कैलास मानसरोवर के जाने अनजाने किस्से, ये नहीं देखा तो क्या देखा !

Tripoto
23rd Feb 2021

कैलास मानसरोवर के बारे में

सबसे पहले तो एक मिथक तोड़ते हैं, जिसमें बहुत से लोगों को ऐसा लगता है कि कैलाश और मानसरोवर आज भारत में स्थित है। जी नहीं, बल्कि ये स्थित है आज के चीन के नियंत्रण में आने वाले बुरांग काउंटी, तिब्बत (ऑटोनोमस रीजन) में। आज की 8 बुर्ज खलीफा बिल्डिंग एक के ऊपर एक रख दी जाएं इतना ऊंचा कैलास पर्वत, भारत में उत्तराखंड में पिथौरागढ़ जिले की भारत-चीन सीमा से लगे हुए तिब्बत में स्थित है। समुद्रतल से 6638 मीटर ऊंचे माउंट कैलास की संरचना एक बहुत बड़े ग्रेनाइट चट्टान के आधार पर रखी रूपांतरित अवसादी चट्टानों की बड़ी शंक्वाकार छत की तरह है। हालांकि कई लोगों का ऐसा भी मानना है कि, कैलास को एक महामानव द्वारा विशेष शक्तियों और आज की तकनीकी से कहीं अधिक विकसित तकनीकी से निर्मित किया गया है या यूं कहा जाय कि, यह प्राकृतिक निर्माण न होकर मानवनिर्मित है।

कैलास जिसके शिखर सदा हिम से ढके होते हैं, की श्वेत आभा को देखकर हर यात्री मंत्रमुग्ध 💐 हो जाता है। कालिदास की उपमायें उनके समक्ष जीवंत हो उठती हैं। मेघदूत की अलकापुरी कैलास पर ही थी। महाकवि कालिदास ने पूर्वमेघ में गंगा को कैलास की गोद में स्थित बताया है। यहाँ अलकनंदा कैलास के निकट बहती हुई बद्रीनाथ पहुंचती है और नीचे गंगा के गंगोत्री वाले स्त्रोत में मिल जाती है। इस सिद्धांत से तो संभव है कि यही गंगा का मूल स्त्रोत भी हो। हालांकि पुराणों के अनुसार, समुद्र तल से 17 हजार फुट की उंचाई पर स्थित 300 फुट गहरे मीठे पानी की इस मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान शंकर द्वारा प्रकट किए गए जल के वेग से जो झील बनी, कालांतर में उसी का नाम 'मानसरोवर' हुआ।

Mount Kailas in backdrop with Red Tibbatan Plateau

Photo of Kailash Mansarovar by Roaming Mayank

Mansarovar and Rakshastal lakes, Kailas in backdrop

Photo of Kailash Mansarovar by Roaming Mayank

कैलास की तलहटी से 40 किमी दूर मानसरोवर और राक्षसताल झीलें स्थित है। ये एशिया की सबसे लंबी नदियों में से कुछ की स्रोत हैं जैसे सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र, और करनाली (भारत में घाघरा कहलाने वाली)। ये सभी पवित्र धाराएं मानसरोवर और राक्षसताल झील से ही निकलती हैं। सूर्य के आकार वाली मानसरोवर झील दुनिया में शुद्ध/मीठे पानी की सबसे ऊंचाई पर स्थित झील है। पौराणिक कथाओं में इसे ही क्षीरसागर कहा गया है। वहीं चंद्रमा के आकार वाली राक्षसताल झील दुनिया में खारे पानी की सबसे ऊंची झीलों में से एक है। ये दोनों झीलें सौर और चन्द्र बल को प्रदर्शित करती हैं जिसका संबंध सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से है। इन्हीं कारणों से मानसरोवर का जल अधिकतम समय शांत, जलीय जीवन से युक्त, प्यास बुझाने में सक्षम और राक्षसताल का जल ज्यादातर उथलपुथल, जलीय जीवन से मुक्त, पीने के लिए अनुपयुक्त रहता है। इन दो सरोवरों के उत्तर में कैलास शिखर है औऱ दक्षिण में गुरला मान्धाता पर्वत। मानसरोवर के कारण ही कुमाऊं की धरती पुराणों में उत्तराखंड (जिसके उत्तर में कैलास) के नाम से जानी जाती हैं। इन्हें "अच्छा और बुरा सभी कुछ मिलाकर जीवन बनता है", ऐसा संदेश देने वाला संकेत माना जाता है। दक्षिणी ओर से ऊंचाई से देखने पर ये झीलें और पर्वत स्‍वास्तिक के समान आकृति बनाते है।

