मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 32 किमी दूर स्थित है भोजपुर। इस नगर को नाम मिला है 11वीं शताब्दी के परमार वंश के यशस्वी सम्राट भोजराज के नाम पर जिनका शासन धारानगरी (मौजूदा धार) और अवंतिका (उज्जैन) से संचालित होता था। इन्हीं महाराजा भोजराज ने भोपाल की झील का निर्माण करवाया था। इस झील के विषय में प्रसिद्ध है कि
गढ़ों में गढ़ है चित्तौड़गढ़, बाक़ी सब गढ़ैया हैं
तालों में ताल है भोपाल का ताल, बाक़ी सब तलैया हैं
महाराजा भोज ने 1018 ईस्वी से लेकर 1060 ईस्वी तक राज किया और चाराें दिशाओं में शत्रु़ओं को परास्त कर अपनी विजय पताका फहराई। महाराजा भोज न सिर्फ़ एक महान विजेता थे बल्कि शिल्प, काव्य, खगोल शास्त्र आदि के विद्वान भी थे और उनके लिखे ग्रंथ आज भी प्राप्त होते हैं। वे एक महान शिवभक्त भी थे। उन्होंने केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य करवाया था। चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर शिवजी के त्रिदेव रूप को समर्पित समिधेश्वर मंदिर का निर्माण भी महाराजा भोज ने करवाया था। उन्होंने बेतवा नदी के निकट एक भव्य शिवमंदिर का निर्माण करवाया था जो आज भोजपुर शिव मंदिर के नाम से जगविख्यात है।
भोजपुर शिव मंदिर
यह मंदिर भोपाल से 32 किमी दक्षिण पूर्व में बेतवा नदी के किनारे दक्षिण पूर्व दिशा में एक ऊंची चट्टान पर स्थित है। मंदिर के निर्माण के विषय में स्थानीय लोगों के बीच कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। एक जनश्रुति के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में पाण्डव भाइयों द्वारा किया गया था जब वे द्युत पराजय के बाद वनवास भोग रहे थे। कुछ का यह भी मानना है कि पाण्डवों की माता कुंती ने यहीं-कहीं वेत्रवती नदी के किनारे कर्ण को नदी में त्याग दिया था। बेतवा का प्राचीन नाम वेत्रवती है।
मंदिर का स्थापत्य
मंदिर के बाहर लगे एक शिलापट से मंदिर के विषय में उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है जो कि इस प्रकार है-
‘मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर है। यह भव्य मंदिर 106 फीट लम्बे, 77 फीट चौड़े और 17 फीट ऊँचे एक चबूतरे पर निर्मित है। इसके गर्भगृह का अपूर्ण शिखर विशालकाय चार स्तम्भ और बारह अर्ध स्तंभों पर आधारित है। योजना में वर्गाकार गर्भगृह में चमकदार पॉलिश युक्त एक विशाल शिवलिंग प्रतिष्ठापित है। द्वार शाखा के दोनों ओर नदी देवी गङ्गाजी और यमुनाजी की प्रतिमाओं का अलंकरण है। गर्भगृह के विशाल स्तम्भ उमा महेश्वर, लक्ष्मी नारायण, ब्रह्मा सावित्री और सीता राम की प्रतिमाओं से अलंकृत है।’
मंदिर का सामने वाले भाग के अलावा इसका बाक़ी भाग अलंकरण मुक्त व सादा है। स्वत: ही अनुमान किया जा सकता है कि अपने निर्माण के समय इसमें अनेकानेक अलंकरण होंगे और इसकी भव्यता देखते ही बनती होगी। किंतु, इतने लम्बे समय तक लोगों की दृष्टि से दूर रहने और आक्रमणों से मंदिर को बहुत क्षति हुई जिसके अवशेष मंदिर के प्रांगण और पार्श्व भाग में आज भी दिखाई देते हैं।
दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंगों में शामिल
यहाँ स्थित 22 फीट का शिवलिंग दुनिया के सबसे बड़े और ऊंचे शिवलिंगों में से एक है। विशेष बात यह है कि इस शिवलिंग का निर्माण पूरी तरह एक ही पत्थर से किया गया था। किसी समय मंदिर की छत का एक बड़ा पत्थर शिवलिंग के ऊपर गिरने से शिवलिंग टूट गया था और कई सालों तक छत इसी प्रकार खुली रही। बाद में सावधानी पूर्वक योनिपीठ को जोड़ दिया गया। मंदिर तक पहुंचने के लिए एक रपट मौजूद है जिसका उपयाेग मंदिर निर्माण के लिए विशाल पत्थराें को पहुंचाने के लिए किया जाता था। साथ ही मंदिर के निकट चट्टानों पर उर्ध्व विन्यास, स्तम्भ और अर्ध स्तम्भाें के चित्र उकेरे गए हैं। यानी इसका यह अर्थ है कि उस समय में मंदिर का नक्शा पत्थरों पर उत्कीर्ण किया जाता था। हालांकि आज इनके रखरखाव की कमी के कारण ज़मीन पर उत्कीर्ण ये प्राचीन धरोहरें मिटती जा रही हैं।
बेतवा नदी पर बांधा था डैम
भोजपुर मंदिर से पूर्व बेतवा नदी के ऊपर महाराजा भोज द्वारा बनवाया गया बाँध आता है जहाँ से बेतवा नदी घाटी का दृश्य दिखाई देता है। यह बाँध आज भी मौजूद है। माण्डू का सुल्तान होशंग शाह जब यहाँ आया था तो पहले उसने वेत्रवती में स्नान किया था और फिर इस बाँध को तुड़वाया था।
कैसे पहुँचें?
इस ऐतिहासिक और भव्य मंदिर में यदि आप दर्शन करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल जाना होगा। वहाँ से यह 32 किमी की दूरी पर स्थित है। आप चाहें तो बस भी यहाँ जा सकते हैं या अपनी गाड़ी लेकर भी जा सकते हैं। रोड अच्छी और सुरक्षित है इसलिए आप कार या बाइक का विकल्प भी ले सकते हैं। यदि आपको पुरातत्व और इतिहास से प्रेम है तो भोजपुर से 7 किमी आगे आशापुरी भी जा सकते हैं। वहाँ पर भी प्राचीन मंदिरों के अवशेष बड़ी संख्या में मिले हैं।
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