चित्तौड़गढ़ दुर्ग - त्याग और बलिदान का प्रतीक

Tripoto
14th Jan 2023
Photo of चित्तौड़गढ़ दुर्ग - त्याग और बलिदान का प्रतीक by Ranveer Singh
Day 1

चित्तौड़गढ़ के मिट्टी के कण कण में से शौर्य, बलिदान और वीरता की खुशबू आती है । मां मीरा और सांवलिया सेठ के भक्तों की भक्ति भी इसके  कण-कण में समाए हुई है ।
चित्तौड़गढ़ को शक्ति, भक्ति, त्याग और बलिदान की धरती के रूप में जाना जाता है ।
चित्तौड़गढ़ वही है जिसके आंचल में महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर और महान योद्धा खेले, सती मीराबाई जैसी महान भक्तो  ने भगवान की भक्ति की और राजपूत वीरांगनाओं ने अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए जौहर भी किए ।
इन स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे भारत वर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर रह गयी है। यहाँ का कण-कण हममें देशप्रेम की लहर पैदा करता है। यहाँ की हर एक इमारतें हमें एकता का संकेत देती हैं।

चित्तौड़ के एक तरफ चित्तौड़गढ़ दुर्ग है जो की शौर्य और वीरता का एक अनूठा उदाहरण है और दूसरी तरफ महामीरा बाई की भक्ति साथ ही सेठों के सेठ सांवरिया सेठ मंडफिया वाले की महिमा गाता उनका मंदिर स्थित है । इसी के साथ राजस्थान का हरिद्वार कहलाने वाला मातृकुंडिया भी चित्तौड़ में ही स्थित है ।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग ~
चित्तौड़गढ़ दुर्ग को सभी दुर्गों का सिरमौर कहा जाता है । इसी कारण यह दुर्ग एशिया का सबसे बड़ा दुर्ग माना जाता है ।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रवेश करने के लिए सात द्वारों से होकर गुजरना पड़ता है, जिनकी प्रत्येक कि अपने-अपने एक अलग कहानी है अपनी अलग गाथाएं है ।
1. पाडल पोल
2. भैरव पोल
3. हनुमान पोल
4. गणेश पोल
5. लक्ष्मण पोल
6. जोरला पोल
7. श्री राम पोल
यह सभी द्वारों पारंपरिक कलाकृतियों से सुसज्जित है ।

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1. विजय स्तंभ ~ यह विजयस्तंभ राजस्थान ही नहीं प्रत्युत्त भारत की स्थापत्य एवं तक्षण कला का भी एक अद्वितीय नमूना है। 
122 फीट ऊंचा, 9 मंजिला विजय स्तंभ भारतीय स्थापत्य कला की बारीक एवं सुन्दर कारीगरी का नायाब नमूना है ।
इसे मूर्तियों का अजायबघर भी कहा जाता है और यह भगवान विष्णु को समर्पित है । इसका निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा मालवा विजय के उपलक्ष्य में करवाया गया था ।

विजय स्तंभ

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2. कीर्ति स्तंभ ~ कीर्ति स्तंभ भगवान आदित्यनाथ जी को समर्पित है  | स्तम्भ की चारो दिशाओं में आदित्यनाथ जी की चार दिगंबर खड़ी प्रतिमाये लगाईं गई है । कीर्ति स्तंभ जैन दिगंबर संप्रदाय की जटिल नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है ।
मूर्तियों में तत्कालीन सामाजिक जीवन  का शायद ही कोई विषय अछुता रहा हो ।

~ कीर्ति स्तंभ ~

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~ कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति ~

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~ जैन दिगंबर संप्रदाय की जटिल और अविश्वसनीय नक्काशी ~

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3. समिध्देश्वर (समाधीश्वर) महादेव का मंदिर ~

इसका निर्माण मालवा के प्रसिद्ध राजा भोज ने करवाया था। इसे त्रिभुवन नारायण का शिवालय और भोज का मंदिर भी कहा जाता है ।
मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग है तथा पीछे की दीवार में शिव की विशाल आकार की त्रिमूर्ति बनी है। त्रिमूर्ति की भव्यता दर्शनीय है ।

~ समिध्देश्वर महादेव मंदिर ~

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4. रानी पद्मिनी का महल ~ 

रावल रतन सिंह और रानी पद्मिनी के प्रेम की निशानी का शाश्वत प्रमाण रानी पद्मिनी का यह महल है ।
यह महल तालाब के बीचों बीच बना हुआ है जिसमे रानी पद्मिनी गर्मी के दिनो मे अपनी दासियों के साथ रहा करती थी ।
यह वही स्थान है जहाँ से अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी के प्रतिबिम्ब की एक झलक देखी थी। रानी के शाश्वत सौंदर्य से सुलतान अभिभूत हो गया और उसकी रानी को पाने की इच्छा के कारण अंततः युद्ध हुआ।
यह महल आकार में जितना छोटा हैं, दिखने में उतना ही अधिक सुन्दर भी हैं। इस महल की वास्तुकला अदभुत है और यहाँ का सचित्र वातावरण यहाँ का आकर्षण बढाता है। 

