
हैलो दोस्तो, मैं प्रतीक आज फिर आ चुका हूँ अपनी एक बेहतरीन रोड ट्रिप के विवरण के साथ जिसको मैं मात्र 05 से 06 दिनों में पूर्ण किया । तो दोस्तों, इस यात्रा के बारे में बताने से पहले मैं यह आपको बता दूं कि यह मेरी पहली हिमॉलय रेंज की पहाड़ी यात्रा रही । बहुत ही शानदार, बिना किसी समस्या के, एकदम मन माफिक, परिवार के साथ जिसमें मेरी प्यारी सी छोटी बेटी जो ढाई वर्ष की हो चुकी है भी साथ में रही । इस यात्रा में मैं 14000+ फीट की ऊचाई तक सफर भी किया । तो चलिये आपके साथ शुरु करते हैं इस यात्रा के बारे में जिसमें मैं बनारस से सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, गंगटोक(सिक्किम), नाथुला दर्रा(चाईना बार्डर), गंगटोक, सिलीगुड़ी, वाराणसी तक का सफर 06 रात और 06 दिन में पूर्ण किया । इस यात्रा में हम लोग दो कार से सफर तय कियें, एक गाड़ी मेरी Hyundai Venue व दूसरी मेरे रिश्तेदार की Kia Carens. मेरे साथ मेरी पत्नी, बेटी, मेरी पत्नी के दीदी-जीजा जी व दो बच्चे कृष व काव्य जिनकी उम्र लगभग क्रमशः 17 वर्ष व 12 वर्ष साथ में रहें । मैं इन बच्चों का नाम आपको इस लिये भी बताना चाहता हूँ कि इस यात्रा में दो रात ऐसी रही जब पूरी रात मुझे ड्राईव करना पड़ा और इन दोनो रात में इन बच्चों ने मेरा पूरा साथ दिया । यह भी कह सकता हूँ की प्लानिंग के हिसाब से यह यात्रा पूर्ण करने में दोनों बच्चों की बहुत बड़ी भूमिका रही । मैं अपने इस लेख के माध्यम से कृष और काव्य को फिर से धन्यवाद देना चाहूंगा । दूसरी कार में मेरी पत्नी की दूसरी बड़ी बहन, उनके पति व दो बच्चे झितिज व विदित तथा उनके दोस्त का परिवार भी साथ में था, इस कार को चलाने के लिये एक अच्छे चालक अनिल भी साथ में थे । तो अब मैं अपने इस यात्रा के बारे में दिनवार आपको वृत्तान्त से बताने चल रहा हूं । आशा करता हूँ कि आप इस लेख को पूरा पढ़ेंगे व यात्रा का आनन्द लेंगे ।

प्रथम रात- गर्मी का मौसम होने के कारण हम लोग प्लानिंग के हिसाब से शाम में लगभग 06 बजे वाराणसी से दार्जिलिंग की यात्रा प्रारम्भ किये, रास्ते में नींद आने पर होटल लेकर रुकने का भी विचार सभी के मन में था । वाराणसी से दार्जिलिंग हेतु आपको मोहनिया-कोचस-छपरा-मुजफ्फरपुर-दरभंगा-अररिया-सिलीगुड़ी होते हुये दार्जिलिंग जाना सबसे आसान है । सिलीगुड़ी के बाद लगभग 80 किमी की यात्रा पहाड़ी रास्ते से करनी है । हम लोग रात करीब 12 बजे मुजफ्फरपुर क्रॉस कर चुके थे, और अब रास्ते में कुछ खाने के लिये और आराम करने के लिये होटल या ढाबा देखा जा रहा था, मुजफ्फरपुर से दरभंगा की दूरी ज्यादे नहीं होने व रात्रि में रास्ता खाली होने से कब दरभंगा भी बीत गया पता नहीं चला, रास्ते में अपोजिट लेन्थ पर एक अच्छा ढाबा, होटल दिल्ली दिखाई दिया, जहाँ पार्किंग स्पेस भी काफी था और लाईटिंग भी काफी अच्छी हुई थी । यहीं पर हमलोग रात्रि में भोजन किये और थोड़ी देर रुकने के बाद हम लोग आगे की यात्रा पर निकल पड़ें । चूंकि रात काफी हो चुकी थी और रात्रि में भोजन करने