जयपुर, राजस्थान दौसा जिले के समीप आभानेरी गाँव में स्थित चाँद बावड़ी भारत की सबसे सुन्दर बावड़ी है। अगर आप मेंहदीपुर बालाजी जाते है तो सिर्फ 1 घंटे की दूरी पर यह जगह स्थित है। मैं तो इसे सर्वाधिक चित्रीकरण योग्य बावड़ी भी मानती हूँ।
यह १३ तल गहरी बावड़ी है। बावड़ी के भीतर, जल सतह तक पहुँचती सीड़ियों की सममितीय त्रिकोणीय संरचना देख आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। राजस्थान एक सूखा रेगिस्तानी प्रदेश होने के कारण यहाँ बावड़ियों का निर्माण सामान्य है। उत्क्रुष्ट जल प्रबंधन प्रणाली होने के साथ साथ ये बावड़ियाँ ग्रीष्म ऋतू में वातावरण में शीतलता भी प्रदान करती हैं। शोचनीय तथ्य यह है कि एक जल प्रबंधन प्रणाली को वास्तुशिल्पीय दृष्टी से इतना मनमोहक निर्मित करने के पीछे क्या हेतु था? कहीं ऐसा तो नहीं कि ९वी शताब्दी की सर्व सार्वजनिक संरचनाएं इतनी ही मनोहारी हुआ करती थीं और हमारी धरोहर स्वरुप कुछ ही शेष है? यदि यह सत्य है तो उस युग के भारत को विश्व का चमकता हीरा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
आभानेरी चाँद बावड़ी का इतिहास
चाँद बावड़ी राजस्थान की तथा कदाचित सम्पूर्ण भारत की प्राचीनतम बावड़ी है जो अब भी सजीव है। भारत की इस सर्वाधिक गहरी बावड़ी का निर्माण निकुम्भ वंश के राजा चंदा या चंद्रा ने ८वी से ९वी शताब्दी में करवाया था। १२०० से १३०० वर्ष प्राचीन यह संरचना ताजमहल, खजुराहो के मंदिर तथा चोल मंदिरों से भी प्राचीन हैं किन्तु अजंता एवं एलोरा गुफाओं के शिल्पों से अपेक्षाकृत नवीन हैं।
आभा नगरी अर्थात् चमकने वाला नगर, जयपुर-आगरा मार्ग पर स्थित एक छोटा क़स्बा है जिसे राजा चाँद ने बसाया था। रोमांचक बावड़ियों एवं माता मंदिर हेतु प्रसिद्ध इस कस्बे का नाम कालान्तर में आभानेरी में परिवर्तित हो गया।
आईये ९वीं शताब्दी में निर्मित इस बावड़ी अर्थात् वाव या पुष्कर्णी के २१वी. शताब्दी के रूप से आपका परिचय कराती हूँ-
चाँद बावड़ी के दर्शन -
इस आकर्षक बावड़ी के कई चित्र देखने के पश्चात मैं पहले ही इस पर मंत्रमुग्ध थी। इस अद्भुत बावड़ी के प्रत्यक्ष दर्शन करने के विचार से मन रोमांचित हो उठा था। एक ऊंचे मंडप से होकर इस बावड़ी के परिसर पर पहुँची। वहां कुछ स्त्रियाँ एक शिवलिंग की पूजा कर रही थीं। कुछ पग आगे चल कर जो दृश्य देखा मेरे रोंगटे खड़े हो गए। चित्रों में जिस आकर्षक बावड़ी को देखा था, प्रत्यक्ष में यह बावड़ी उससे कहीं अधिक भव्य एवं प्रभावशाली प्रतीत हुई। कुछ क्षण मंत्रमुग्ध होकर मैं उस बावड़ी को ताकती रही। सचेत होने पर बावड़ी का सूक्ष्मता से निरिक्षण आरम्भ किया।
चाँद बावड़ी का वास्तु शिल्प -
१९.५ मीटर गहरी इस बावड़ी की तीन भित्तियों पर ज्यामितीय आकार प्रदान करते सोपान निर्मित हैं। आप इन सोपानों पर सीधे न चढ़ते हुए, एक तरफ से चढ़ते हैं। यह ज्ञात नहीं हो पाया कि इस प्रकार की त्रिकोणीय संरचना केवल सौंदर्य एवं कलात्मकता की दृष्टी से की गयी थी अथवा इसका अन्य हेतु था। मेरे अनुमान से ऊंचे सोपानों पर एक तरफ से चढ़ना कदाचित सुरक्षा की दृष्टी से श्रेयस्कर हो। भूलभुलैय्या के रूप में बने इन सोपानों को देख ऐसा प्रतीत होता है जैसे जिन सीड़ियों से हम नीचे उतरें, वापिस उन्ही सीड़ियों से चाह कर भी ऊपर नहीं आ पायेंगे।