~ रानी पद्मिनी और रावल रतन सिंह की प्रेम कहानी का 700 साल पुराना शाश्वत प्रमाण आज भी सीना तान कर खड़ा है ~

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5. मीरा बाई मंदिर ~

कुंभ श्याम के मंदिर के प्रांगण में ही एक छोटा मंदिर है, जिसे कृष्ण दीवानी  मीराँबाई का मंदिर कहते हैं।
भक्ति और प्रेम के अद्भुत मेल की मिसाल भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त तथा निश्छल भक्ति रूपी गगन में ध्रुव तारे की भांति अडिग एक दिव्य नाम है चिरवंदनीय ‘मीराबाई’ जी का, जो एक आध्यात्मिक कवयित्री होने के साथ-साथ अध्यात्म पथ का अनुसरण करने वाले पथिकों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने अपने चरित्र से सार्थक किया कि प्रेम विहीन भक्ति सदैव अधूरी है।
मान्यता है कि मीरा पूर्व-जन्म में वृंदावन की एक गोपी थीं और उन दिनों वह राधा की सहेली थीं। वे मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। गोप से विवाह होने के बाद भी उनका लगाव श्रीकृष्ण के प्रति कम न हुआ और कृष्ण से मिलने की तड़प में ही उन्होंने प्राण त्याग दिए। बाद में उसी गोपी ने मीरा के रूप में जन्म लिया ।

~ कृष्ण भक्त मीरा बाई मंदिर ~

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7. फतह प्रकाश महल ~

इसे वर्तमान में संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है जो की सम्पूर्ण चित्तौड़गढ़ दुर्ग के नक्शे, कला और प्राचीन हथियारों के साथ साथ राज महाराजाओं के अस्त्र शस्त्र, उनकी पोशाकें आदि आज भी अपने अंदर संजोए हुए रखता है ।

~ Meausem ~

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~ म्यूजियम में स्थित प्राचीन हथियार ~

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8. मां तुलजा भवानी ~
9. बाण माता मंदिर ~ मेवाड़ वासियों की कुलदेवी
10. कालिका माता मंदिर ~

~ मां तुलजा भवानी मंदिर ~

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~ मां कालिका मंदिर ~

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~ मां बाण माता ~

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11. चित्तौड़गढ़ व्यू प्वाइंट ~ यहां से सम्पूर्ण चित्तौड़ शहर का सुंदर दृश्य दिखाई पड़ता है ।

Photo of चित्तौड़गढ़ दुर्ग - त्याग और बलिदान का प्रतीक by Ranveer Singh
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12. भामाशाह की हवेली ~
भामाशाह की हवेली अब भग्नावस्था में मौजूद यह इमारत, एक समय मेवाड़ की आनबान के रक्षक महाराणा प्रताप को मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दान करने वाले प्रसिद्ध दानवीर दीवार भामाशाह की याद दिलाने वाली है। कहा जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप का राजकोष खाली हो गया था व मुगलों से युद्ध के लिए बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता थी। ऐसे कठिन समय में प्रधानमंत्री भामाशाह ने अपना पीढियों से संचित धन महाराणा को भेंट कर दिया।

इनके अतिरिक्त चित्तौड़गढ़ दुर्ग के अंदर बहुत सारी इमारतें, महल, छतरीयां, मंदिर इत्यादि बने हुए है जिन्हे स्वयं आखों से देख ही उनके बारे में समझा जा सकता है । चितौड़गढ़ दुर्ग स्वयं 13km की परिधि में फैला हुआ है ।

हवाई जहाज से चित्तौड़गढ़ ~
चित्तौड़गढ़ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर में महाराणा प्रताप एयरपोर्ट है | यहां से चित्तौड़गढ़ की दूरी लगभग 90 किलोमीटर है |आप यहां से बस या टैक्सी बुक कर के जा सकते हैं चित्तौड़गढ़ के लिए |

सड़क मार्ग से चित्तौड़गढ़ ~
चित्तौड़गढ़ राजस्थान के प्रमुख शहर जैसे जोधपुर जयपुर उदयपुर आदि  तारों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है सड़क मार्ग से चित्तौड़गढ़ की यात्रा करना एक अच्छा विकल्प है पर्यटकों के लिए |

ट्रेन से चित्तौड़गढ़ ~
चित्तौड़गढ़ जंक्शन भारत के अन्य प्रमुख शहरों को जोड़ता है ।

@mr_ranveer_banna