जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क

Tripoto
Photo of जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क by Sanjeev Joshi

पहला दिन विगत कई वर्षो से इस उद्यान का नाम सुनते रहे थे। इसकी प्रसिद्धि किसी भी यायावर के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु थी।जब भारत के मुख्य पर्यटन क्षेत्र देख चुके तो अब राष्ट्रीय उद्यानों को देखने की इच्छा जागी।तभी यूथ हॉस्टल एसोसिएशन द्वारा घोषित 5 दिवसीय फॅमिली कैम्पिंग पर निगाह पड़ी। मात्र 5250/- की न्यून राशी में दो व्यक्तियों के नन्हे से टेंट में रहना नाश्ता खाना किसी को भी आकर्षित कर सकता था।28 नवम्बर को विवाह की वर्षगांठ वही मनाने का निश्चय किया एवं 26 से 30 नवम्बर का कैंप बुक भी कर लिया जो की कालाढूंगी में स्थित था।कालाढूंगी (Kaladhungi) उत्तराखंड राज्य में नैनीताल जिले में एक नगर और नगर पंचायत है। यह जिम कार्बेट के ग्रीष्मकालीन आवास के लिये भी जाना जाता है जो कि अब संग्रहालय बना दिया गया है।वैसे तो दिल्ली से यहाँ पहुचने की बस द्वारा उत्तम व्यवस्था है किन्तु हमने ट्रेन का विकल्प चुना एवं जिम कॉर्बेट लिंक एक्स द्वारा दिल्ली से रात 10 बजे निकल के सुबह लगभग 5 बजे रामनगर पहुचे। बेहद साफ़ सुथरा स्टेशन देख के मन प्रसन्न हो गया। यहाँ रेलवे का रिटायरिंग रूम भी है जो बहुत उत्तम है ।यही हमारे साले साहब ने सपत्निक हमें ज्वाइन किया।हमने यहाँ से कालाढूंगी के लिए 1300/- में टैक्सी करके कैंप साईट पहुचे। अपने लिए टेंट आवंटन कर के चेक इन किया।कैंप एरिया देख कर सफ़र की सारी थकान उतर गयी। बेहद शांत खुबसूरत जगह, लीची के पेड़ो से घिरे हमारे खुबसूरत टेंट, बाथरूम आदि की उत्तम व्यवस्था देख कर सभी प्रसन्न थे और यूथ हॉस्टल के आभारी थे ।नाश्ता तैयार था। स्नानादि से निवृत हो नाश्ता किया और जिम कॉर्बेट का निवास स्थान देखने गये जो की एक किमी दूर था।यहाँ उनका घर ही अब संग्रहालय में बदल दिया है जिसमे प्रवेश हेतु बीस रुपये की राशी लगती है। यहाँ विभिन्न कमरों में उनके भारत आगमन से लेकर 1948 में केन्या जाने तक के कार्यो का विवरण था जिसमे उनके द्वारा मारे गये शेर तेंदुए(मानव भक्षी) आदि के साथ उनके फोटो भी है।दोपहर इसी रमणीक कैंप साईट में आराम किया।इसी दिन हमने दुसरे व् तीसरे दिन के कार्यक्रम की रूपरेखा यहाँ के कैंप लीडर के सहयोग से तैयार की। दुसरे दिन नैनीताल भ्रमण का कार्यक्रम रखा व तीसरे दिन कॉर्बेट नेशनल पार्क हेतु बुकिंग करा ली। यहाँ नेशनल पार्क में सफारी बुकिंग हेतु सभी को अपना परिचय पत्र देना होता है और सुबह या शाम के समय ही सफारी होती है। सभी सफारी रामनगर से ही आरम्भ होती है जो की कैंप से 30 किमी दूर स्थित है। सफारी 6 सीटर होती है और चार हज़ार इसका व्यय है। आपको पूरी जीप बुक करना होती है। बेहतर है छह लोग एकत्र कर के बुक करे ताकि प्रति व्यक्ति लगभग सात सौ का खर्च आये। यदि कैंप में नही रुके तो रामनगर में रुकना ही श्रेयस्कर है क्योकि सभी सफारी का संचालन रामनगर से ही होता है। शाम को शीत लहर चालू हो गयी और जल्दी से डिनर कर के अपने अपने टेंट में रजाई कम्बल में घुस गये।दूसरा दिन-नैनीताल सुबह जल्दी नहा के नाश्ता किया और आयोजको द्वारा लंच पैकेट्स ले कर टैक्सी से नैनीताल चल पड़े जो कालाढूंगी से 35 किमी दूर है। टैक्सी 1600/- में बुक की गयी (आप बार्गेन कर सकते है) नैनीताल उत्तराखंड का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। यह जिले का मुख्यालय भी है। कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्व है। देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं। इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। 