मानसरोवर या क्षीरसागर, पीछे गुरला मान्धाता शिखर

Photo of Lake Manasarovar by Roaming Mayank

मानसरोवर की रात्रि

Photo of Lake Manasarovar by Roaming Mayank

मानसरोवर और कैलास

Photo of Lake Manasarovar by Roaming Mayank

राक्षसताल झील गहरे नीले रंग की दिखाई देती है और बहुत नमकीन पानी है। झील के आसपास कोई पौधे, कोई मवेशी या भेड़-चरवाहे आदि नहीं है। सब कुछ बेजान सा लगता है। इसीलिए इसे को "घोस्ट लेक" भी कहा जाता है। कहा जाता है कि राक्षसताल और मानसरोवर झील पहले एक ही झील हुआ करती थी। बाद में झील का मध्य भाग नीचे आया या यूं कहा जाय कि लगभग 4500 मीटर की ऊंचाई पर वाष्पीकरण में बढ़त/ इनफ्लो में आई कमी के कारण उभर आयी एक छोटी लंबी पहाड़ी ने झील को दो भागों में अलग कर दिया। पानी का एक लंबा चैनल "गांग्पा चू" दोनो झीलों को जोड़ता है। हालांकि ये चैनल आमतौर पर सूखा ही होता है पर स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि एक दिन मानसरोवर का पानी राक्षसताल झील में बहने लगेगा और एक लाल मछली राक्षसताल में तैर जाएगी। तब राक्षसताल का पानी भी उतना ही मीठा होगा जितना कि मानसरोवर का। कहा जाता है कि हवा न होने पर भी राक्षसताल में तीन फीट तक ऊँची लहरें उठती रहती हैं। यहां प्राकृतिक नजारा बेहद शानदार है। झील के किनारे की गहरी लाल पहाड़ियाँ बहुत ही खूबसूरत हैं। छोटे-छोटे कंकड़ के बीच झील के किनारे एक सफेद चांदी की बेल्ट की तरह दिखते है। इसके अलावा, लोग अक्सर झील के किनारे एक अजीब भावना महसूस करते हैं जैसे यह ब्रह्मांड के किसी किनारे की तरह ही शांत और बिल्कुल खाली है। ये नहीं देखा तो क्या देखा ?

