रसन्न कर लिया और उन्हें कैलाश छोड़ लंका रहने की विनती की। रावण जैसे महान भक्त की इच्छा रखने के लिए शिव ने उसे अपना एक अंश दिया और कहा कि वह ये अंश जहाँ भी रखेगा, वहीँ शिव लिंग रूप में बस जायेंगे। अंश लेकर रावण लंका की ओर जा ही रहा था कि शाम के समय संध्या वंदन का समय हो गया।

जिस तरह मुस्लिम पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़ते हैं, वैसे ही हिन्दू धर्म में पूर्वाह्न और मध्याह्न में संध्या वंदन किया जाता है।

गंगा नदी में कमर तक खड़ा होकर भुजाएं ऊपर जोड़ के संध्या वंदन शिवलिंग के साथ तो मुमकिन न था। इसलिए रावण ने पास ही खड़े ग्वाले को आवाज़ लगाई। ग्वाले ने अपना नाम बैजू बताया और कहा कि वो कुछ ही देर अंश पकड़ सकता है। अगर ज़्यादा देर हुई तो वह अंश वहीँ रखकर चला जायेगा। कहते हैं कि ये ग्वाला और कोई नहीं, बल्कि भगवान् गणेश थे, जिन्हें अन्य देवताओं ने अंश लेने भेजा था।

इधर रावण संध्या वंदन के लिए नदी में उतरा और उधर बैजू ने शिव अंश को नदी किनारे रख दिया। फिर लाख कोशिश के बाद भी रावण शिवलिंग को नहीं हिला पाया।

तभी से हिमाचल के देवघर नाम की जगह शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक बैजनाथ धाम बन गया, जिसे रावणेश्वर धाम भी कहते हैं।

बैजनाथ के आस-पास के गाँव वाले भी दशहरे के दिन न रावण का पुतला फूंकते हैं और न ही राम की पूजा करते हैं। हाँ, यहाँ शिव की पूजा ज़रूर की जाती है, जो आप रावणेश्वर कहलाते हैं।

ऐसे प्रकांड पंडित रावण की कहानी पढ़कर कैसा लगा ?

उम्मीद करते हैं कि अगले दशहरे के दिन आप रावण को सिर्फ पुतले के रूप में ना देख कर एक ब्रह्म-राक्षस के रूप में देखेंगे।

वो ब्रह्म-राक्षस जिसने अपनी वीरता, तप, बलिदान और ज्ञान के दम पर धरती, आकाश, पाताल जैसे तीनों लोकों को जीत लिया था।

ऐसा प्रतापी राजा जिसे दंड देने के बाद स्वयं भगवान् श्री राम ज्ञान की भिक्षा लेने रावण के चरणों में हाथ जोड़ कर खड़े हुए थे।

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