के बाद मेरा अनुभव यही रहा है कि एक बार नींद आपको जरुर हल्की सी आयेगी, यदि आपने उसे अपने पर हावी होने दिया तो आप विश्राम ही करना चाहिये, और यदि आपने नींद को हावी नहीं होने दिया तो आप कुछ सावधानियों के साथ यात्रा जारी रख सकते हैं, जैसे कि नींद आने पर गाड़ी रोककर अच्छे से मुंह धुल लेना यदि चाय मिल जाये तो पी लेना, साथ में आगे के सीट पर बैठे व्यक्ति से बात करते रहना और उसे गाड़ी चलाते चलाते अपने आपको स्वयं से देखते रहना की थकावट हावी ना हो । वैसे मेरा यही सुझाव है कि नींद आने पर गाड़ी तो बिल्कुल भी नहीं चलानी चाहिये फिर भी मेरे साथ मेरे दो नन्हे दोस्त भी तो थे जो मुझसे मेरे इन्ट्रेस्ट के विषयों पर पूरी रात चर्चा किये और मैं गाड़ी चलाता गया । मुझे तो दोस्तो बिल्कुल भी दिक्कत नहीं हुई, रास्ते में अररिया के पास लगभग 03 बजे हम लोगो नें चाय पिया और आगे निकल चुका था । रास्ते में दरभंगा से अररिया के बीच में बारिश भी चमक गरज के साथ खुब हुई । हम लोग 45 सेल्सियस से अब 15 सेल्सियय की तरफ बढ़ रहे थे । मौसम बारिश हो जाने से अच्छा हो चुका था । सुबह के करीब 05 बजे मैं बिहार- पश्चिम बंगाल बार्डर पर रुका और सभी के साथ एक चाय लेकर अब दार्जिलिंग की प्रसिद्ध चाय पीने के इरादे से निकल चला । दोस्तों एक बात तो बताना भुल ही गया, मुझे दार्जिलिंग के मोमोज भी काफी पसंद है, मेरे दोस्त ने एक बारी काफी कोशिश करके मुझे दार्जिलिंग मोमोज टेस्ट कराया था, उसे दो दिन तक काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी ।( होता यह था कि भाभी मेरे लिये मोमोज भेजती थी और आफिस में मुझसे पहले ही दोस्त सफाचट कर जाते थे) । लगभग 06.30 बजे मैं खुबसुरत सिलीगुड़ी शहर को क्रास करते हुये दार्जिलिंग के रास्ते पर मुड़ चुका था । मेरे अन्दर एक गजब का उत्साह और उमंग ही था की मैं बनारस से लगातार ड्राईव करके दार्जिलिंग के मोमोज के साथ में चाय का आनन्द सुबह सुबह लेने के लिये जल्दी से जल्दी पहुंचना चाह रहा था । लगभग 07 से 09.30 बजे तक मैं पहाड़ों के रास्ते पर ड्राईव करके दार्जिलिंग पहुंच चुका था । रास्ते में कुरेयांग के पास कुछ देर सेल्फी प्वाईन्ट पर रुककर कुछ अच्छे मेमोरी को कैप्चर किया गया और गाड़ी के टायर व इंजन को भी थोड़ा आराम दिया गया । दोस्तो एक बात और जो मैं आपको बताना चाहूंगा की पहाड़ पर गाड़ी चलाने व प्लेन में गाड़ी चलाने में काफी अन्तर होता है, पहाड़ पर गाड़ी चलाने में यदि सम्भव हो और रुकने का स्थान मिले तो गाड़ी के इंजन को कम से कम 02 घन्टे के अन्दर कुछ देर के लिये ही ब्रेक दे देना चाहिये । गाड़ी की परफार्मेन्स अच्छी रहती है और गाड़ी में कोई समस्या आने पर आपको चेक इंजन लाईट व अन्य आटोमैटिक सिम्बल से पता भी चल सकता है । तो हम लोग 09.30 बजे के करीब दार्जिलिंग पहुंच चुके थे और दार्जिलिंग के प्रमुख स्थानों में से एक बतासिया लुप के पास ही होटल लेकर हम लोग विश्राम किये । दार्जिलिंग का मौसम तो मानों दिल से उतरने का नाम ही ना ले । एकदम से पूरा बादल फिर कभी आसमान साफ, कभी बारिश कभी धूप का ये खेल देखने में मजा आ रहा था । मैं तो काफी थका हुआ भी था लेकिन अपने को थका मानना भी नहीं था, फिर भी आराम का मौका तो अब मिल ही चुका था तो जल्दी से सुबह का भोजन करके आराम किया गया । गुरु मजा आ गया पहाड़ पर अपनी गाड़ी से आकर । टेन्शन गया भाड़ में, हम गये पहाड़ में ।

