हडप्पा सभ्यता के महानगर धोलावीरा की यात्रा भाग -1

Tripoto
4th Sep 2021
Day 1

#मेरी_कच्छ_भुज_यात्रा
#धोलावीरा_यात्रा
#भाग_1

नमस्कार दोस्तों
पिछले दो साल से गुजरात में राजकोट कालेज में एक टीचर के रूप में काम कर रहा हूँ तो सारे गुजरात को घूमने का सपना मन में आ रहा था, इसी सपने में धोलावीरा भी शामिल था , लेकिन धोलावीरा जाने का योग्य नहीं बन रहा था। अगस्त के लासट में राजकोट कालेज के बच्चों के कच्चे पेपर हुए और फिर 4 सितंबर  2021 को प्रैक्टिकल भी खत्म हो गए। अब सभी सटूडैंट अपने घर की ओर निकल पड़े। मैं भी लड़को के होस्टल में रहता हूँ तो होस्टल खाली हो गया था। कच्छ के पास रहने वाले एक सटूडैंट के साथ मैंने धोलावीरा जाने का प्रोग्राम बनाया। शनिवार को चार बजे तक सटूडैंट का प्रैक्टिकल लेकर , एक सटूडैंट की बाईक लेकर हम शाम को चार बजे राजकोट कालेज से सटूडैंट के घर की ओर निकल पड़े। दोस्तों मैं अपने सटूडैंटों को अपने बच्चों की तरह रखता हूँ कयोंकि यह सटूडैंट भविष्य के होम्योपैथी के डाक्टर हैं जो डाक्टर बन कर मानवता की सेवा करेंगे। कालेज से तीन किलोमीटर दूर कुवाडवा कसबे की चौकड़ी (चौंक) से वाकांनेर की ओर बाईक दौड़ा दी। वाकांनेर से पहले पैट्रोल पंप पर बाईक फुल करवा ली।  वांकानेर गुजरात के सौराष्ट्र की एक पुरानी रियासत हैं जहां एक पैलेस भी देखनेलायक हैं । इस बार वांकानेर के पैलेस को नहीं देख पाया समय की कमी की वजह से। वाकांनेर से हम हाईवे पर चढ़ गए। अब हम मोरबी की तरफ बढ़ने लगे। मोरबी गुजरात का एक जिला हैं , मोरबी अपनी खूबसूरत टाईलस के लिए प्रसिद्ध है जो हमारे घरों में, किचन में , बाथरूम और आफिस में लगाई जाती हैं। मोरबी शहर से 10 किमी पहले और 10 किमी तक बढ़ी बढ़ी अलग अलग कंपनियों की टाईलस की फैक्ट्रियां  हैं । जहां पर खूबसूरत टाईलस के साथ एड के लिए बोर्ड लगे हुए हैं। मोरबी एक भीडभाड़ वाला शहर हैं। मैंने सोचा मोरबी को पार करके ही चाय पानी के लिए बाईक को रोकूंगा कयोंकि छह बजने वाले थे। दो घंटे हो चुके थे बाईक चलाते हुए । थोड़ी देर बाद मोरबी को पार करके हाईवे पर होटल सतकार का बोर्ड दिखा, सतकार नाम पंजाबी का लगा तो बाईक की ब्रेक लगा दी। दो कप कड़क चाय का आरडर देकर मैंने अपने सटूडैंट रणजीत से कहा , रणजीते कया खायेगा ??
वह बोला सर जी जो मरजी मंगवा लो !!
मैंने होटल की दीवार पर देखा तो
परांठा , इडली, डोसा और सेव ओशन की तसवीर लगी हुई थी। परांठा , इडली, डोसा आदि तो पहले खा रखे थे तो दो पलेट सेव औशन मंगवा लिए जो कच्छ की एक डिश है दिखने में मैगी की तरह लगती हैं लेकिन सवादिष्ट थी। चायपान करके पैसे देकर हम फिर राजकोट से भुज जाने वाले हाईवे पर आ गए अपनी बाईक पर सवार होकर। हाईवे पर ट्रकों की भरमार थी , बड़े बड़े कंटनेरों को बाईक से पीछे निकालना अलग ही तरह की खुशी दे रहा था। मोरबी से 30 किमी दूर मालीया कस्बे के बाद एक बड़े पुल को पार करके हमने मोरबी जिले को छोड़कर भारत के सबसे जिले कच्छ में प्रवेश किया। सामाखियाली से 15 किमी पहले हमने भुज हाईवे को छोड़कर एक लिंक रोड़ पर बाईक को मोड़ दिया। कुछ समय बाद मेरे सटूडैंट का गांव आ गया जहां हमारी रात का सटे था। रात सटूडैंट के घर में बिताकर अगले दिन सुबह सात बजे हडप्पा के पुराने महांनगर धोलावीरा की ओर चल पड़े जो उसके गांव से 120 किमी था। उसके गांव से 30 किमी दूर रापर नामक एक कस्बा आया जो धोलावीरा के पास सबसे बड़ा शहर हैं जहां से धोलावीरा 95 किमी दूर रह जाता हैं। रापर से धोलावीरा वाला रास्ता बिल्कुल सुनसान हैं, 15 किमी तक कोई आबादी या घर नहीं हैं, रापर से 15 किमी बाद एक छोटा सा गांव आता हैं । रास्ते में दोनों तरफ बड़ी बड़ी झाडियां दिखाई देती हैं। रापर और धोलावीरा के बीच एक जगह हमने ऊंटों के झुंड को देखा जिसे मैंने अपने मोबाइल में कैद कर लिया।  सुबह 9.40 तक हम धोलावीरा में पहुंच जाते है , जहां हमने गुजरात टूरिज्म के होटल में ब्रेकफास्ट किया जिसमें 100 में दही , बटर टोस्ट, कटे हुए सेब और आलू के दो परांठे थे। मेरा मकसद दस बजे तक धोलावीरा पहुंचना था, कयोंकि धोलावीरा मयूजियिम सुबह दस बजे खुलता है। अगले भाग में धोलावीरा की सैर करवायूंगा ।
धन्यवाद।

धोलावीरा जाने का रास्ता और बोर्ड

Photo of Dholavira by Dr. Yadwinder Singh

मैं बाईक के साथ धोलावीरा की ओर

Photo of Dholavira by Dr. Yadwinder Singh

ऊंट के झुंड जो हमें रास्ते में मिले थे

Photo of Dholavira by Dr. Yadwinder Singh

सेव ओशन कच्छ की एक शानदार डिश

Photo of Dholavira by Dr. Yadwinder Singh