राक्षसताल

Photo of Lake Rakshastal by Roaming Mayank

धर्म और प्राचीन साहित्य के नजरिए से -

कैलास पर्वत को पृथ्वी के चार प्रमुख धर्मों में पवित्र माना जाता है: हिंदू, बॉन, बौद्ध और जैन। हिन्दुओं की आस्था जगजाहिर तौर पर इस पर्वत पर आदिदेव शिव का निवास स्थान होने के कारण है। शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय व नंदी की कई पौराणिक कथाएं इस पर्वत को हिन्दुओं में विशेष और पवित्र स्थान देती हैं। बौद्धों के लिए कैलास ब्रह्मांड की नाभि यानी ब्रह्मांड का केंद्र (एक्सिस मुंडी) है और वो इसको मेरुपर्वत के नाम से जानते हैं। तिब्बती बौद्ध इसे कांगड़ी रिनपोचे/गंग रिनपोचे (अनमोल हिम पर्वत) कहते हैं। वज्रयान बौद्धों का मानना ​​है कि कैलाश पर्वत चक्रसंवर (जिन्हे डेमचोक भी कहा जाता है) का घर है, जो उनके धार्मिक विचार यानी स्वयं सर्वोच्च आनंद का प्रतीक हैं। बॉन ग्रंथों में इसके कई नाम हैं जैसे जल का फूल, समुद्री जल का पर्वत, नौ ढेर वाला स्वास्तिक पर्वत। बॉन के अनुयायियों के लिए कैलास उनकी आकाश की देवी सिपाईमेन का निवास है। बॉन तिब्बत के मूलनिवासियों का एक संप्रदाय है और यहां के स्थानीय लोग इसे नदी चोटी या जल चोटी कहते हैं। वहीं जैन धर्म की मान्यता है कि उनके पहले तीर्थंकर ऋषभदेव को कैलास स्थित अष्टापद नामक पर्वत पर निर्वाण यानी मोक्ष प्राप्त हुआ था। 24वें और आखिरी तीर्थंकर वर्धमान महावीर को उनके जन्म के तुरंत बाद भगवान इंद्र स्वयं उनको मेरु पर्वत लेकर गए थे और यहीं उन्हें विशेष शक्तियां प्राप्त हुई।

कैलास पर होता सूर्योदय

Photo of Burang County by Roaming Mayank

रात में मणि की तरह चमकता कैलास

Photo of Burang County by Roaming Mayank

कैलाश या कैलास??

इस पर्वत के बारे में एक बड़ा सवाल है कि आखिर किसी भी प्राचीन पुस्तक या लेख में क्यों नहीं मिलता 'कैलाश' का वर्णन ? दरअसल "कैलाश" (KAILASH) का किसी भी संस्कृत या हिंदी शब्दकोश में एक शब्द के रूप में उल्लेख नहीं किया गया है ! सभी प्राचीन ग्रंथों जैसे वेद, रामायण, महाभारत और शिव पुराण आदि में कैलास शब्द का उल्लेख है ना कि कैलाश का। इनके बाद भी इस शब्द का उल्लेख कालिदास से लेकर तुलसीदास तक कई कवियों, आधुनिक यात्रियों ने किया है। बाद के कुछ लेखकों और यात्रियों ने कैलास (Kailas) की जगह कैलाश (KAILASH) लिखना शुरू कर दिया था। यानी कैलास ही भगवान शिव के निवास का सही नाम है ना कि कैलाश !

प्राचीन लेखों और पुस्तकों में कैलास का उल्लेख-

अब कैलास का विवरण किन लेखों में मिलता है, ये जानने के लिए आइए चलते हैं आगे ...संस्कृत में कैलास शब्द केलास (यानी क्रिस्टल) से बना है जिसका उल्लेख एक ऐसे स्थान के रूप में है जो "केलायोर्जलभूम्यो आसनम् स्थितः यस्य कैलासः, स्फटिकम् तस्यायम कैलास:।" यानी जल और पृथ्वी में स्थित, आकार में क्रिस्टल जैसा। "केलिनाम् समूह: केलम तेन आस्यत इति कैलास।" यानी एक ऐसा स्थान जहां शिव और पार्वती खेलते हैं, वही है कैलास।

संभवतः काव्य अभिव्यक्ति की उच्चतम सीमाओं के प्रयोग के साथ सबसे अच्छा कैलास का वर्णन कालिदास जी के अप्रतिम काव्य मेघदूत में मिलता है-

"कर्तुं यच्‍च प्रभ‍वति महीमुच्छिलीन्‍ध्रामवन्‍ध्‍यां

तच्‍छत्‍वा ते श्रवणसुभगं गर्जितं मानसोत्‍का:।

आ कैलासाद्विसकिसलयच्‍छेदपाथेयवन्‍त:

सैपत्‍स्‍यन्‍ते नभसि भवती राजहंसा: सहाया:।।"