प्रथम दिन- आज मैं ऊपर, आसमा नीचे । ये गाना आज बिल्कुल सत्य लग रहा था मुझे, दिन में आऱाम करके जब मैं जगकर कमरे से बाहर आया तो बादल नीचे दिखाई दे रहे थे, समय का ध्यान रखते हुये सभी लोगो को जगाकर तैयार होकर हम लोग होटल से चलकर बतासिया लुप जो होटल के बिल्कुल सामने ही था, पहुंच गये, यहाँ इन्ट्री चार्ज प्रति व्यक्ति 50 रुपये है । इस जगह पर वार मेमोरियल भी स्थित है और यहां से टेलिस्कोप के द्वारा कंचनजंघा की चोटियां व खुबसुरत दार्जिलिंग शहर को दिखाया जाता है, जिसका चार्ज प्रति व्यक्ति 50 रुपये है । हम लोग यहां लगभग 02 घन्टे रहकर अपनी गाड़ी से दार्जिलिंग शहर की तरफ दार्जिलिंग के मॉल रोड जाने के लिये निकल चुके थे, चुंकि गर्मी का मौसम होने के कारण पहाड़ो पर काफी भीड़ हो जाता है और बच्चो की छुट्टी होने से हम लोग भी इसी मौसम में घुमने के लिये निकल पाते हैं, इसलिये पहाड़ों की भीड़ को भी तो देखते हुये चलना है । आलम यह था की 04 किमी की ड्राईव में 1.30 से 02 घन्टे लग रहे थे । एक बात और मुझे जो पहाड़ों के सम्बन्ध में अच्छी लगती है कि पहाड़ मनुष्य को गाड़ी चलाने में अनुशासन सिखाते हैं, यहाँ आप अपोजिट लेन्थ से ओवरटेक नहीं कर सकते नहीं तो आपके वजह से अन्य लोगो को भी काफी समस्यायें उत्पन्न होंगी । Mall Road के पास Family को Drop करके मैं गाड़ी पार्क करने आगे आ गया, जहाँ से वापस आने में ही मुझे 01 घन्टे लग गये । तो हो गयी मेरी घुमाई जाम में । फिर भी मैं तो पहले से इन सब चिजों के लिये तैयार था । वापस आकर देखा तो सभी द्वारा खुब शापिंग भी की गयी थी, हम लोग काफी देर मस्ती किये और रात ज्यादे होने का ही इन्तजार करने लगे की जाम नहीं मिलेगा । लगभग 11 बजे रात हम लोग डिनर करके वापस गाड़ी के पास आकर होटल के लिये निकल गये । तो मेरा दार्जिलिंग शहर का पहले दिन का अनुभव ये रहा की जितना इस शहर के बारे में सुना है उससे भी अच्छा आपको यहाँ आकर लगने वाला है । तो देर किस बात की और मेरे इस पोस्ट को पढ़ते पढ़ते हो जाईये आप भी तैयार और निकल जाईये पहाड़ों के शहर में ।

द्वितीय दिन- सुबह तो मेरी 06 बजे ही हो गयी, और निकल गया मैं मोमोज के साथ चाय पीने, साथ में ब्रेड पकौड़ा भी । अपने पूरे टेन्शन को मैं इन्ही पहाड़ों पर छोड़ कर जाना चाहता था । हम लोग होटल से निकलकर आज यहाँ घुमने के लिये जो भी लोकल साईटसीन है उसके बारे में जानकारी की गयी तो कुछ प्रमुख स्थान जैसे राक गार्डेन, चिड़ियाघर, मॉल रोड, रोपवे, टी गार्डेन, तेन्जिंग राक, टाईगर हिल आदि के बारे में जानकारी लगी । घुमने के लिये अपने गाड़ी के स्थान पर लोकल टैक्सी हायर करने का सुझाव वहां के लोगो