बीकानेर : रेगिस्तान,भुजिया,गांठिया,हवेलियां !!

Tripoto
21st Dec 2022
Photo of बीकानेर : रेगिस्तान,भुजिया,गांठिया,हवेलियां !! by Ranveer Singh
Day 1

भुजिया, नमकीन और मिठाई के लिए प्रसिद्ध बीकानेर राजस्थान का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है ।
बीकानेर के रेगिस्तान में ऊंटो की सवारी, लंबी लंबी मूछों वाले रंग बिरंगे लोग, यहां की संस्कृति देश विदेश में अपनी ख्याति स्थापित करती है । बीकानेर बहुत ही रंगीन शहर है जो अपने सौंदर्य और सुंदरता को अपने आप में समेटे हुए हैं ।
यहां की विश्व प्रसिद्ध हवेलियां, किले, पैलेस दुनिया भर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं इसलिए से पर्यटकों का गढ़ कहा जाता है ।
बीकानेर हर पहलू में संस्कृति से समृद्ध शहर है जैसे कला, शिल्प, त्योहार और नृत्य। शहर में सबसे प्रसिद्ध मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक बीकानेर ऊंट महोत्सव और मेला है। त्योहार में सजाए गए ऊंटों का जुलूस शामिल होता है, उसके बाद ऊंट नृत्य, ऊंट नृत्य होता है। लोग नृत्य और संगीत में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं।
ऊंट महोत्सव जनवरी माह में मनाया जाता है।

बीकानेर की भुजिया

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ऊंट सवारी

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स्थानीय लोग अपनी सांस्कृतिक पोशाक में

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ऊंट महोत्सव के लिए सजाए गए ऊंट

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Sunset in Thar

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इतिहास ~
बीकानेर का इतिहास काफी ऐतिहासिक व वीरता पूर्ण रहा है ।
बीकानेर राजस्थान के चुनिंदा सबसे खूबसूरत और समृद्ध शहरों में गिना जाता है। पर्यटन के लिहाज से ये शहर भारत के मुख्य आकर्षणों में शामिल है। इतिहास के पन्नों को खंगाल कर देखें तो पता चलता है कि इस शहर का इतिहास महाभारत के वक्त से जुड़ा हुआ है, तब इसे जांगल देश के नाम से पहचाना जाता था। जांगल देश में बीकानेर के साथ-साथ जोधपुर का उत्तरी भाग भी शामिल था। राजस्थान के बाकी समृद्ध शहरों की तरह ही इस शहर का भी अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है, जिसे बसाने का श्रेय राव बीका को दिया जाता है। आज ये शहर राज्य के प्रमुख प्रयटन स्थलों में गिना जाता है, जहां की ऐतहासिक हवेलियों को और राजशाही परिवेश को देखने के लिए देश-विदेश से सैलानी यहां तक का सफर तय करते हैं।
बीकानेर शहर प्राचीन राती घाटी में राव बीका द्वारा बसाया गया है ।
अक्षय तृतीया के दिन बीकानेर का स्थापना दिवस मनाया जाता है ।

प्रमुख पर्यटन स्थल ~

1.रामपुरिया हवेली ~
बीकानेर की सुप्रसिद्ध हवेली रामपुरिया हवेली है जिसके हर दीवार अपनी अलग पहचान बताती है । इसके छज्जे, झरोखे सभी पर्यटकों को इस प्रकार अपनी ओर आकर्षित करते है की वे इस जगह को छोड़े ही न ।

2.जूनागढ़ किला ~
राव बीका के द्वारा राती घाटी पर राव बीका की टेकरी बसाई गई थी जिसके स्थान पर बाद में महाराजा राय सिंह ने एक किले बनवाया जिसे जूनागढ़ किले के नाम से जाना गया ।
इस किले का इतिहास रहा है की इस पर आज तक कोई भी बाहरी शासक अधिकार नही कर सका है ।
इसे जमीन का जेवर और चितामणि दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है ।

जूनागढ़ दुर्ग

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रामपुरिया हवेली

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3. देशनोक, करणी माता मंदिर ~
शहर से कुछ ही दूरी पर करणी माता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है । मन्दिर में सफेद काबा (चूहा) का दर्शन मंगलकारी माना जाता है। इस पवित्र मन्दिर में लगभग 25000 चूहे रहते हैं ।
मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचते ही चूहों की धमाचौकड़ी देख मन दंग रह जाता है। चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं।

चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते हैं। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है।
चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है।

मां करणी मंदिर तक पहुंचने के लिए बीकानेर से बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं। बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर स्थित देशनोक रेलवे स्टेशन के पास ही है यह मंदिर। वर्ष में दो बार नवरात्रों पर चैत्र व आश्विन माह में इस मंदिर पर विशाल मेला भी लगता है।
जय माता दी 🙏🏻😊

करणी माता मंदिर

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3. महाराज गंगा सिंह संग्रहालय ~
इतिहास से रूबरू कराने वाली सामग्रिया व महाराज महारानी के चित्र का शानदार प्रस्तुतिकरण।

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4. कोडमदेसर, भेरू जी का मंदिर ~
इस मंदिर का अपना अलग इतिहास है ।
ऐसा कहा जाता है की राव बीका जब जोधपुर छोड़ कर जा रहे थे नई रियासत बनाने के लिए तब राव जोधा उनके पिताजी ने उनको भेरू जी की एक मूर्ति भेंट की थी और कहा था की यह मूर्ति जहां रूक जाए वहीं अपनी रियासत/प्रदेश का केंद्र बनाना । और ऐसा ही हुआ मूर्ति कोडमदेसर नामक स्थान पर रूक गई जिसे राव बीका ने अपने प्रदेश का केंद्र बनाया ।

कोड़मदेसर स्थित कोड़मदेसर भैरुजी

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5. श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर ~
श्री लक्ष्मीनाथ बीकानेर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।
6. शिव बाड़ी मंदिर ~

श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर

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शिव बाड़ी मंदिर

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7. गजनेर झील ~

गजनेर झील

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8. देवी कुंड सागर / द रॉयल सेनोटाफ्स, बीकानेर ~
राजस्थानी कला और वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक माना जाने वाला देवी कुंड गाथा हर साल बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह बीकानेर के शाही परिवार का श्मशान घाट है। यहां राजाओं और रानियों की स्मृति में विभिन्न कब्रें बनाई गई हैं। सबसे पुराना स्मारक 1542-71 ई. के बीकानेर के शासक राव कल्याणमल का है और अंतिम स्मारक महाराजा कर्णी सिंह (1950-88A.D) का है। यह अद्भुत स्थान 16 स्तंभों पर आधारित है और भगवान कृष्ण, पुष्प पैटर्न, मोर आदि के कृत्यों को दर्शाते हुए लालसा रखता है।

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9.भांडासर जैन मंदिर ~
ऐसा कहा जाता है की 40 हज़ार किलो देशी घी से रखी गई थी राजस्थान के इस ऐतिहासिक मंदिर की नींव ।
अपनी स्थापत्य कला और धार्मिक मान्यताओं से यह मंदिर राजस्थान के प्रसिद्ध जैन मंदिरों में से एक है ।

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