"जिसके प्रभाव से पृथ्‍वी खुम्‍भी की टोपियों का फुटाव लेती और हरी होती है, तुम्‍हारे उस सुहावने गर्जन को जब कमलवनों में राजहंस सुनेंगे, तब मानसरोवर जाने की उत्‍कंठा से अपनी चोंच में मृणाल के अग्रखंड का पथ-भोजन लेकर वे कैलास

तक के लिए आकाश में तुम्‍हारे साथी बन जाएँगे।" मेघदूत -11

रामायण के उत्तरकांड में उल्लेखित है कि रावण ने भगवान शिव से प्रतिशोध लेने के लिए के कैलास पर्वत को उखाड़ने का प्रयास किया था। किष्किन्धाकाण्ड में सुग्रीव जब वानर सेना को सीता की खोज के लिए उत्तर दिशा की ओर भेजते हैं तब उस दिशा में कैलास की ओर खोजने जाने का उल्लेख किया है- "तत्तु शीघ्रमतिक्रम्य कान्तारं रोमहूर्गणम - कैलासं पांडुरं प्राप्य दृष्टा सूर्य भविष्यथ"। मतलब "उस भयानक वन को पार करने के पश्चात् श्वेत कैलास पर्वत को देखकर तुम प्रसन्न हो जाओगे।" आगे के श्लोकों में कैलास में कुबेर के सोने से बने घर, विशाल मानसरोवर झील तथा यक्षराज कुबेर तथा यक्षों का वर्णन मिलता है। वहीं महाभारत में वनपर्व के अनुसार पांडवों ने द्रौपदी के साथ कैलास पर्वत के शिखर तक मोक्ष की प्राप्ति के लिए चढ़ाई की थी। इसे स्वर्ग का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। "अस्तयातिक्रम्यं शिखरं कैलासम्य युधिष्ठिर, गति परमसिद्धानां देवर्षीणीं प्रकाशते।"

North Face of Kailas

Photo of Lipulekh Pass by Roaming Mayank

चंद्रमा और बर्फ से ढका मणि की तरह चमकता कैलास

Photo of Lipulekh Pass by Roaming Mayank

West face of Mount Kailas

Photo of Lipulekh Pass by Roaming Mayank

वनपर्व में ही विशाला या बद्रीनाथ को कैलास के निकट बताया गया है- "कैलास: पर्वतो राजन् षड्योजनसमुच्छित: यत्र देवा समायान्ति विशाला यत्र भारत।" भीष्मपर्व में कैलास का दूसरा नाम 'हेमकूट' है और वहां यक्षों का निवास माना गया है- "हेमकूटस्तु सुमहान कैलासो नाम पर्वत: यत्र वैश्रवणो राजन् गुह्यकै: सह मोदते।" विष्णुपुराण में वर्णन है कि इसके चार मुख क्रिस्टल, रूबी, स्वर्ण और नीलम से बने हैं। यह दुनिया का केंद्रस्तंभ (ऐक्सिस मुंडी) है और छह पर्वत श्रृंखलाओं के केंद्र में स्थित है जो कमल की आकृति बनाती हैं। पौराणिक क्षीरसागर यानी इसी मानसरोवर में शेषनाग शैय्‍या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित हैं और पूरे संसार को संचालित कर रहे हैं। वहीं बुद्धचरित में बौद्धस्तूपों की भव्यता की तुलना कैलास के बर्फ से ढके शिखरों से की गई है।

रात्रि में कैलास का तारों से होता मिलन

Photo of Badrinath by Roaming Mayank

श्वेत आभा लिए कैलास

Photo of Badrinath by Roaming Mayank

पर्वतारोहण और पर्यटन -

कैलास पर्वत के शिखर पर पहुंचने के पर्वतारोहियों के प्रयास और पर्यटन के दीवानों की इस क्षेत्र को जानने और घूमने की इच्छा शायद इन्हीं रचनाओं से उत्पन्न हुए मनुष्य के कौतूहल, साहस और जिज्ञासा की प्यास को शांत करने का कारण बनें। आइए जानते है कैलास शिखर को जीतने के प्रयासों के बारे में। इस पहाड़ को पूजने वाले सभी धर्मों के अनुसार, इसकी चढ़ाई पर पैर रखना बहुत बड़ा पाप माना जाता है। लोकप्रिय धारणा है कि कैलास पर्वत के शिखर तक ले जाने वाला रास्ता ही स्वर्ग की सीढ़ी है।