द्वारा दिया गया । कारण पूछे जाने पर बताने लगे की बाहर के ड्राईवर पहाड़ो पर गाड़ी नहीं चला पाते हैं इसलिये ऐसा किया जाता है, कुछ प्वाईन्ट्स पर बाहर की गाड़िया नहीं Allow हैं । टैक्सी का किराया 5000 से 7000 प्रति गाड़ी एक दिन का । जो अपनी गाड़ी से इतनी दूर आने का हिम्मत कर सकता है वह क्यों नहीं जा सकता । मैं टैक्सी लेने के लिये बिल्कुल भी तैयार नहीं था और मुझे यहाँ की यह व्यवस्था अच्छी नहीं लगी । हम लोग होटल से नाश्ता करके निकल चुके थे और हम लोगो का पहला प्वाईन्ट राक गार्डेन था, जैसे ही हम लोग राक गार्डेन के लिये टर्न लेने के लिये रुके तो वहाँ लोकल पुलिस द्वारा गाड़ी को आगे जाने से यह कहकर रोक दिया गया की अभी सुबह ही यूपी की गाड़ी पलट गई है इधर ही तो बाहर की गाड़ी नहीं ले जा सकते । मैं मायूस नहीं हुआ क्योंकि यह शहर बहुत ही खुबसुरत शान्त व अच्छा लग रहा था, यहाँ का मौसम बहुत सुहाना था । आगे- आगे मेरी गाड़ी ही थी तो पिछे की गाड़ी भी मेरे पीछे चल दी । अब मैं समझ गया था कि अपनी गाड़ी से यहाँ साईट सीन करने में कठिनाई आने वाली है । मैं चिड़ियाघर के लिये गुगल बाबा से पूछकर और लोकल लोगो से जानकारी करते हुये आगे बढ़ने लगा । चिड़ियाघर के पास में ही स्थित पार्किंग में अपनी दोनो गाड़ी हम लोग खड़ी करके चिड़ियाघर पहुंच गये । यहां का इन्ट्री चार्ज 120 रुपये प्रति व्यक्ति है । यहाँ लगभग 02 घन्टे रहकर हम लोग रोपवे स्टेशन के लिये पैदल ही चल दिये जिसकी चिड़ियाघर से दूरी लगभग 1 किमी ही है । रोपवे पहुंचने पर जानकारी लगी की सारे टिकट सुबह ही फुल हो चुके हैं और इस समय यदि आप 07 से 08 तक सुबह में आ जायेंगे तो ही टिकट मिल पाता है क्योंकि यहाँ प्रतिदिन मात्र 300 टिकट ही बेचें जाते हैं । हम लोग वही पास में स्थित रेस्टोरेन्ट में लन्च किये और निकल पड़े पैदल ही टेन्जिंग रॉक के लिये, जिसकी दूरी वहाँ से लगभग 02 किमी है । मैं अन्य पास के स्थानों पर गाड़ी नहीं ले जाकर पैदल ही जाना इसलिये भी चाह रहा था क्योंकि यहाँ जाम की इस समय बहुत ज्यादे समस्या थी । पैदल रुक रुक कर सब लोग आराम से चल ले रहे थे और शहर के बारे में अच्छे से पता भी चल रहा था । टेन्जिंग रॉक से हम लोगो को टी गार्डेन जाना था जिसकी दूरी भी लगभग 1.5 किमी थी मैं परिवार के अन्य सदस्यों को आगे जाने को कहकर गाड़ी वापस लाने के लिये निकल पड़ा । मुझे पैदल चलना इस शहर में बिल्कुल भी खराब नहीं लगा । यहाँ के मौसम में तो बस रह ही जाऊं मै । लगभग 01 घन्टे बाद मैं गाड़ी लेकर वापस आया और टी गार्डेन में वहाँ की लोकल पोशाक में फोटोग्राफी सभी लोगो द्वारा कराई गयी । हम लोग शाम में समय से फ्री होकर होटल पहुचंने के लिये निकल पड़े क्योंकि होटल से इस जगह की दूरी तो मात्र 08 किमी है लेकिन मुझे पता था की लगभग 02 से 03 घन्टे लगेंगे और ऐसा ही हुआ भी । हम लोग रात्रि 08 बजे के करीब होटल पहुंचे जहाँ रात्रि भोजन समय से करके विश्राम किया गया ।
