राजस्थान में कुछ शहर ऐसे हैं जहाँ लोगों की भीड़ बनी रहती है तो कुछ शहर ऐसे भी हैं जहाँ कम लोग ही घूमने जाते हैं। राजस्थान का बीकानेर ऐसा ही शहर है जहाँ घूमने वाले कम लोग मिलेंगे। इस छोटे-से शहर की अपनी एक अलग कहानी और खूबी है। जोधपुर में दो दिन घूमने के बाद अगले दिन सुबह 7 बजे बीकानेर की ट्रेन ले ली और इस तरह से मेरी राजस्थान के एक और शहर की यात्रा शुरू हो गई।
ट्रेन अपनी रफ्तार से बढ़ रही थी। खिड़की से कभी खेत दिखते तो अपनी रेत भी दिखाई देते। ट्रेन से ऐसे नजारे पहली बार देख रहा था। लगभग 12 बजे ट्रेन बीकानेर पहुँची। हम अपना बैग उठाकर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल आए। हमने रेलवे स्टेशन के पास में एक होटल ले लिया। मैं सुबह से कुछ खाया नहीं था तो पास में बने एक रेस्टोरेंट में कुछ खा लिया और फिर बीकानेर को एक्सप्लोर करने के लिए निकल पड़े।
बीकानेर
रेलवे स्टेशन से जूनागढ़ किला 2 किमी. की दूरी पर है। हम पैदल-पैदल ही जूनागढ़ किले की तरफ चल पड़े। बीकानेर का एक इतिहास भी है। जोधपुर के राजा राव जोधा के बेटे राव बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की। कहा जाता है कि अपने पिता से नाराज होकर राव बीकाजी चलते-चलते जांगल प्रदेश नाम की जगह पर पहुँचे। यहीं पर उन्होंने एक नए राज्य की स्थापना की, बीकानेर।
बीकानेर में चलते-चलते ये तो समझ आ रहा था कि शहर छोटा है लेकिन आसपास के क्षेत्र का पूरा बाजार यहीं पर लगता है। बड़ी संख्या में ग्रामीण लोग दिखाई दे रहे थे। थोड़ी देर में हम जूनागढ़ किले में पहुँच गए। कई ऊंचे-ऊंचे दरवाजों को पार करने के बाद हम उस जगह पर पहुँचे, जहाँ टिकट मिल रहा था। किले के परिसर में प्राचीना म्यूजियम भी है। हमने दोनों जगहों का टिकट ले लिया।
जूनागढ़ किला
जूनागढ़ किले के निर्माण की शुरुआत 1478 में राव बीकाजी द्वार की गई। पहले यह चट्टान का बना एक किला हुआ करता था। कई राजाओं ने इस किले को बनवाया। आखिर में राजा राय सिंह ने 1589 में किले का निर्माण करवाया और 1594 में किला बनकर तैयार हुआ। पहले मुझे लगा कि किला छोटा-सा होगा लेकिन किला काफी सुंदर और बड़ा है। इस किले की वास्तुकला में राजपूत शैली, मुगल शैली और राजस्थान शैली का मिश्रण है।
जूनागढ़ किले के अंदर कई सारे महल हैं, करण महल, फूल महल, अनूप महल, चन्द्र महल, गंगा महल और बादल महल। कुछ महल के दरवाजों पर ताला भी लगा हुआ था। इन सभी महलों की वास्तुकला अलग-अलग है क्योंकि इन सभी को अलग-अलग राजाओं ने बनवाया था। किले को देखने के बाद हम प्राचीना म्यूजियम को देखने के लिए चल पड़े। इस म्यूजियम में बीकानेर के राजाओं के पोशाकें, बर्तन, तलवारें और उनके चित्र लगे हुए थे।
पहले दिन का खर्च: 1705 रुपए
ऑटो : 230 रुपए
खाने का खर्च : 325 रुपए
होटल : 800 रुपए
टिकट : 350 रुपए
स्ट्रीट फूड
सुबह-सुबह जल्दी उठे थे और लंबी यात्रा के बाद बीकानेर पहुँचे थे। जूनागढ़ किले को घूमने के बाद काफी थकावट महसूस हो रही थी। किले को एक्सप्लोर करने के बाद हम कमरे पर आकर सो गए। उस दिन हम बीकानेर की किसी और जगह पर नहीं गए। अगले दिन सुबह उठे और एक नई जगह पर जाने के लिए तैयार हो गए। हमने एक किले के पास की एक दुकान से स्कूटी किराए पर ली और फिर बीकानेर की गलियों में चल पड़ा। हम सबसे पहले पहुँचा बड़ा बाजार।