तिब्बत के सबसे ऊँचे पहाड़ों में से एक ना होने पर भी, अभीतक आधुनिक युग के मानव द्वारा शिखर की चढ़ाई नहीं की जा सकी है। सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट 8848 मीटर) से लगभग सवा दो किलोमीटर कम ऊंचाई वाला कैलास कहीं अधिक जटिल बनावट, कठिन पारिस्थितिक माहौल और अपने अद्वितीय धार्मिक महत्व के कारण शायद अभी और लंबे वक्त तक अजेय शिखर बना रहेगा।

काली चट्टानों से बना पिरामिडनुमा कैलास पर्वत अपने आस पास के शिखरों से अधिक ऊंचा है। लगभग एक सदी पहले पश्चिमी खोजकर्ताओं ने इस पर ध्यान दिया और तबसे कैलास शिखर की चढ़ाई पर्वतारोहण अभियानों का वैश्विक विषय बना और इसे संभव माना जाता था। साल 1926 में कैलास पर्वत पर चढ़ने में पहली दिलचस्पी तब बढ़ी जब प्रसिद्ध पर्वतारोही ह्यूग रुतलेज ने पहाड़ के उत्तर मुख का अध्ययन शुरू किया। उस समय पर उन्होंने शिखर की पठार से ऊंचाई करीबन 6000 फीट होने का अनुमान लगाया था। उनको ब्रिटिश माउंटेनियरिंग एसोसिएशन द्वारा सलाह दी गई थी कि कैलास पर चढ़ना "पूरी तरह से असंभव" है। उत्तर मुख के अपने किए अध्ययन के दौरान उनका मानना ​​था कि उन्होंने शिखर तक पहुंचने का रास्ता खोज लिया है, लेकिन वहां पर आश्चर्यजनक रूप से समय तेजी से बीतने के कारण हुई समय की कमी और पड़ रही घनघोर बर्फ और खतरनाक मौसम के कारण उस रास्ते से कैलास पर चढ़ने की किसी भी आशा को खत्म कर दिया। वहीं दक्षिण मुख की ओर कर्नल आर सी विल्सन ने भी चढ़ाई पर विचार किया था। उनके शेरपा साथी ने सलाह दी थी कि इसकी चढ़ाई संभव है। पर वह भी चढ़ने में लग रहे अत्यधिक समय और कठोर तिब्बती सर्दियों के करीब आने के कारण उन्होंने ये विचार त्याग दिया और फिर कभी प्रयास नहीं किया। साल 1936 में एक ऑस्ट्रेलियाई लेखक और पर्वतारोही हर्बर्ट टीची कैलास के निकट गुरलामन्धाता पर्वत के आसपास के क्षेत्र की खोज कर रहे थे। जब उन्होंने कैलास देखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि आखिर इसपर कोई कैसे चढ़ सकता है। जब उन्होंने एक स्थानीय लामा से पूछा कि क्या पहाड़ पर चढ़ाई की जा सकती है, तो लामा ने उनसे कहा कि

"केवल पाप से मुक्त व्यक्ति ही कैलास पर चढ़ सकता है और वास्तव में तो ऐसा करने के लिए बर्फ की इन ऊंची और खड़ी दीवारों को पार ही नहीं करना पड़ेगा बल्कि, एक पक्षी का रूप लेकर शिखर तक उड़ कर पहुंच जाएगा।"