'नैनी' शब्द का अर्थ है आँखें और 'ताल' का अर्थ है झील। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है। बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्‍थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है। इसलिए इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है। नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है। सुरम्य वादियों गोल गोल घुमावदार घने जंगल से घिरे रास्तो से होते हुए नैनीताल पहुचे जो की अन्य हिल स्टेशन की तरह ही ट्रैफिक जाम व पार्किंग की समस्या से घिरा हुआ है। इससे पूर्व रास्ते में नैनीताल से 10 किमी पहले खुरपा ताल एवं सडियाताल जलप्रपात नामक सुन्दर स्थान देखने रुके (जो एक बांध द्वारा छोड़े गये पानी से निर्मित है।) मॉल रोड पर एक जगह हमें उतार दिया गया ।यहाँ से बोटिंग क्लब पास ही था। ठंडी हवाएँ पूरे क्षेत्र को घेरे हुए थी । बोट क्लब से किराये के लिए काउंटर से टिकट्स लेना होते है ।एक बोट में यु तो चार लोगो के बैठने की व्यवस्था होती है किन्तु दो लोग ही आराम से बैठ पाते है अतः हमने भी अलग अलग दो बोट ली। जैसे ही धीरे धीरे आगे बढ़ते गये चारो ओर पहाडियों से घिरे नैनीताल झील ऐसी जान पड़ी मानो एक विशालकाय कटोरे में पानी भर के पहाड़ी के ऊपर रख दिया है। तीन तरफ तो घरो होटलों और दुकानों की भरमार दिखी पर चौथी तरफ की पहाड़ी एकदम प्राकृतिक अवस्था में देख कर मन प्रफुल्लित हो गया। कोई कंस्ट्रक्शन नही सिर्फ वृक्ष ही वृक्ष। नीचे सिर्फ पैदल चलने वालो के लिए झील के किनारे किनारे एक वाक वे जरूर है पर उससे पहाड़ी की सुन्दरता पर कोई असर नही हो रहा था। माहौल इतना रोमांटिक था की इस झील पर फिल्माए गये अनेक सिनेमा के गीतों की यादें ताज़ा हो गयी। चारो तरफ की सुन्दरता आँखों में भर के लगभग एक घंटे की बोटिंग कर वापस किनारे आ गये।बाज़ार दुकाने शोरूम होटल्स रेस्टौरेंट्स आदि सभी और मॉल रोड को घेरे हुए थे जो शहरी भीडभाड को यहाँ तक खीच लाये थे। प्राकृतिक सुन्दरता निहारने की इच्छा से हम स्नो व्यू पॉइंट के लिए निकले। यहाँ जाने के लिए सड़क मार्ग के अलावा रोप वे भी उपलब्ध हैऔर ये एक अतिरिक्त आकर्षण था सो हमने इसीसे जाने का निर्णय लिया। टिकट(₹190 प्र.व्य.)लेकर ट्राली पे सवार हो के ऊपर की ओर बढे,जैसे जैसे ऊपर बढ़ रहे थे नैनी झील की सुन्दरता को देख के रोमांचित हो रहे थे। ऊपर से बेहद मनमोहक दृश्य था झील का।लगभग 10 मि.बाद व्यू पॉइंट पहुचे। यहाँ भी दुकाने रेस्टोरेंट देख के मन खट्टा हो गया। अन्यथा स्थान पूर्व में बेहद खुबसूरत रहा होगा।आगे ही पैदल छोटी सी पहाड़ी चढ़ हम ऊपर पहुचे तब दूर बर्फ से ढंके हुए हिमालय की खुबसूरत चोटियाँ दिखाई पड़ी। सौभाग्य से बादल नही थे क्षितिज पर अतः दृश्य अत्यंत आकर्षक दिखाई दिया। पता चला था की अक्सर बादलों की वजह से दृश्य नही दिखते। अक्सर ऐसी जगहों से वापस लौटने का मन नही करता किन्तु लौटना ही होता है।तीसरा दिन-कॉर्बेट में. आज दोपहर में 2 बजे से कॉर्बेट सफारी बुकिंग थी अतः सुबह उठने अथवा नहाने की कोई जल्दी नही थी। आराम से जब ब्रेकफास्ट के लिए कुक की आवाज़ सुनी तब अपने टेंट से बाहर निकले। गुनगुनी धुप बहुत तसल्ली दे रही थी। चारो ओर लीची के पत्तो पर ओंस की बूंदे चमक रही थी। मन प्रफुल्लित हो चला था। ऐसा माहौल शहर में तो अब नही रहा।