ये हमारी वो कहानी है जो बुढ़ापे के किस्सों मैं भी याद की जायेगी, हम ३ भाई बहन है। ये तब की बात है जब हम तीनों, तीन अलग दिशाओं मैं बस्ते थे , और साल में बस एक बार मिलते थे ,अपने घर नॉएडा मैं, वो भी कहीं घूमने जाने के लिए। मेरी बहन चेन्नई थी, भाई मुंबई और मैं ऑस्ट्रेलिया।
जब मैं पहली बार भारत आयी अपने बाहर बसने के बाद, तो इसलिए नहीं की मुझे रिश्तेदारों से मिलना था, या घर रहना था, पर इसलिए की मुझे अपने भारत से मिलना था, मेरी रिश्तेदारी पर्वतों से भी है तो उनके पास भी जाना था। ये सब ध्यान रखते हुए हम तीनों ने साथ मैं नाग तिब्बा का प्लान बनाया। क्यूंकि मैं सिर्फ एक महीने के लिए आयी थी और उस एक महीने मं पूरा समय घर से बाहर थी, ये ट्रिप हमें हल्का फुल्का ही रखना था, जिससे की साथ समय बिताएं और पर्वतों का आराम से नज़ारा लें। पर जब भी हम कुछ साथ करते हैं अपने आप एडवेंचर अपनी जगह बना ही लेता है। ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ। तो अब शुरू करते हैं नाग तिब्बा के सफर का किस्सा
। दिल्ली से देहरादून - नीरस रास्तों से होते हुए हरयाली और पर्वतों का सफर
हमने एक ट्रिप बुक किया और अपनी टाटा सफारी से निकल गए देहरादून के लिए, रस्ते मैं गपशप, ९० दशक के गाने और अपने छोटे भाई की रैगिंग करते हुए सफर आराम से निकल गया। देहरादून से हमें हमारे ट्रेवल एजेंट ने पिक किया, और बोरिंग हाइवेज हसीं नज़रों मैं बदल गए ! नाग तिब्बा की चढ़ाई एक गाँव से शुरू होती है , जहाँ हम ४ बजे पहुंचे और हमारा गाइड बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था, क्यूंकि सूरज ढलते ही चढ़ाई और मुश्किल हो जानी थी।
हमने बिना एक भी पल गंवाए चढ़ाई शुरू कर दी, जब तक आप घर के आराम दार सोफे, बिस्तर और A.C. का मज़ा ले रहे होते हैं, आपको पता भी नहीं चलता की शरीर की असली हालत क्या है, ऐसा ही कुछ हमारा सामना हुआ वास्तविकता से, हर एक कदम मुझे अपनी सेहत और फिटनेस की दुहाई दे रहा था।
कैसे कर के हमने वो चढ़ाई ढाई घंटे मैं ख़त्म की। पूरे समय ये उम्मीद बनी हुई थी ऊपर जाके बॉन फायर करंगे , आग जला के और सब ठीक हो जायेगा, बातें करते करते हमने भैया से पूछा , भैया ऊपर आग जलने का इंतज़ाम तो है ना। भैया बोले ना, लकड़ी तो खाना जलने के लिए हैं, हम सबकी सांस अटक गयी ये सुनके, अच्छी खासी सर्दी और तेज़ हवाओं मैं , घुप अँधेरे मैं रात बिताने की कल्पना हम मैं से किसी ने नहीं की थी।
अपने खस्ता हालत को नज़र अंदाज़ कर पार्थ और कण्व ने एक ३० किलो का लक्कड़ उठाया और उसे लेके ही चढ़ने लगे जबकि हम बाकियों ने छोटी छोटी लकड़ियां इक्कठी कर ली इस उम्मीद मैं की बॉन फायर तो हो के रहेगी। ऊपर पहुँच के पता चला की लकड़ियों का तो भण्डार है, हम सबने गुस्से मैं भैया को देखा हमें इतना प्रताड़ित करने के लिए, और उन्होंने नज़रें चुरा ली।
मेरी और प्राची की पूरी रात कष्ट मैं बीती ठण्ड से जूझते हुए और अगले दिन निकल जाने के प्लान बनाते हुए। पहले हम हर एक कपडा और कम्बल अपने ऊपर डालते थे और फिर थोड़ी देर मैं उसे हटाते थे टॉयलेट जाने के लिए, बाहर बैठे हुए टेंट गार्ड यानी पहाड़ी कुत्ते जो हमारे टेंट के दरवाजे पे डेरा जमा के बैठे हुए थे, उनसे बल प्रयोग और मशक्कत के बाद मुश्किल से निकल पाते। पूरी रात इस क्रिया कर्म मैं निकली, एक पल भी हम दोनों सो नहीं पाए और ठान ली की अगले दिन मसूरी निकल जायेंगे ऐसे तो नहीं रह सकते।
कैंप से नाग तिब्बा की प्रेरणा
सुबह की शीतल बयार और चाय की प्याली ने मेरा रात का ग़म भुलवा दिया और मैंने यहीं रहने का थाना जिस पे मेरी बहन बहुत नाराज़ हुई। खैर ८ बजे हम चाय की चुस्की ले ही रहे थे , की भैया फिर आये और बोले आप लोग नाग तिब्बा समिट नहीं करोगे ? हम पहले ही निश्चित करके आये थे की हलकी फुलकी ट्रिप रखेंगे और बीती रात के अनुभव के बाद हमने अपना मन वैसे ही बना लिया था, और ज्यादा चढ़ाई ना करने का, यहाँ से भी पर्वतों के नज़ारे काम सुन्दर नहीं थे।
फिर भैया ने उत्साह वर्धन भाषण प्रारम्भ किया
" जो भी यहाँ आता है नाग तिब्बा ज़रूर जाता है, २५ लड़कियां आयी हुई हैं टाटा स्टील की बछेंद्री पाल के साथ वो सुबह ही निकल गयी समिट चढ़ने, आप लोग यहीं रहोगे? " अभी तक हम चाय मैं डूबे हुए थे, अचानक से मेरे कान खड़े हो गए, मैंने पूछा कौन? बछेंद्री पाल? मेरी और प्राची की आँखों मैं चमक आ गयी, हालाँकि हमारा इंस्टा जनरेशन भाई और पार्थ को कोई हवा भी नहीं थी की ये हैं कौन?