आज का मेरा अनुभव ओवरआल अच्छा ही रहा, कुछ चिजे जैसे जाम, रॉक गार्डेन नहीं पहुंच पाना, रोपवे को छोड़कर सब अच्छा रहा । हम लोग दार्जिलिंग के लगभग प्रमुख स्थानों पर जा चुके थे, और आगे सिक्किम गंगटोक, नाथुला दर्रा व अन्य चिजों की प्लानिंग करके रात में आराम किये की सुबह जल्दी से जल्दी गंगटोक के लिये निकल जाना है जिसकी दार्जिलिंग से दूरी लगभग 100 किमी है ।

तृतीय दिन- चन्दा मामा सो गये, सूरज चाचू जागे, और मैं निकल पड़ा मोमोज के साथ चाय पीने । सुबह सुबह कितनी भी जल्दी कर ली जाये लेकिन ग्रुप बड़ा होने पर थोड़ा समय तो लगता ही है । हम लोग लगभग 09 बजे होटल से गंगटोक के रास्ते पर निकल पड़े । इस बार मेरी गाडी में बच्चा गैंग से ‘विदित मिश्रा काशी वाले’ और काव्य भी मुझे ज्वाईन कर चुके थे । मेरी गाड़ी के सनरुफ का आज इन दोनो लोगो ने भरपुर आनन्द लिया । पहाड़ पर 100 किमी की दूरी मतलब कम से कम 04 से 05 घन्टे ड्राईविंग टाईम । मतलब रास्ते में रुकना, 01-02 साईट सीन देखना, लन्च करना सब मिलाकर आज भी शाम होने वाला था । एक और बात जो मैं आपसे बताना चाहूंगा कि दार्जिलिंग से सिक्किम जाने को जो मुख्य मार्ग है तीस्ता नगर तक लगभग खड़ी ढलान कई जगहों पर है तो आपको गाड़ी 01 या 02 गियर में ही नीचे उतारना है और गाड़ी को हल्का आरामा भी देते रहना है क्योकिं ब्रेक पर लगातार प्रेशर पड़ने से कभी कभी ब्रेक गर्म होकर काम नहीं करते । ऐसी दशा में बड़ी घटना भी घट सकती है । मुझे तो सारे नियम कानून उस समय याद आ रहे थे । मैं बहुत ही सावधानी से रास्तों पर अपने लेन्थ से गाड़ी चलाते हुये आगे बढ़ रहा था । लगभग 1.30 घन्टे की ड्राईविंग के बाद हम लोग लमहटा पहुंच चुके थे । यहां देवदार के लम्बे लम्बे वृक्ष के बीच बने इको पार्क अपने आप गाड़ी को रोकने के लिये कह रहे हों । मैं सभी लोगो को ड्राप करके गाड़ी पार्किंग में खड़ा कर वापस आया । इस स्थान का टिकट 20 रुपये प्रति व्यक्ति है । यह स्थान भी अपने आप में बहुत ही खुबसुरत है, बादलों के बीच आप और देवदार के वृक्ष । हम लोग यहाँ लगभग 02 घन्टे रहें, समय का ध्यान रखते हुये आगे के लिये निकल पड़े । यहाँ पहुचने पर सबके द्वारा मैगी व चाय का लुफ्त भी उठाया गया था तो अब लगभग 02 घन्टे तो गाड़ी को चलाना ही था । हम लोग जैसे ही थोड़ा आगे बढ़े, पुलिस द्वारा गाड़ी को रोककर आगे ढलान ज्यादे होने के कारण 01 या 02 गियर में ही गाड़ी को चलाने की सलाह दी गयी । धीरे-धीरे हम लोग गंगटोक की तरफ बढ़ रहे थे, अब मुख्य स्थान तीस्ता बाजार आगे आने वाला था । तीस्ता के पहले से ही तीस्ता नदी पहाड़ से दिखने लगी जो दृश्य अद्धुत था । गुगल बाबा द्वारा लवर्स प्वाईन्ट कार प्ले में दिखाई देने पर मैं अपनी गाड़ी को रोककर कुछ फोटोज जल्दी से लेकर आगे के लिये चल पड़े । अब सबको धीरे धीरे भुख का भी पता चलने लगा था । हम लोग रास्ते में रुककर शायद किर्नय बाजार में लन्च किये और थोड़ा आराम भी किया गया । यहाँ से निकलकर लगभग 01.30 घन्टे में गंगटोक शाम करीब 06 बजे पहुंच चुके थे । एमजी मार्ग जो यहाँ के सबसे खुबसुरत बाजार के लिये प्रसिद्ध