नाश्ता कर के काफी देर तक धुप का आस्वाद लेते रहे। चूँकि सफारी रामनगर (35किमी) से थी तो जीप हमें लेने 12 बजे आनेवाली थी। तब तक सभी तैयार हो गये। हमारे साथ गाज़ियाबाद का एक युवा परिवार भी था अपने 2 छोटे बच्चो के साथ। इस तरह हम 6 वयस्क और 2 बच्चे जीप में सवार हो गये | हम लगभग 1.30 बजे नेशनल पार्क के झिरना रेंज के द्वार पर पहुच गये और औपचारिकतायें पूरी कर अन्दर प्रवेश कर गये। जगह जगह मजबूत सुरक्षा व्यवस्था दिखाई दी जो फारेस्ट के कर्मचारियों के लिए आवश्यक थी। पार्क में पांच द्वारों से प्रवेश दिया जाता है और हर द्वार से 60 जीप छोड़ी जाती है और तीन से साड़े तीन घंटे का समय रहता है अन्दर रहने का। हम चूँकि प्रथम थे अतः पूरे समय का लाभ ले सके। अब प्रश्न था की टाइगर दर्शन हो पाएंगे या नही ??जिम कॉर्बेट भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय पार्क है और १९३६ में लुप्तप्राय रॉयल बंगाल टाइगर की रक्षा के लिए नेशनल पार्क के रूप में स्थापित किया गया था। यह उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में रामनगर के पास स्थित है और इसका नाम जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया था जिन्होंने इसकी स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। टाइगर रिज़र्व के तहत आने वाला यह पहला पार्क था।कॉर्बेट नेशनल पार्क में लगभग 521वर्ग किमी में पहाड़ी, नदी के बेल्ट, दलदलीय गड्ढे, घास के मैदान और एक बड़ी झील शामिल है। यहाँ शीतकालीन रातें ठंडी होती हैं लेकिन दिन धूपदार और गरम होते हैं। यहाँ जुलाई से सितंबर तक बारिश होती है।ये मुख्य रूप से बाघ का घर माना जाता है जहा वर्तमान में बाघों की संख्या लगभग 215 है जो सुंदरबन (400 से ज्यादा) के बाद दूसरी सर्वाधिक संख्या है।यहाँ पर टाइगर के अलावा हाथी, भालू, हिरन, चीतल, साँभर, पांडा, काकड़, नीलगाय, घुरल और चीता आदि 'वन्य प्राणी' भी काफी अधिक संख्या में मिलते हैं। इसी तरह इस वन में अजगर तथा कई प्रकार के साँप भी निवास करते हैं। जहाँ इस वन्य पशु विहार में अनेक प्रकार के भयानक जन्तु पाये जाते हैं, वहाँ इस पार्क में लगभग 600 रंग - बिरंगे पक्षियों की जातियाँ भी दिखाई देती हैं। बहरहाल हम सब जीप पे सवार हो के अन्दर गये ।एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। कभी कभी किसी पक्षी की आवाज़ सन्नाटे को तोडती थी। तभी कुछ दूर स्पॉटेड हिरनों का झुण्ड दिखाई दिया। जैसे जैसे आगे बढे अन्य हिरन भी दिखे। बन्दर भी खूब थे। किन्तु बाघ अब भी नज़र नही आ रहे थे।अचानक ड्राईवर ने ब्रेक लगाया और चुप रहने का इशारा किया,हमे लगा बाघ होगा किन्तु कच्ची सड़क पार करता हुआ लगभग 10/12 फीट लम्बा किंग कोबरा अपना फन फैलाये बीच में खड़ा था। यु तो कई बार देखा था किन्तु उसके प्राकृतिक निवास में देखकर रोंगटे खड़े हो गये थे। लगभग 5 मिनट में हमें हतप्रभ कर नागराज जंगल में अंतर्ध्यान हो गये। हम और आगे बढे, कुछ दुरी पर जंगली हाथियों का एक झुण्ड दिखाई दिया। लगभग आधा जंगल पार हो चूका था पर अब भी राजा ने दर्शन नही दिए थे। अब दूसरी गाडिया भी आने लगी थी और गाडियों के शोर में जंगल का सन्नाटा गायब हो चला था। जैसे जैसे वक़्त बीत रहा था हमारी मायूसी बढती जा रही थी। मन सुबह से ही आशंकित था किन्तु अब निराशा में बदल रहा था। ड्राईवर और गाइड ने बताया की ढिकाला रेंज में 2/3 दिन रुकने से बाघ देखना आसान होता है। इस तरफ बहुत कम दिखाई देते है क्योकि गाडियों और लोगो का शोर बाघों को दूर रखता है। हमारा टूर समाप्त हुआ ।बहुत जानवर दिखे पर जिसे देखने की आस लिए आये वो नही दिख पाया। संभावित था की शेर दिखाई देना भाग्य की बात है किन्तु जंगल भी इतना सुन्दर घना स्वच्छ था की उसीसे उदासी दूर हो गयी थी। पुनः एक बार आने और ढिकाला रेंज में रुकने का सोच के वापस कैंप साईट आये। ठण्ड बढ़ गयी थी तो जल्दी डिनर ले के सोने चले गये।चौथा दिन तीन दिन की लगातार भागम भाग से थकान हो गयी थी तो दिन भर आराम किया। पांचवे दिन सुबह काठगोदाम (25 किमी) पहुच कर वहा से भोपाल वाया दिल्ली की यात्रा शुरू की।