किन्नर कैलाश.... आखिर क्या इतिहास है इस दुर्गम स्थान का

Tripoto
20th May 2022
Day 2

      जब पांडवों को द्यूतक्रीड़ा के पश्चात 12 वर्ष का वनवास मिला तो उसके कुछ दिन बाद माधव उनकी कुटिया में आए। उन्होंने युधिष्ठिर और द्रोपदी को निर्देश दिया कि आप यही वन में रहकर तपस्वीयों की सेवा करो। महाबली भीम को हनुमान जी की आराधना करने के लिए गंधमादन की और भेजा और नकुल-सहदेव को अश्विनी कुमारों की प्रसन्न करने के लिए। अपने प्रिय मित्र अर्जुन को निर्देश दिया कि वह हिमालय जाकर भगवान शिव से पाशुपतास्त्र प्राप्त करें। आज्ञा मानकर अर्जुन हिमालय की ओर चले और पहुंच गए #इंद्रकील पर्वत पर। वहां महाशिव ने उन्हें किरात(शिकारी) रूप में दर्शन दिए और पाशुपतास्त्र प्रदान किया।
वर्तमान में वही #इंद्रकील पर्वत ही किन्नर कैलाश है। आप में से बहुतों के मन मे प्रश्न उठा होगा कि इस कैलाश का नाम किन्नर कैलाश क्यों है....क्या इसका किन्नर वर्ग से कोई संबंध है???? मेरे मन मे तो उठा था...फिर क्या उठाई कुछ पोथियाँ...खंगाला google बाबा, तो हमारे मूढ़ मस्तिष्क में भी ज्ञान की कुछ गूढ़ बातें प्रवेश हुई। क्या कहा....आपने भी सुननी हैं, तो सुनिए...... प्राचीन धर्म ग्रंथों में आज के किन्नौर को किन्नर प्रदेश की संज्ञा दी गई है। किन्नर वह जाति है जो देवों की सभा में गायन किया करती थी। हम पौराणिक कथाओं में सुनते हैं कि गंधर्व नाचते थे और किन्नर गान किया करते थे। वायुपुराण और महाभारत के कई आख्यानों से यह ज्ञात भी होता है कि हिमाचल का पवित्र कैलाश क्षेत्र किन्नरों का निवास क्षेत्र था। वहां वे शिव की सेवा में रहते थे और देवताओं के गायक के रूप में काम करते थे। सैकड़ों सेवको के साथ नृत्य और गायन का काम करते थे और चित्ररथ उनका अधिपति था। महाभारत में तो पांडवों की ओर से इन्होंने लड़ाई भी की थी। अतः यह देव गायकों के वंशज हैं....हिजड़ा वर्ग से जोड़ कर देखना हमारी भूल मात्र ही है। किन्नर प्रदेश में स्थित होने के कारण महादेव का ये धाम किन्नर कैलाश कहलाता है।
बाकी मस्त रहिये, व्यस्त रहिये ओर ऐसी जानकारी के लिए पढ़ते रहिये मेरी पोस्ट
#धरतीपुत्र

Photo of किन्नर कैलाश.... आखिर क्या इतिहास है इस दुर्गम स्थान का by Dharti-putra Akshay
Day 1

श्री किन्नर कैलाश महाशिला

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अर्जुन को पाशुप्तास्त्र प्रदान करते हुए महादेव शिव

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