है के पास ही होटल लेकर हम लोग विश्राम किये और पास में ही स्थित गाड़ी पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर दिया गया क्योंकि अगले दिन हम लोगो को नाथुला पास चाईना बार्डर जाना था और वहाँ अपनी गाड़ी से नहीं जा सकते । उसके लिये वहाँ की लोकल टैक्सी से ही जाया जा सकता है और रजिस्ट्रेशन भी कराना पड़ता है । गाड़ी पार्किंग चार्ज 600 रुपये प्रति गाड़ी प्रति दिन बताया गया, जो थोड़ा ज्यादे तो लगा लेकिन गाड़ी खड़ी तो करनी ही थी तो दे दिया गया ।
कुछ देर आराम के पश्चात होटल के लोगो से नाथुला पास जाने के सम्बन्ध में जानकारी की गयी तो वही बात बताई गयी जो पहले से मुझे पता था कि अपनी गाड़ी से नहीं जा सकते और रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है । आईडी के लिये आधार कार्ड वैलिड नहीं है । निर्वाचन प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, सर्विस आईडी कार्ड आदी वैलिड हैं । हम लोग लगभग 13 लोग थे, जिनका रजिस्ट्रेशन कराया जाना था । एमजी मार्ग पर ही स्थित एक ट्रैवेल कम्पनी से सारी फार्मेलिटी पूर्ण कराया गया । यहाँ एक गाड़ी का चार्ज 7500 रुपये प्रति गाड़ी रजिस्ट्रेशन के साथ रहा । परिवार के अन्य लोगो द्वारा एमजी मार्ग पर स्थित दूकानों से शापिंग की गयी और हम लोगो द्वारा एमजी मार्ग पर ही स्थित सेल्फी प्वाईन्ट्स पर कुछ फोटोज भी क्लिक कराये गये । तो आज भी हम लोग जिस होटल में रुके थे उसी के रेस्टोरेंट में डिनर करके आराम किये ।

चौथा दिन- आज हम लोगों को नाथूला पास चाईना बार्डर, कंचनजंघा व्यू प्वाईन्ट, बाबा हरिभजन सिंह मन्दिर, और थांगू लेक जाना था । सुबह 07.30 बजे ही हम लोग होटल से दो गाड़ियों से निकल चुके थे, आज अपनी गाड़ी नहीं होने से मुझे आगे की सीट पर बैठकर बस फोटोज क्लिक करना था और विडियो ही बनाना था । गंगटोक शहर में ही ऐसे ऐसे मोड़ हैं कि मैं देखकर डर भी रहा था और रोमांचित भी हो रहा था । गंगटोक शहर की समुद्र तल से ऊचाई लगभग 6000 फीट है और नाथुला पास 14000+ फीट पर स्थित है, मतलब आज खुब पहाड़ चढ़ना भी है और वापसी में उतरना भी है । जैसे जैसे गाड़ी गंगटोक से बाहर हुई पहाड़ो की ऊचाई बढ़ती गयी और गाड़ी चलती गयी । थोड़ी दूर जाने पर ही बादलों के अधिकता के कारण रास्ता बहुत ही कम दिख रहा था । जैसे जैसे उपर चलते गये वैसे वैसे बादल बढ़ते गये । रास्ते में चेकप्वाईन्ट पर सारे कागजात चेक कराने के पश्चात हम लोग आगे के लिये निकल पड़े थे । दोस्तों, इस रोड का निर्माण भी BRO द्वारा ही कराया गया है और यह रोड भी बहुत ही अच्छी है । रास्ते में ऐसा ही लग रहा था कि हम लोग बादलों के बीच में से ही चल रहे हैं । इस रोड पर कई स्थानों पर सेना के केन्द्र स्थापित होने के कारण ड्राईवर द्वारा बता दिया जाता था कि यहाँ का विडियो व फोटो नहीं बनाना है तो एक अच्छे नागरिक के नाते मैं कैमरे को बन्द करते हुये नजारे का लुफ्त लेते हुये हम लोग आगे बढ़ते चले जा रहे थे । कुछ देर बाद लगभग 09 बजे हम लोग कंचनजंघा व्यू प्वाईन्ट