चौथी भित्ति पर कई तलो में स्तंभ युक्त गलियारे निर्मित हैं। दो आलिन्द अर्थात् आगे की ओर निकली बुर्ज सदृश संरचनाएं हैं जो बावड़ी की ओर मुख किये हुए हैं। बावड़ी की निचली तल पर गणेश एवं महिषासुरमर्दिनी की भव्य प्रतिमाएं बावड़ी की सुन्दरता को चार चाँद लगा रहे थे। सामान्यतः किसी भी बावड़ी के भीतर कहीं न कहीं शेषशायी विष्णु की प्रतिकृति अवश्य होती है। छानबीन करने पर मुझे यह जानकारी प्राप्त हुई कि चाँद बावड़ी के एक निचले गलियारे के भीतर विष्णु की प्रतिकृति है। चूंकि पर्यटकों को बावड़ी के भीतर जाने की अनुमति नहीं है, मैं उसके दर्शन नहीं कर पायी। वास्तव में बावड़ी अथवा कोई भी जल स्त्रोत क्षीरसागर का स्वरूप माना जाता है। दुग्ध का वह सागर जहां भगवान् विष्णु निवास करते हैं।
ध्यान से देखने पर आपको जल ऊपर खींचने का यंत्र-स्तंभ दृष्टिगोचर होगा। इसकी निर्मिती इतनी सूझबूझ से की गयी है कि यह बावड़ी की संरचना में विलीन प्रतीत होती है।
चाँद बावड़ी के कलात्मक सोपान -
चाँद बावड़ी अन्य बावड़ियों की तरह जैसे जैसे नीचे जाती है, संकरी होती जाती है। बावड़ी के तह तक १३ तलो में ३५०० सीड़ियाँ बनायी गयी हैं जो अद्भुत कला का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
मैं बावड़ी के आसपास विचरण कर प्रत्येक कोण से उसका निरिक्षण करने लगी। स्तंभयुक्त गलियारों से घिरी यह बावड़ी चारों ओर से वर्गाकार है जिस पर आकर्षक एवं कलात्मक विधि से सोपान बनाए गए हैं। बावड़ी के जल का रंग चटक हरा हो चुका था जो दृश्य को और चमकीला एवं रंगीन बना रहा था। यद्यपि सीड़ियाँ उतरने की अनुमति नहीं है, तथापि मेरा चित्त कल्पना जगत में विचरण करने लगा। राजस्थान की कड़क उष्णता में इन गलियारों में बैठ शीतलता का आनंद लेने का अनुभव कितना सुखद होगा। उस पर चारों ओर छाई कलात्मकता की छटा सोने पर सुहागा होगी। काश हमारी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी भी इस सुखद आनंद का अनुभव प्राप्त कर सकती।
मैंने अपने कैमरे के लेंस से इस कलात्मकता को समीप से देखने का प्रयत्न किया। मुझे कुछ अत्यंत आकर्षक द्वार चौखट दृष्टिगोचर हुए। गलियारों पर बने वृत्तखंड निश्चय ही पुनरुद्धार के समय निर्मित किये गए होंगे क्योंकि ८-९वीं सदी में वृत्तखंडों की कल्पना उपलब्ध नहीं थी।
मन भर कर बावड़ी को निहारने एवं पर्याप्त छायाचित्र लेने के उपरांत मैंने चारों ओर दृष्टी दौड़ाई। चाँद बावड़ी एक ऊंची चारदीवारी से घिरी हुई है तथा एक गलियारा इसके समान्तर निर्मित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने मुझे जानकारी दी कि यह चारदीवारी तथा प्रवेशद्वार मूल योजना के भाग नहीं थे। इन्हें बाद में बनाया गया था।
इस गलियारे में कई उत्खनित कलाकृतियाँ रखी हुई हैं। भिन्न भिन्न कलाकृतियों में जिन्हें मैं पहचान सकी वह हैं-
• लाल पत्थर में बना शिव का शीष, ध्यानमग्न शिव तथा शिव-पार्वती
• कल्की अवतार में विष्णु तथा परशुराम
• कार्तिकेय
• महीन नक्काशी की गयी महिषासुरमर्दिनी
• ब्रम्हा, विष्णु एवं महेश के फलक
• हर्षत अथवा हरसिद्धि माता
• लक्ष्मी
• जैन मूर्तियाँ
• यक्ष की प्रतिमाएं
• आकर्षक उत्कीर्णित स्तंभखंड