एकबार एक स्पेनिश टीम, कैलास पर चढ़ने के लिए तैयार हुई, पर बढ़ती अन्तर्राष्ट्रीय चिंता के दबाव में चीनी सरकार के हस्तक्षेप के बाद ऐसे किसी अभियान का खंडन किया गया और बयान जारी किया गया कि "ये शिखर हमेशा पवित्र शिखर ही रहेगा जो एक ऐसी दुर्गम चोटी है जहां चार धर्मों के देवताओं का निवास माना जाता है।" 1980 के दशक में आखिर फिर एक अभियान पर विचार किया गया और इसबार रेनहोल्ड मेसनर जो एक इतालवी पर्वतारोही, साहसी खोजकर्ता और लेखक हैं, को अनुमति दी गई। रेनहोल्ड मेसनर वो पर्वतारोही हैं जिन्होंने सबसे पहले माउंट एवरेस्ट पर अकेले सफल चढ़ाई की थी। मगर मेसनर ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि "कैलास पर्वत को पवित्र माना जाता है, यदि हम इस पर्वत पर विजय प्राप्त करते हैं, तो हम वो जीतेंगे जो लोगों की आत्मा में बसता है यानी विश्वास। मेरा सुझाव है कि लोगों को कुछ और अधिक कठिन चढ़ाई करनी चाहिए। कैलास ना तो इतना अधिक ऊंचा है और न ही इतना कठिन।” स्पष्ट है कि उन्होंने धार्मिक आस्थाओं और भौगोलिक परिस्थितियों के अध्ययन के बाद इसके शिखर के चढ़ाई के ऑफर को असंभव या अत्यधिक रहस्यमई मानते हुए मना कर दिया था।

वैसे तिब्बत बौद्धों के बहुत प्रसिद्ध सिद्ध योगी और आध्यात्मिक कवि मिलारेपा ने एक बार अपने प्रतिद्वंदी सिद्ध से एक युद्ध के दौरान कैलास के शिखर तक चढ़ाई की थी, ऐसा बौद्ध धर्म का मानना है।

ध्यान दीजियेगा कि, इंद्र का निवास अमरावती है, यहां देव रहते हैं, अप्सराएं नृत्य करती हैं, गंधर्व गाते हैं और सुरा पी जाती है। इच्छापूर्ति वृक्ष कल्पतरु, इच्छापूर्ति मणि चिंतामणि और इच्छापूर्ति गाय कामधेनु भी यहीं हैं। चूंकि इंद्र ने अमृत पिया है, इसलिए यहां मृत्यु का डर नहीं है। यहां भोग अर्थात प्रसन्नता सर्वव्यापी है और सभी इच्छाएं बिना किसी प्रयास के पूरी हो जाती हैं। वहीं शिव का निवास स्थल कैलास एक बर्फ़ीला और पथरीला पर्वत है जहां घास तक नहीं उगती। फिर भी शिव का नंदी बैल खुश है। पर्वत पर शक्ति का बाघ भी रहता है, लेकिन नंदी को उससे डर नहीं। शिव के गले का सांप गणेश के मूषक का पीछा नहीं करता और कार्तिकेय का मोर भी सांप का शिकार नहीं करता। कैलास पर मृत्यु का डर नहीं है और इसलिए वहां कोई भूख, शिकारी या शिकार नहीं है। यहां योग सर्वव्यापी है, जहां लक्ष्मी कोई मायने नहीं रखती। शायद इसीलिए स्वर्ग का रास्ता कैलास है इसीलिए कहा गया है! इन सीधे शब्दों से अमृत रूपी गूढ़ अर्थ निकलता है कि इच्छा नहीं बल्कि इच्छा पर नियंत्रण कर पाना ही शायद असली स्वर्ग है बाकी सब बस स्वर्ग तक ले जाने का भ्रम पैदा करने वाले लंबे और भटकाने वाले रास्ते हैं।