पर पहुंच चुके थे, जहाँ से कंचनजंघा की चोटिंयां दिखाई दे रही थी । बिना देर किये वहाँ भी हम लोगो द्वारा फोटोज क्लिक किया गया और चाय का आनन्द लेकर हम लोग नाथूला पास के लिये निकल पड़े । बादल होने के कारण उचाई पर होने के बाद भी व्यू नहीं दिखाई दे रहा था । रास्ते में 15 कर्व की एक रोड भी रही जिसके बारे में बादल ज्यादे होने के कारण गुगल से ही जानकारी लग पाई । हम लोग 10 बजे के करीब नाथूला पास पहुंच चुके थे । भीड़ तो अभी यहां बढ़नी शुरु ही हुई थी । यहाँ पहुंचकर मन में देशभक्ति की भावना भी स्वयं ही आने लगेगी, सामने चाईना चेक पोस्ट की चौकी और आप भारतीय सीमा में । मेरे मोबाईल का समय भी यहाँ पहुचते ही टाईमजोन चेन्ज होने के कारण बदल चुका था । मैं पहली बार भारतीय टाईमजोन के अलावा कहीं पहुंचा भी था तो यह अनुभव भी रोमांचित रहा । लगभग 03 से 04 घन्टे हम लोग यहाँ पर रहें । वापसी में हम लोग बाबा हरिभजन सिंह मन्दिर पहुंचे, जहाँ हर रविवार अथवा शनिवार अथवा दोनो दिन सेना द्वारा लन्गर का आयोजन किया जाता है । लन्गर में प्रसाद हम सभी लोगो द्वारा ग्रहण कर कुछ देर रहने के बाद हम लोग इस स्थान से वापस गंगटोक के लिये निकल पड़े । रास्ते में थांगू लेक भी थोड़ी देर सभी लोग रुके लेकिन थकावट ज्यादे होने से यहाँ ज्यादे फोटोज क्लिक नहीं किये गये । इसके आगे तो बहुत तेज बारिश रही और रास्ता भी बिल्कुल भी दिखाई नहीं दे रहा था । बहुत सावधानी से इस रास्ते पर ड्राईव किया जा सकता है । तो दोस्तो, वैसे तो नाथूला पर हमेशा बर्फ होते भी हैं लेकिन बरसात का मौसम यहाँ आ जाने से यहाँ हम लोगो को बिल्कुल भी बर्फ नसीब नही हुई । फिर भी सारे व्यू प्वाईन्ट मन को बहुत उत्साहित करने वाले थे । हम लोग लगभग 05 बजे वापस गंगटोक शहर आ चुके थे । यहाँ आज हम लोगो द्वारा एमजी रोड पर ही शाम के समय में काफी मस्ती की गयी और डिनर करके रात्रि में विश्राम किया गया ।


पांचवा दिन- आज की यात्रा बहुत लम्बी होने वाली थी ये मुझे भी नहीं पता था । हम लोग सुबह समय से होटल से निकलकर गंगटोक के आस पास स्थित सभी प्रमुख जगहों पर जाने के लिये निकल चुके थे । सबसे पहले पहुंचे भक्तांग वाटरफाल । यहाँ भी हम सभी द्वारा कुछ देर रुककर फोटोज क्लिक किया गया और मेमोरी को फोन में कैद करके आगे पहुंचे ताशी व्यू प्वाईन्ट । ताशी व्यू प्वाईन्ट हम लोग लगभग 01 घन्टे रहें । यहाँ से गंगटोक शहर का नजारा बहुत ही सुन्दर था । ताशी व्यू प्वाईन्ट से हम लोग गनेश टोक व हनुमान टोक पहुंचे । हनुमान टोक की उचाई पर पहुंचकर मन फिर से इस व्यू को कैद कर लेने का था । दर्शन करने के बाद कुछ फोटोज क्लिक किये गये और हम लोग मन्दिर से नीचे आकर भारतीय सेना ब्लैक कैट डिविजन द्वारा लगाये गये स्टाल से डोसा का आनन्द लिये । जिसके लिये भीड़ होने के कारण हल्की लाईन भी लगानी पड़ी । तो इस तरह हम लोग अब यहाँ से वापस बनारस जाने का मन भी बना चुके थे और आगे सिलीगुड़ी शहर में रात रुकने के इरादे से जल्द से जल्द यहाँ से निकलना चाहें । लगभग 04.30 बजे हम लोग हनुमान टोक से सिलीगुड़ी शहर के लिये निकल पड़े थे । मुझे ये पता था कि लगभग 05 घन्टे लगने वाले हैं । रास्ता काफी पहाड़ी एवं घुमावदार रहा । तीस्ता नदी के किनारे किनारे हम लोग चल चुके थे । रास्ते में तीस्ता के आगे नदी के किनारे रुककर चाय व नाश्ता किया गया और सिलीगुड़ी के लिये फिर से निकल पड़े । लगभग 10 बजे हम लोग सिलीगुड़ी पहुंच चुके थे ।

