भगवान शिव से जुड़े देश भर में ऐसे कई स्थान हैं जो भोलेनाथ के चमत्कारों के गवाह रहे हैं। यूं तो देश की ज्यादातर पहाडि़यों में कहीं न कहीं शिव का कोई स्थान मिल जाएगा, लेकिन शिव के निवास के रूप में सर्वमान्य कैलाश पर्वत के भी एक से ज्यादा प्रतिरूप पौराणिक काल से धार्मिक मान्यताओं में स्थान बनाए हुए हैं। तिब्बत में मौजूद कैलाश-मानसरोवर को सृष्टि का केंद्र कहा जाता है। वहां की यात्रा आर्थिक, शारीरिक व प्राकृतिक, हर लिहाज से दुर्गम है। उससे थोड़ा ही पहले भारतीय सीमा में पिथौरागढ़ जिले में आदि-कैलाश या छोटा कैलाश है। इसी तरह एक और कैलाश हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में है। ये दोनों कैलाश भी बड़े कैलाश की ही तरह शिव के निवास माने जाते हैं और इनका पौराणिक महात्म्य भी उतना ही बताया जाता है। ऐसी ही एक जगह है मणिमहेश। कहते हैं भगवान शिव ने यहीं पर सदियों तक तपस्या की थी। इसके बाद से ये पहाड़ रहस्यमयी बन गया।
भगवान शिव ने की थी पर्वत की रचना -:
मणिमहेश नाम का पवित्र सरोवर है जो समुद्र तल से लगभग 13,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसी सरोवर की पूर्व की दिशा में है वह पर्वत जिसे कैलाश कहा जाता है। इस हिमाच्छादित शिखर की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 18,564 फीट है। स्थानीय लोग मानते हैं कि देवी पार्वती से विवाह करने के बाद भगवान शिव ने मणिमहेश नाम के इस पर्वत की रचना की थी। यह भी माना जाता है कि यदि हिमस्खलन या बर्फानी तूफान होता है, तो यह भगवान शिव के क्रोध के कारण होता है। मणिमहेश पर्वत के शिखर पर भोर में एक प्रकाश उभरता है जो तेजी से पर्वत की गोद में बनी झील में प्रवेश कर जाता है। यह इस बात का प्रतीक माना जाता है कि भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर बने आसन पर विराजमान होने आ गए हैं तथा ये अलौकिक प्रकाश उनके गले में पहने शेषनाग की मणि का है। इस दिव्य अलौकिक दृश्य को देखने के लिए यात्री अत्यधिक सर्दी के बावजूद भी दर्शनों के लिए बैठे रहते हैं।
मणिमहेश यात्रा –
मणिमहेश यात्रा इस पवित्र तीर्थ स्थल का सबसे प्रमुख आकर्षण है जो साल में एक बार की जाती है। हर साल, भादों के महीने में चंद्रमा के प्रकाश आधे के आठवें दिन, इस झील में एक मेला लगता है, जिसमे हजारों तीर्थयात्री मणिमहेश झील के पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए यहां इकट्ठा होते हैं।
जन्माष्टमी से राधाष्टमी (15 दिन की अवधि) तक चलने वाली मणिमहेश यात्रा अगस्त या सितंबर के महीने में की जाती है। इस यात्रा में श्रद्धालु पैदल नंगे पैर लगभग 14 किमी की दूरी तय करने बाद पहुचते है। यात्रा में एक भजन गाते हुए एक जुलूस भी निकाला जाता है जिसे स्थानीय रूप से “पवित्र छारी” (तीर्थयात्रियों द्वारा ली जाने वाली छड़ी) के रूप में जाना जाता है। मणिमहेश की यात्रा की शुरुआत लक्ष्मी नारायण मंदिर और चंबा में दशनामी अखाड़े से होती है और इस यात्रा को पूरा करके मणिमहेश पहुचने के बाद तीर्थयात्री झील में पवित्र डुबकी लगाते हैं और भगवान से आशीर्वाद लेने के लिए तीन बार उसकी परिक्रमा करते हैं। महिला भक्त गौरीकुंड और पुरुष शिव कटोरी में डुबकी लगाते हैं।
दिव्य त्रिमूर्ति का निवास -:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि यह क्षेत्र ब्रह्मा, विष्णु और महेश के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव छह महीने के लिए इस स्थान पर रहते हैं और बाद में शेष समय के लिए भगवान विष्णु इस स्थान पर निवास करते हैं। माना जाता है कि जिस दिन भगवान विष्णु इस स्थान पर निवास करते है उस दिन जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है और जब भगवान शिव फिर से मणिमहेश लौटते हैं, तब उस दिन शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
मणिमहेश कैलाश ट्रेक –
