प्रभाकर मणि तिवारी
राजस्थान को किलों का राज्य कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. राज्य के तमाम शहरों में सैकड़ों की तादाद में ऐसे किले हैं जो अपने भीतर रहस्य-रोमांच और इतिहास समेटे हुए हैं. जयपुर से कोई 80 किमी दूर अलवर जिले में स्थित भानगढ़ का किला भी उनमें से एक है. इसे भूतहा किला कहा जाता है और इसकी ख्याति महज देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक है. यही वजह है कि भारी तादाद में विदेशी सैलानी पहाड़ी की तलहटी में बने इस खंडहरनुमा विशाल किले को देखने के लिए यहां पहुंचते हैं.
कोलकाता से राजस्थान दौरे के लिए रवाना होने से पहले ही बेटी ने शर्त रखी थी कि भानगढ़ का किला दिखाना होगा. राजधानी जयपुर से कोई 80 किमी दूर अलवर जिले में स्थित भानगढ़ का किला अपने साथ कई रहस्यमयी कहानियां समेटे खड़ा है. लगभग साढ़े चार सौ साल पहले बना यह किला अब तो खंडहरों में तब्दील हो गया है. लेकिन खंडहर बताते हैं कि एक जमाने में यह इमारत कितनी बुलंद रही होगी. किले तक जाने वाले रास्ते के दोनों ओर गांव के अवशेष बने हैं. उनमें से किसी के सामने नर्तकी का महल लिखा है तो कहीं किसी बड़े ओहदेदार के मकान का भान होता है.
जयपुर में राजस्थान पर्यटन विभाग के गणगौर होटल से नाश्ते के बाद कोई सवा नौ बजे निकले. बीते दो सप्ताह से अपने साथ रहे ड्राइवर राजवीर सिंह वक्त से पहले ही होटल पहुंच गए थे. पिंक सिटी की भीड़-भाड़ वाली सड़कों से निकल कर नेशनल हाइवे पर पहुंच कर राहत की सांस ली. जयपुर में मौसम ठंढा था. इतनी ठंढ तो जैसलमेर या माउंट आबू तक में नहीं मिली थी. खैर, किले के मुख्यद्वार के बाहर ही कार रोक कर हम निकल पड़े इस भूतहा किले की सैर पर.
भानगढ़ का किला चारदीवारी से घिरा है जिसके अन्दर प्रवेश करते ही दाईं ओर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं. सामने बाजार है जिसमें सड़क के दोनों तरफ कतार में बनायी गयी दो मंजिली दुकानों के खण्डहर हैं. किले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल है जिसकी ऊपरी मंजिल लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है. भानगढ़ का किला चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है. भानगढ़ को दुनिया के सबसे डरावनी जगहों में से एक माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि यहां पर आज भी भूत रहते हैं. इसी वजह से आज भी यहां सूर्यास्त होने के बाद सूर्योदय से पहले किसी को रुकने की इजाजत नहीं है
भानगढ़ को आम बोलचाल में भूतहा किला कहा जाता है. इस किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने वर्ष 1583 में बनवाया था. भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल बादशाह अकबर शहंशाह के नवरत्नों में शामिल मानसिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रिहाइश बना लिया. भूतों के बारे में प्रचलित किस्से-कहानियों का ही असर है कि पुरातत्व विभाग ने भी अपना दफ्तर किले से दूर मुख्यद्वार के पास ही बनवाया है.
इस किले के भूतहा किले में बदलने के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं. पहला किस्सा इस तरह है. कहा जाता है कि भानगढ बालूनाथ योगी का तपस्या स्थंल था. उन्होंने इस शर्त पर भानगढ के किले को बनाने की सहमति दी कि किले की परछाई कभी भी मेरी तपस्या स्थल को नहीं छूनी चाहिए. लेकिन राजा माधो सिह के वंशजों ने किले का निर्माण जारी रखा. नतीजतन एक दिन किले की परछाई तपस्या स्थल पर पड़ गई. इससे नाराज होकर योगी बालूनाथ ने भानगढ़ को श्राप देकर ध्वस्तत कर दिया. एक अन्य कथा के मुताबिक, भानगढ़ की राजकुमारी रत्ना़वती अपूर्व सुन्दरी थी जिसके स्वयंवर की तैयारी चल रही थी. उसी राज्य में सिंघिया नामक एक तांत्रिक राजकुमारी पर फिदा था और उशसे विवाह करना चाहता था. लेकिन यह मुमकिन नहीं था. इसलिए तांत्रिक सिंघिया ने राजकुमारी की दासी जो राजकुमारी के श्रृंगार के लिए तेल लाने बाजार आई थी उस तेल को जादू से सम्मोहित करने वाला बना दिया. लेकिन किसी ने राजकुमारी को इसकी सूचना दे दी. राजकुमारी रत्नावती के हाथ से वह तेल एक चट्टान पर गिरा तो वह चट्टान तांत्रिक सिंघिया की तरफ लुढ़कती हुई आने लगी और उससे कुचल कर तांत्रिक की मौत हो गई. तांत्रिक ने मरते समय भानगढ़ नगर और वहां की राजकुमारी को श्राप दे दिया था. उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच युद्ध हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गए. राजकुमारी रत्नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गई.
अब इनमें से कौन सी कहानी सच है और कौन सी झूठ, यह तो पता नहीं. लेकिन यह हकीकत है कि भानगढ़ को भारत के सबसे भूतहा किलों में शुमार किया जाता है. हम दिन में गए थे. भूत तो खैर क्या नजर आते, हां, बाहर सैकड़ों बंदर जरूर थे. किले के भीतर व आसपास भीतर देश-विदेश से आए सैलानी जरूर नजर आए जो परकोटे पर चढ़ कर सेल्फी और फोटो खींचने में मशगूल थे.