हम बड़ा बाजार क्षेत्र में सबसे पहले जुनिया महाराज की दुकान पर पहुँचे। इस दुकान की कचौरी पकौड़ी बहुत मशहूर है। मुझे कचौड़ी इतनी अच्छी लगी कि मैं एक साथ दो प्लेर खा गया। उसके बाद बृज महाराज की दुकान पर गर्म-गर्म जलेबी खाई। इसके बाद हम देशनोक की तरफ निकल पड़े। बीकानेर से देशनोक की दूरी 30 किमी. है। हमारे गाड़ी हाइवे पर बढ़ती जा रही थी। लगभग पौने घंटे के बाद हम देशनोक पहुँच गए।
करणी माता मंदिर
देशनोक में काफी प्राचीन करणी माता मंदिर है। करणी माता मंदिर का निर्माण बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला में राजपुताना और मुगल शैली की झलक देखने को मिलती है। करणी माता मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें चूहों की पूजा होती है। कहा जाता है कि चूहे करणी माता के वंशज हैं। इस मंदिर में 25 हजार से ज्यादा की संख्या में चूहे रहते हैं।
आप जब मंदिर को घूम रहे होंगे तो कदम-कदम पर चूहे देखने को मिलेंगे। यहाँ लोग चूहों को दूध पिलाते हैं और चने खिलाते हैं। मंदिर के अंदर करणी माता की मूर्ति है साथ में उनकी बहनों की भी मूर्ति स्थापित है। करणी माता को दुर्गा का साक्षात अवतार माना जाता है। मंदिर के सामने एक संग्रहालय भी है जिसका टिकट सिर्फ 5 रुपए है। इस म्यजियम में करणी माता का पूरा जीवन चित्रों के माध्यम से बताया गया है।
रामपुरिया हवेली
करणी माता मंदिर को देखने के बाद हम वापस बीकानेर लौट आए। बीकानेर में हम सबसे पहले रामपुरिया हवेली पहुँचे। रामपुरिया हवेली एक बड़ी-सी हवेली है जिसको हम और आप बाहर से ही देख सकते हैं। इस हवेली का इतिहास भी काफी दिलचस्प है। 1920 में महाराजा गंगा सिंह गंग नहर का निर्माण करवा रहे थे ताकि लोगों को खेती के लिए पानी मिल सके। नहर के निर्माण में काफी पैसा खर्च हो रहा था। तब उन्होंने भंवर लाल रामपुरिया नाम के उद्योगपति से पैसे मांगे और बदले में ये हवेली उनको दे दी।
1925 में ये हवेली बनकर तैयार हुई। आज हम उसी परिवार के नाम से इस हवेली को जानते हैं। लाल बलुआ पत्थर से बनी ये हवेली कला का उत्कृष्ट नमूना है। बीकानेर की इस हवेली का बीकानेर का गौरव भी कहा जाता है। हर घूमने वाला व्यक्ति बीकानेर की इस हवेली को देखने के लिए आता है। रामपुरिया हवेली को देखने के बाद हम चल पड़े लालगढ़ पैलेस की तरफ। लालगढ़ पैलेस और लक्ष्मी निवास पैलेस पास में ही स्थित हैं। जब उनके पास गए तो दोनों शानदार पैलेस को हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया है।
दूसरे दिन का खर्च: 2030 रुपए
स्कूटी : 400 रुपए
पेट्रोल : 250 रुपए
ऑटो : 80 रुपए
खाने का खर्च : 320 रुपए
टिकट : 180 रुपए
होटल : 800 रुपए
इस वजह से लालगढ़ पैलेस और लक्ष्मी निवास पैलेस को हम नहीं देख पाए। पैलेस के पास में एक म्यूजियम जरूर देखने को मिला। जिसको हमने शानदार तरीके से देखा। म्यूजियम छोटा था लेकिन जानकारियों से भरा रहा। इस तरह हमारी बीकानेर की छोटी-सी यात्रा पूरी हुई। हम बीकानेर की कुछ और जगहों को देखना चाहते थे लेकिन समय की कमी की वजह से उन जगहों पर नहीं जा पाए। कभी बीकानेर जाना हुआ तो उन जगहों पर जाया जाएगा। अब मुझे फिर से राजस्थान के एक खूबसूरत शहर की ओर निकलना था।
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