यात्रा कभी रुकती नही ,बस सह-यात्री बदलते रहते है ।

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Photo of यात्रा कभी रुकती नही ,बस सह-यात्री बदलते रहते है । 1/1 by Pankaj Sharma
Haridwar Ganga kinare 

अध्याय- 1 - हरिद्वार कांड - जहाँ जीवन भर के पाप 24 घंटो से भी कम समय मे धो डालें ।

बात है 2010 कि एक दिन ऑफिस में बैठे बैठे ख्याल आया , कि ये नदियां कहाँ से निकलती है क्यों न इन नदियों के उद्गम स्थानों पर जाया जाए और इनको देखा जाए तो सबसे पहले जिस नदी का नाम दिमाग मे आया , वो थी गंगा जो निकलती है गोमुख से पर अब सवाल आया गोमुख जाने की जानकारी कहाँ से ले । उस वक़्त मै फेसबुक पर नही था और यूट्यूब पर भी मुझे इतना जाना पसंद नही था । हमारे पूरे खानदान में से सिर्फ मेरी परदादी गोमुख गयी थी जो अब इस दुनिया मे नही थी तो मेरे पास जानकारी का स्रोत सिर्फ गूगल था । तो हम पहुँचे गूगल बाबा की शरण मे । लगभग 1 महीने की महनत के बाद सब जानकारी इकट्ठी करी । उस वक़्त के अपने सबसे अच्छे मित्र को चलने के लिए राजी किया । उसको हिमालय और गंगा की सुंदरता का बखान किया और दिल्ली की मई के महीने की गर्मी का वास्ता दिया । जिससे वो साथ चलने को राजी हुआ । मुझे लगता है 2010 तक इन जगहों की यात्रा पर आज जैसा बाज़ारवाद हावी नही था तो ये यात्रा एक शांत और सकून देने वाली थी । बस दिक्कत थी सही समय पर सही जानकारी का मिलना । हमारे पास उस वक़्त स्मार्ट फ़ोन भी नही था । गूगल से सब जानकरी इक्कठी करी और फिर ऑफिस के प्रिंटर से प्रिंट आउट लिए बाकी जानकारी अपने लैपटॉप पर रखी और मई के महीने के लिए 5 दिन की छुटी अप्लाई करी 1 दिन का वीकएंड होता था तो इस तरह से कुल 7 दिन थे ।

मैं नोएडा रहता था मेरा दोस्त दिल्ली तो वो एक दिन पहले ही मेरे घर आ गया और फिर रात का हल्का सा डिनर कर हम सिटी सेंटर नोएडा के बस स्टैंड पर गए और वहाँ से हरिद्वार की बस ली रात भर की यात्रा थी लगभग सुबह 4 बजे बस वाले ने हरिद्वार लगा दिया । अब सामने थी दो मुसीबत एक तो सुबह का प्रेसर दूसरा जल्दी से होटल ढूंढना , तो हमने किया एक रिकशा और लगे होटल ढूंढने ।

ये हम लोगो की पहली यात्रा थी जो हम खुद से कर रहे थे तो सब बंदोबस्त हमे करना था यात्रा लंबी थी और बजट टाइट । जो होटल पसंद आते वो जेब से बाहर होते और जो जेब मे होते वो पसंद से बाहर पर लगभग 2 घंटे की मेहनत के बाद एक होटल मिल गया । एक मुसीबत खत्म हुई और जल्दी ही उसके साथ दूसरी भी खत्म हो गयी । रूम मिल गया हरिद्वार की आधी चिंता खत्म हुई अब हम निकल लिए घाट की तरफ , तब तक शायद सुबह के 10 बज चुके थे मई के महीने की गर्मी और सामने ठंडी गंगा जी तो बस उतारे कपड़े और लगा ली डुबकी । गंगा जी के अंदर पहली डुबकी ने तो पूरे शरीर मे करंट सा मार दिया पर उसके बाद तो हम ही गंगा जी का हिस्सा बन गए और लगभग 12 बजे हम गंगा जी से बाहर आये । मुझे तो एक तरह से मजबूरी में आना पड़ा क्योंकि हमारे दोस्त की हड्डी ठंड से बजने लगी थी और पेट मे हम दोनों के चूहे कूद रहे थे ।

अब हमें तलाश थी कुछ अच्छे से खाने की तो हम दोनो हर की पौड़ी की तरफ चल दिये । हर की पौड़ी से ऊपर की तरफ जाते वक़्त हमें एक बाजार दिखा , जहाँ खाने पीने की काफी चीज़े मिल रही थी तो वही कोने पर हमें एक छोटी सी दुकान दिखी जिसपर काफी भीड़ थी तो हम भी वही चल दिये ,शायद दुकान का नाम था मोहन या मथुरा पूड़ी वाला बस वही से हमने काफी कुछ लिया और भर पेट खाना खाया । दोपहर की तेज धूप और मई की गर्मी से हम दोनों ही परेशान हो रहे , तो वापस घाट से होते हुए जाते वक्त मन किया फिर से डुबकी लगा ले पर भर पेट खाना खाँ लेने के बाद नहाना स्वास्थ के लिए अच्छा नही होता तो ये सोच मैं कुछ नही बोला बस मन ही मन निश्चित कर लिया शाम को फिर नहाना है

