रात्रि कालीन चलचित्र खींचन क्रियाकलाप के दौरान मन प्रफुल्लित रहा जिसके कारण सुबह भी अच्छी रही प्रेशर भी सही से बना।
सुबह का मौसम एक बार फिर से हमेशा की तरह खिला खिला था। पुरे आसमान में बादल का एक भी टुकड़ा नहीं दिख रहा था। आज जाना था वासुकि ताल। रास्ता बिल्कुल आसान था आज का बस एक भाग को अगर छोड़ दिया जाय तो।
नन्दनवन से आगे चलने पर एक रिज पर ही बहुत देर तक चलना था जिसके बाएं हाथ पर निचे की ओर चतुरंगी ग्लेशियर दिखाई दे रहा था। जिसमें चोटी चोटी बहुत सारी गहरी हरे नीले रंग की झीलें बनी हुई थी। दाहिने हाथ में ऊपर की ओर थी भागीरथी चोटियां। करीब 2 km तक उस रिज पर चलना था।
2 km तक उस रिज में चलने के बाद अब उस रिज से निचे उतर कर ग्लेशियर पार करना था। उस जगह पर एक दम तीखी ढलान थी। जैसे ही ढलान खत्म हुई ग्लेशियर में बनी वाटर स्ट्रीम को पार करने के लिए मुझे एक लम्बी छलांग भी लगानी पड़ी क्युकी में मेन रास्ता से थोड़ा भटक गया था।
अब रास्ता था चढ़ाई वाला। जैसे ही चढाई खत्म हुई सामने थी एक सीधी खड़ी चट्टान जिस पर बिना रस्सी के सहारे चढ़ना बहुत मुश्किल था। उस जगह पर पहले से ही एक रोप फिक्स करी हुई थी। दरसल ये रास्ता सतोपंथ और कालिंदीखाल जाने वालों ट्रेकेरों के लिए एक ही हैं जहाँ बहुत लोग हर साल आते हैं इसलिए ये रस्सी लगायी गयी है।
उस चट्टान को रस्सी की सहायता से पार करने में हमारी टीम को पूरा 1 घंटा लगा। इस दौरान गाइड द्वारा सबको बहुत उत्साहित किया गया। रास्ता चट्टान वाला था और उस पर 25 kg का बैग ले कर चढ़ने में थोड़ी दिक्कतों का सामना करना लाजमी था।
चट्टान पे उप्पर पहुँच कर ही उसके अगले साइड वासुकि ताल के भी दर्शन हो गये। जहाँ पहले से ही एक सतोपंथ और एक कालिंदीखाल जाने वाली टीम के टेंट लगे हुए थे। ताल के एक कोने में हमने भी अपने तम्बू गाड़ दिए। क्रमशः.........