यदि आप कभी नाहरगढ़ के किले से जयपुर शहर का दृश्य देखेंगे, जो की बड़ा ही अद्भुत होता है, उस समय आपकी उस पहाड़ की ऊंचाइयों से नीचे दिखने वाले जयपुर के एक हिस्से पर विशेष ध्यान जाने की संभावना है । शहर के बीचों बीच एक जल निकाय या यूं कहें, एक छोटी सी वर्गाकार झील जैसी कुछ जगह नज़र आती है, जिसका नाम है ताल कटोरा झील ।
यह सिटी पैलेस, ठिकाना गोविंद देव जी मंदिर, जय निवास उद्यान और बहुत ही सटीक कहा जाय तो बादल महल के उत्तर में स्थित है ।
इस स्थान पर 21 जून 2023 को मैंने संध्याकाल में थोड़ा समय बिताया था, और उन्हीं पलों को मेरे द्वारा लिए गए छायाचित्रों और इस जगह के इतिहास के साथ आप सभी पाठकों के साथ साझा कर रहा हूं ।
जयपुर की बसावट के समय वास्तु का काफी ध्यान रखा गया था, यही वज़ह है कि इस दिशा में वरुण देव का स्थान मानते हुए जलाशय बनाया गया । सवाई जयसिंह ने तालकटोरा को गहरा करवाया और इसके पानी को शहर की आबादी के लिए मुहैया करवाया। यह वह दौर था जब तालकटोरा में घडिय़ाल भी रहते थे । राजे-महाराजे यहां आकर आखेट का लुत्फ उठाते थे । तीज और गणगौर के त्योहारों का समापन राजपरिवार की देखरेख में विसर्जन समारोह के साथ होता था । ऐतिहासिक महत्व के साथ ताल कटोरा परकोटे में बने दूसरे जलाशयों के लिए जल पुनर्भरण का काम भी करता था, ताल कटोरे में पानी की वजह से आस पास के कुँओं और बावड़ी में हर समय पानी भरा रहता था । भूजल स्तर का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इसके पास की राजहंस और गोविंद देव कॉलोनी में मकान निर्माण के लिए नींव लगाना भी कठिन कार्य हुआ करता था क्योंकि नींव की खुदाई के समय उसमें पानी आ जाता था ।
बढ़ते शहरीकरण, प्रदूषण और उदासीनता के कारण इस झील का गौरव समय के साथ कम होता गया । आशा है कि सामूहिक इच्छाशक्ति के साथ इस स्थान का स्वर्णिम काल पुनर्जीवित किया जा सके, जिससे की गुलाबीनगरी के हैरिटेज में एक और मोती को उचित स्थान मिल सके ।
वैसे ताल कटोरा के उत्तर में पौंडरिक पार्क स्थित है जहां ऊंचे पेड़ हैं और उत्तर की तरफ एक सीध में ऊपर देखने पर पहाड़ी पर श्री गढ़ गणेश जी मंदिर दिखाई पड़ता है । जयपुर की गरिमा से मंत्रमुग्ध होने के सैंकड़ों कारणों में से एक और कारण, जो की एक पर्यटक को सोचने पर विवश कर सकता है की इतने साल पहले भी इस शहर को बसाने में कितनी ज़्यादा योजना और विशेषज्ञता का उपयोग किया गया था ।