हिमालय की पीर पंजाल श्रेणी में 4,080 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश झील सिर्फ श्रद्धालुओं ही नही बल्कि ट्रेकर्स के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पर्वतीय प्रेमियों और ट्रेकर्स की मानें तो राजसी मणिमहेश की ट्रेक हिमाचल प्रदेश के सबसे खूबसूरत ट्रेक और रोमांचक ट्रेक्स में से एक है। मणिमहेश के लिए सबसे लोकप्रिय और सबसे आसान ट्रेक एक छोटे से शहर हडसर से शुरू होता है। इस ट्रेक की शुरुआत पहले कुछ किलोमीटर की मामूली चढ़ाई से शुरू होती है लेकिन उसके बाद, मार्ग पहले मणि महेश धारा को पार करने की दिशा में एक ज़िगज़ैग की तरह हो जाता है। एक और 1 किमी के लिए ट्रेकिंग के बाद, आप धनचो पहुंचेंगे। यह जगह समुद्र तल से 2,280 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। धनचो से, ट्रेक फूलों और औषधीय जड़ी-बूटियों की घाटी से सुंदरसी तक जाता है। सुंदरसी से, दो ट्रेकिंग मार्ग उपलब्ध हैं। पहला ट्रेक सुविधाजनक ट्रेक है जबकि दूसरा थोड़ा अधिक कठिन है जो “भैरव घाटी” के माध्यम से गौरीकुंड तक पहुंचता है। यदि आप गौरीकुंड से पहला रास्ता लेते हैं, तो आप एक धातु गर्डर पुल के ऊपर मणि महेश नाले को पार करते हैं। जो अंत में ग्रेडिएंट के बाहर निकलता है और यहां से आपकी मंजिल 1.5 किलोमीटर है। वेसे तो ये ट्रेक दिन में पूरा किया जा सकता है। लेकिन यदि आप चाहे तो धनोचो में रात भर रह सकते हैं यहाँ ठहरने के लिए आवास भोजन के लिए रसोई उपलब्ध है।
यात्रा के दौरान बरतें ये सावधानियां -
अपने साथ पर्याप्त गर्म कपड़े रखें। यहां तापमान एकदम से पांच डिग्री तक गिर सकता है। यात्रा मार्ग पर मौसम कभी भी बिगड़ सकता है, लिहाजा अपने साथ छाता, रेनकोट व वाटरप्रूफ जूते लेकर जाएं। बारिश में सामान गीला न हो, इसके लिए कपड़े व अन्य खाने-पीने की चीजें वाटरप्रूफ बैग में ही रखें। आपातस्थिति के लिए अपने किसी साथी यात्री का नाम, पता व मोबाइल नंबर लिखकर एक पर्ची अपनी जेब में रखें। अपने साथ पहचान पत्र या ड्राइविंग लाइसेंस या यात्रा पर्ची जरूर रखें।
मणिमहेश झील घूमने जाने का अच्छा समय -
मणिमहेश झील समुद्र तल से 4,080 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और सर्दियों के समय पूरी तरह बर्फ से जमी रहती है। इसीलिए आप अप्रैल से लेकर मध्य नवंबर के दौरान किसी भी समय मणिमहेश झील की यात्रा कर सकते हैं। मणिमहेश झील में हर साल, भादों के महीने में या अगस्त – सितम्बर में इस झील में एक मेला लगता है, जो हजारों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है,आप इस दौरान भी मणिमहेश झील घूमने जा सकते है।
मणिमहेश झील के मुख्य पर्यटन स्थल -:
लक्ष्मी नारायण मंदिर -
यह मंदिर क्षेत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। मंदिर के अंदर, आपको भगवान विष्णु और भगवान शिव की आकर्षक मूर्ति देखने को मिलेगी। मंदिर परिसर के केंद्र में स्थित मूर्ति को संगमरमर से तराश कर बनाया गया है, जो शानदार नक्काशी के लिए जाना जाता है। आध्यात्मिक रूप से इच्छुक लोगों को इस मंदिर के दर्शन जरूर करनी चाहिए।
चमेरा झील -
प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा यह झील घूमने के लिए उत्तम स्थान है। यह स्थान वास्तव में राजसी लिबास को दर्शाता है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। इसके अलावा आप यहां पर कई तरह के साहसिक गतिविधि जैसे, स्पीड बोट या रैनबोट का आनंद ले सकते हैं।
अखंड चंडी महल -
यह महल चंबा शहर के पास स्थित है, जो अपने बेहतरीन वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यह महल इतिहास से जुड़ी कई किस्से अपने अंदर समेटे हुए है। अब इस महल को सरकारी कॉलेज और पुस्तकालय में बदल दिया है।
कैसे पहुंचें मणिमहेश -
मणिमहेश यात्रा हड़सर से पैदल शुरू होती है। भरमौर से मणिमहेश 17 किलोमीटर, चंबा से करीब 82 किलोमीटर और पठानकोट से 220 किलोमीटर की दूरी पर है। पठानकोट मणिमहेश कैलाश यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है, जबकि कांगड़ा हवाई अड्डा नजदीकी हवाई अड्डा है।
हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध -
राज्य सरकार ने यात्रियों को ले जाने के लिए एक निजी हेली टैक्सी संचालक को अनुमति दी है। हेलीकॉप्टर लोगों को आधार शिविर भरमौर से पवित्र झील से एक किलोमीटर पीछे गौरीकुंड तक ले जाएगा। एक तरफ का किराया 2750 रुपये प्रति यात्री तय किया गया है।