होटल में दोपहर की नींद पूरी कर शाम को हम फिर वापस गंगा जी मे नहाने चल दिये । गंगा जी मे नहाते हुए समय कब निकला मालूम ही नही लगा और शाम की गंगा आरती का वक़्त हो गया और सबको गंगा जी से बाहर निकलने के लिए हर की पौड़ी के सेवादार बोलने लगे पहले तो हमे समझ नही आया कि ये कौन पैदा हो गए जो सबको गंगा जी से बाहर निकलने को बोल रहे है पर जब सब निकल रहे थे तो हमे भी मन मार के पानी से बाहर आना पड़ा । देखते ही देखते घाट पूरा भर गया और सब लोग वही गंगा किनारे बनी सीढ़ियों पर बैठ गए और हम दोनों दोस्त भी वही बैठ गए । सच बताये तो ये सब हमारे लिए नया था और हमे नही मालूम था कि आगे क्या होने वाला है हम दोनों बस समय के साथ बह रहे थे पर थोड़ी देर बाद आरती होने लगी और तब याद आया कि हरिद्वार में गंगा जी की आरती शाम को होती है । आरती का आनंद लेने के बाद हम चल दिये रात्रि भोजन के लिए जो हमने वही किया जहाँ दोपहर का खाया था बस अब वो सब आइटम खाये जो दोपहर में नही खाँ पाए थे । भर पेट खाना खाने के बाद हम दोनों दोस्त वापस घाट पर आ गए और गप्पे मारते हुए घूमने लगे और आस पास के नजारों का आनंद लेने लगें पर अब भी मेरे मन मे वही बात चल रही थी कि फिर से गंगा जी मे डुबकी लगाई जाए बस थोड़ा घूम लो खाना पचा लो क्योंकि खाने के तुरंत बाद नहाना नही चाहिए ।

घाट पर समय कब निकल गया मालूम ही नही लगा और रात के 9 बज गए और जिस का इंतजार था वही अब करना था हम फिर से गंगा जी एक अंदर पर रात थी हवा ठंडी थी तो मुश्किल से 30 मिनट बाद ही हमे वापस बाहर आना पड़ा । गंगा जी मे दिन भर नहाने के बाद मई की गर्मी से काफी राहत मिल चुकी थी तो कुछ देर वही बैठ कर अब हम वपास अपने होटल आ गए और सुबह जल्दी जागने के चक्कर मे जल्दी ही सो गए ।

सुबह कब हुई मालूम ही नही लगा ,बस इतना समझ आया कि जल्दी चलो ऋषिकेश की ओर तो बस हम जल्दी जल्दी फ्रेश हुए । नहाने का तय हुआ कि फिर से गंगा जी मे ही जायेंगे तो बस हल्का सा नास्ता किया समान पैक किया होटल से चेक आउट और पहुँच गए घाट । मेरे दोस्त ने तो मना कर दिया ,पर में बिना देरी करें गंगा जी मे फिर से कूद गया । ऋषिकेश जाने की जल्दी थी तो मन न होते हुए भी बाहर आना पड़ा । अगर अब में याद करू और हिसाब लगाओ तो शायद मेने अपने हरिद्वार के इस पहले ट्रिप में अपने जीवन के सारे पाप धो डाले . क्योंकि 24 घंटो से भी कम समय में मैं 4 बार गंगा जी मे नाहा चुका था और लगभग 8 - 9 घंटे गंगा जी के अंदर समय निकाल लिया ।

नहाने के बाद वही किसी आते जाते हरिद्वार वासी से मालूम किया ऋषिकेश के लिए ऑटो कहाँ से मिलेगा तो मालूम चला पास ही चौराहा है वही से ऋषिकेश के लिए ऑटो जाते है जो 20 या 30 रु सवारी लेते है तो बस चौराहे पर जा हमने भी एक ऑटो किया और चल दिये ऋषिकेश के लिए । सुबह का वक़्त था 2010 कि बात है हरिद्वार से ऋषिकेश का रास्ता काफी सुंदर लग रहा था एक दम खाली रोड , रोड के दोनों तरफ जंगल , मन मे गोमुख जाने की खुशी और ऑटो फुल रफ्तार से ऋषिकेश की तरफ , पर तभी ...

शेष अगले भाग में .....

Day 1