हमने बताया वो पहली भारतीय महिला हैं जिन्होंने माउंट एवेरस्ट चढ़ा था, हमने अपनी NCERT की पुस्तकों मैं तेनज़िंग हिलेरी और बछेंद्री पाल का ज़िक्र पर्वतारोहण मैं बहुत सुना था, हम सब तुरंत तैयार हो गए।
ये सफर जितना सोचा था उससे ज्यादा रोमांचक सिद्ध हो रहा था, हमारे पास बर्फ मैं चढ़ने के लिए ना तो उपयुक्त जूते थे ना ही गियर्स पर हम बस बछेंद्री पाल से मिलने की आस मैं तैयार हो गए !नाग तिब्बा का मंदिर लोकल और यात्रियों दोनों के बीच बहुत प्रसिद्द है , ये नाग तिब्बा समिट के आधे रस्ते मैं आता है! यहाँ तक तो हम ठीक ठाक पहुँच गए, संघर्ष इसके बाद शुरू हुआ जब ताज़ा बर्फ मैं हमारे जूते जवाब दे गए , हमें अंदाज़ भी नहीं था की बर्फ कहाँ कितनी गहरी है कई जगह हम घुटनों तक घुस जाते या गिर जाते। हमारे आधे कपडे गीले थे पर बछेंद्री पाल से मिलने की उम्मीद मैं हमने हौसला बनाये रखा।
ये सफर और हमारी बकर आप पूरी तरह इस वीडियो के बाद समझ पाएंगे -
चढ़ने से पहले हमें अंदाज़ा नहीं था की आगे क्या होगा, इतना कठिन सफर की हमारी एक एक मॉस पेशी काम कर रही थी , आधे रस्ते के बाद जब पूछे मुड़ के देखा हमें विश्वास ही नहीं हुआ की हम इतनी कठिन कड़ी चढ़ाई पूरी करके आये हैं, नीचे देख के ऊपर चढ़ने से ज्यादा हमें वापस कैसे लौटेंगे ये चिंता थी।
जैसे तैसे हम ऊपर पहुंचे और मैंने "पाल मेडम, पाल मेडम" चिल्लाना शुरू कर दिया जैसे की उनको पता होगा की मैं कौन हूँ ? आखिर कार हमारी मुलाक़ात भारत की पहली पर्वतारोही महिला से हुई और उनके साथ प्रेमलता अग्रवाल से भी मिलने का मौका मिला जिन्होंने हर कांटिनेंट के हाईएस्ट समिट करे हुए थे और रिकॉर्ड होल्डर थीं ! बछेंद्री पाल बहुत ही आश्चर्यचकित हुई हमारे जूते और तैयारी देख के और बोलीं तुमने ऐसे ही पहाड़ चढ़ लिए, ये कमेंट हमारे लिए किसी प्रशंसा से काम नहीं था।
हमने खूब तस्वीरें खींची और १५ मिनट के अंदर वापस लौटने की तैयारी शुरू कर दी क्यूंकि इतने सारे लोगों के साथ निकलने मैं ही भलाई थी, लौटते हुए असली कष्टों का सामना हुआ, हमारे जूतों ने एकदम धोखा दे दिया, मैं ज़मीन के ऊपर कम और ज़मीन पे ज्यादा थी, गिरते सम्हलते, थकते , चलते कैसे करके हमने पहाड़ उतरा, इस आस के साथ की कैंप मैं राजमा चावल खाने को मिलेंगे , बस यही एक प्रोत्साहन था जो इस कठिन सफर मैं हमारी आशा जगाये हुए था ।
कैंप से मसूरी का सफर
अगले दिन हमने कैंप से निकलने की तैयारी की अब हमें अगली दिग्गज शख्सियत से मिलना था, जिसके कारण मेरी बहन इस सफर को राज़ी हुई थी, वो एक बहुत ही प्रसिद्ध इंस्टा इलस्ट्रेटर है जो "itsahappyworld" पेज चलाती है, उसकी रचनायें रस्किन बांड की पुस्तकों से प्रभावित , इसलिए उसे अपने प्रेरणा स्त्रोत से तो मिलना था। रस्किन बांड मसूरी मैं रहते हैं, और हर शनिवार cambridge बुक डिपो मैं बैठते है। हमने पूरी प्लानिंग उसी हिसाब से की थी की शनिवार हम पहुँच जाएँ , पर कोई चीज़ आसानी से मिल जाए तो क्या बात है, हमें पता चला वो बीमार हैं और नहीं मिल सकते इस बार, पर कहते हैं "जहाँ चाह वहां राह", हमने ये मुश्किल कैसे हल की ये जाने के लिए वीडियो देखें और सुनें, आपको निश्चित ही बहुत मज़ा आएगा।
आशा है आपको ये किस्सा पसंद आया होगा। और आप भी अपने भाई बहनों के साथ कोई यात्रा प्लान करेंगे।
शुभ यात्रा।