Darchen basecamp Kailas

Photo of Bagaxiang, Burang County by Roaming Mayank

कैलास मानसरोवर यात्रा और परिक्रमा -

अब आइये आपको ले चलते हैं दुनिया की सबसे भिन्न और आपके जीवन जीवनपर्यंत शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक प्रभाव रखने वाली कैलास मानसरोवर यात्रा और कैलास परिक्रमा की ओर। ये खुद अपने आप मे दुनिया में मिलने वाले किसी भी ट्रेक की प्राकृतिक सुंदरता और कुछ बिल्कुल ही भिन्न अनुभव देने वाली है। यकीन मानिये ऐसे नजारे ऊपर वाले ने कहीं भी मतलब कहीं भी और नहीं बनाए, इसीलिए तो ये नहीं देखा तो क्या देखा !

यह यात्रा चार स्थानों से शुरू होती है। पहला सिक्किम के नाथू ला दर्रे से, दूसरा नेपाल के काठमांडू से होते हुए ल्हासा‌ के रास्ते तीसरा भी नेपाल के ही नेपालगंज से हिल्सा होते हुए व चौथा सबसे लंबा रास्ता उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से कालापानी - लिपुलेख दर्रे (यहीं पर स्थित है ओम पर्वत जिसके शिखर पर पड़ने वाली बर्फ प्राकृतिक रूप से चोटी पर ओम का चिन्ह बनाती है ) के रास्ते शुरु होता है। चारों ही रास्तों में आपको चीन के सीमा में प्रवेश करना ही होता है।

सीमा पार आप पांच दिन यात्रा करके मानसरोवर पहुंचते हैं, जहां डारचेन बेस कैंप है। वहां से फिर आपको तीन दिन मानसरोवर की परिक्रमा करने में लगते हैं जो एशिया और वर्ल्ड के सबसे क्लासिक ट्रेक है, फिर वापसी में पांच दिन और लगते हैं। इस तरह कुलमिलाकर करीब दो हफ्ते में यह यात्रा पूरी होती है। भारत सरकार पिथौरागढ - कालापानी रूट से यह यात्रा आयोजित करती है और इसीलिए जब भी सीमा विवाद खड़ा होता है चीन कैलाश मानसरोवर यात्रा को इस क्षेत्र से रोक देता है। हाल ही में भारत और नेपाल के बीच जिस स्थान (लिपुलेख दर्रा, कालापानी क्षेत्र) को लेकर तनाव था, वो रास्ता कैलास मानसरोवर यात्रा जाने के लिए इस्तेमाल होता है। भारत के बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने अभी हाल ही में लिपुलेख दर्रे तक रोड बना दी है। जिससे तीर्थयात्रियों को पैदल चलने वाली दूरी अब काफ़ी कम हो जाएगी, अब वाहन पहले की अपेक्षा काफी अधिक दूरी तक जा सकेंगे। यहां आप आदिकैलास, ओम पर्वत के ट्रेक कर सकते हैं।

यकीन मानिये यहां दिखाई देने वाले नजारे आपको कहीं और दिखाई नहीं देंगे, जैसे कि प्राकृतिक रूप से बर्फ से पर्वत चोटी पर ओम की आकृति बन जाना !!

कैलास से जुड़े सभी धर्मों का मानना ​​है कि कैलास की पैदल परिक्रमा करना पवित्र कर्म है जिससे सौभाग्य प्राप्त होता है। इस परिक्रमा को हिंदुओं और बौद्धों द्वारा दक्षिणावर्त दिशा(क्लॉकवाईज) में पूरा किया जाता है, वहीं जैन और बाॅन संप्रदायों में ये परिक्रमा एक वामावर्त( एंटी क्लॉकवाईज) दिशा में पूरी की जाती है। कैलास मानसरोवर के पास डारचेन बेस कैंप के बाद यमद्वार है और यहीं से कैलास स्पर्शस्थान तथा कैलास की परिक्रमा शुरू होती है। यमद्वार से करीब 12 किमी की यात्रा प्रारंभ होती है। सुनसान रास्ता, दोनों तरफ पथरीले और बर्फ से ढंके पहाड़ और दोनों पहाड़ों के बीच बर्फ की नदी अपने अस्तित्व का अहसास कराती है। यह परिक्रमा कैलाश शिखर के चारों ओर के कमलाकार शिखरों के गोल चक्कर लगाते हुए होती है। कैलाश शिखर अस्पृश्य है, यात्रा मार्ग से लगभग ढाई किलोमीटर की सीधी चढ़ाई करके ही इसे स्पर्श किया जा सकता है। यह चढ़ाई पर्वतारोहण की विशिष्ट तैयारी के बिना संभव नहीं है। कैलास मानसरोवर यात्रा की पूरी जानकारी अलग से एक पोस्ट में जल्दी ही पोस्ट की जाएगी।