रात – गुगल बाबा से वाराणसी का मैप नेविगेट किये रहने का नतीजा ये रहा की कब सिलीगुड़ी शहर के बाहर निकल गये पता ही नहीं चला । अब लगभग सभी लोगो को भुख भी काफी लगी थी । काफी देर के बाद लगभग नक्सलवारी कस्बे में हम लोगो को एक ढाबा मिला जहाँ हम लोग डिनर किये । डिनर के बाद सबकी राय से आगे कहीं होटल लेकर हम लोग रुकने की प्लानिंग किये । शरीर तो थक ही चुका था । हम लोग होटल देखते देखते आगे बढ़ते जा रहे थे, हम लोगो की संख्या अधिक होने व उस क्षेत्र में अच्छे होटल नहीं होने से रुम भी नहीं मिला । लगभग 01 बजे हम लोग अररिया बिहार पहुंच कर होटल देखा गया लेकिन किन्ही कारणों से यहाँ भी होटल मिलना सम्भव नहीं हुआ । अब मेरा व दूसरे गाड़ी के ड्राईवर का पूरा मन यही हो गया कि रात में गाड़ी से जितना निकल ले उतना ठीक है क्योंकि दिन में ट्रैफिक भी बढ़ जायेगी और रुकने पर कितना भी जल्दी किया जाये लेट होना ही है । लगभग 04 बजे मैं दरभंगा के करीब पहुंचा था । जहाँ से अब मेरा भी गाड़ी चलाने का बिल्कुल मन नहीं हो रहा था । काफी थका हुआ था । जैसा की मैने पहले ही बताया था की हम लोग 04 फैमिली गयी हुई थी । उनमें एक हमारे छोटे साढ़ु भाई के मित्र का भी परिवार था । उनके द्वारा मेरा पूरा साथ दिया गया और वह मेरी गाड़ी आगे ड्राईव किये और मैं लगभग 01.30 घन्टे अपनी गाड़ी में ही आराम किया । सुबह 06 बजे के करीब हम लोग मुजफ्फरपुर पहुंच चुके थे । यहाँ चाय पीने के बाद मैं फिर से गाड़ी की स्टेयरिंग सम्भाल लिया । आगे छपरा लगभग 08.30 पहुंचे ही थे की छपरा-आरा गंगा पुल पर जो जाम मिला की सारी रात की मेहनत खराब हो गयी । हम लोग यहाँ जाम में 03 घन्टे के करीब फस चुके थे । हम सभी लोगो द्वारा काफी कोशिश करके जाम को खुलवाया गया । यदि इस जगह हम लोग जाम खुलवाने में नहीं लगते तो शायद रात भी हो जाती । करीब 12 बजे हम लोग उस जाम से छुटे । शाम करीब 05 बजे हम लोग वाराणसी पहुंच चुके थे ।
दोस्तो, इस तरह से यह यात्रा भी हम सभी लोगो ने बहुत अच्छे से पूरी की । सम्पूर्ण यात्रा काफी अच्छी रही । एक बात यह और रही की फिर से हम लोग 20 सेल्सियस से 45 सेल्सियस में आ चुके थे । 01 दिन पहले जहाँ गीजर का पानी ढूढ़ा जा रहा था यहाँ आने पर टंकी का पानी गीजर का ही लग रहा था । तो कैसा लगा आपको मेरा यात्रा विवरण यह जरुर बतायें । गलतियां ही मनुष्य को सिखाती हैं, इसी भावना के साथ आगे भी आपके साथ अपने यात्रा विवरण शेयर करता रहूंगा । बाकी बनारस से कभी दार्जिलिंग जाकर चाय पीने की इच्छा हो तो इस ब्लाग को आप जरुर पढ़ें और आगे दोस्तों के साथ भी शेयर करें ।
धन्यवाद ।