मानसरोवर और कैलास

Photo of कैलास मानसरोवर के जाने अनजाने किस्से, ये नहीं देखा तो क्या देखा ! by Roaming Mayank

मानसरोवर

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कल्पना से भी ऊंचे बर्फीले पहाड़, पूर्व में अश्वमुख, पश्चिम में हाथीमुख , उत्तर में सिंहमुख, दक्षिण में मोरमुख से उद्गम होती 4 नदियां- ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलज व करनाली इस स्थान को एक दैवीय और अलौकिक रूप प्रदान करती हैं। कैलास के चारों ओर की परिक्रमा कुल 52 कि.मी. लंबी है। ऐसी मान्यता है कि कैलाश की पूरी परिक्रमा एक ही दिन में की जानी चाहिए, लेकिन ये अपने आप में आसान काम नहीं है। अच्छी दूरी चलने की क्षमतावाले व्यक्ति यानी स्थानीय शेरपा को भी पूरी परिक्रमा करने में लगभग 15 घंटे लगते हैं। सामान्य व्यक्ति को यही परिक्रमा करने में तीन दिन लग जाते हैं। वहीं कुछ श्रद्धालु इसको एक दिन में पूरा भी करते हैं पर असमान इलाक़ों, ऊँचाई की बीमारी (माउंटेन सिकनेस) और कठोर वातावरण यात्रियों के लिए कठिन परिस्थितियों उत्पन्न करते हैं। शाष्टांग नमन करते हुए परिधि के पूरी परिक्रमा के लिए कम से कम चार सप्ताह के शारीरिक क्षमता की आवश्यकता होती है। ये पहाड़ तिब्बती हिमालय(ट्रांस हिमालय) के एक विशेष रूप से अलग निकले हुए और दुर्गम क्षेत्र में स्थित है। यात्रियों के लिए कुछ आधुनिक सुविधाएं, जैसे कि बेंच, आराम करने वाले स्थान और जलपान कियोस्क आदि मौजूद होते हैं।

मानसरोवर में नहाते यात्री

Photo of Kailash Mansarovar Road by Roaming Mayank

बौद्धभिक्षु मानसरोवर पर

Photo of Hilsa by Roaming Mayank

पैदल परिक्रमा मार्ग

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मणि पत्थर कैलास परिक्रमा मार्ग पर

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सुदूर मठ और कैलास

Photo of Hilsa by Roaming Mayank

कैलास के वातावरण में समय का तेजी से बीतना, बालों और नाखूनों का कैलास के आसपास रहने पर अधिक तेजी से बढ़ना और वहां पर कई रहस्यमयी आवाजें सुनाई देना; ये कई यात्रियों के ये दावे और अनुभव रहे हैं जिनका कोई भी वैज्ञानिक कारण आज भी अज्ञात है।

इस उम्मीद के साथ कि आपको कैलास मानसरोवर के बारे मे कुछ रोचक जानने, देखने और सुनने को मिला होगा, आप अपना फीडबैक कमेन्ट बॉक्स में देंगे। आप इसके बारे में और जानने के लिये इच्छुक हैं तो कमेंट करके बताएं🙏🏞