Crank Ridge,Almora

Tripoto
4th Oct 2018
Photo of Crank Ridge,Almora by Neha Kumari

क्रैंक रिज, जी हाँ सही सुना ना ना, सही पढ़ा आपने। आज आपको ले चलते हैं यहाँ की सैर पर। चल तो पड़े लेकिन ये तो पता होना जरुरी है कि ये जगह है कहाँ। इस मुश्किल को हल किये देते हैं ये बता के कि उत्तराखंड में ही है ये क्रैंक रिज। अब आप सोच रहे होंगे कहाँ हो सकती हैं ये जगह, उत्तराखंड जैसे राज्य जिसे देवभूमि कहा जाता है उसके किसी दर्शनीय स्थल के लिए ये नाम कुछ अजीब सा लग रहा है ना। अब सबसे पहले दिमाग में जो नाम आ रहा होगा वो नैनीताल का होगा। थोड़ा अंग्रेजो के समय से बसा हुआ शहर है और वहां इस तरफ के काफी नाम भी है जैसे स्टोन ले, कैन्टन लॉज। पर ये क्रैंक रिज नैनीताल में ना हो कर अल्मोड़ा में हैं। सुन के आश्चर्य हो रहा होगा उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी और मंदिरों के गढ़ के रूप में विख्यात अल्मोड़ा में कोई इस तरह के नाम वाली जगह भी हो सकती है। ये अल्मोड़ा की एक छुपी हुए डेस्टिनेशन है जिसे कम लोग ही जानते हैं और अगर जानते भी हो तो दूसरे रूप में जानते हैं। इस जगह को एक और नाम से भी जाना जाता है और वो नाम है हिप्पी हिल।

अब तक जो लोग अल्मोड़ा को जानते हैं वो समझ गए होंगे मैं किस जगह की बात कर रही हूँ। कसार देवी के आसपास के इलाके को हिप्पी हिल के नाम से जाना जाता है। ये जगहें लगभग नारायण तिवाड़ी देवाल के कुछ आगे से शुरू होती है और मुख्य रूप से पप्पर सैली के नाम से जानी जाती है। लेकिन नारायण तिवाड़ी देवाल से शुरू कर के लगभग दीनापानी तक का इलाका इस हिप्पी हिल वाली रेंज में आता है। यहाँ की खाली खाली सड़कें, आस पास छोटी छोटी पहाड़ियों पर खड़े चीड़ के जंगल और इनके साथ दिखाई पड़ते हिमालय श्रखंला के नयनाभिराम दृश्य इस जगह को अति विशिष्ट बना देते हैं और अपने इन्ही आकर्षणों की वजह से एक समय पर ये जगह विदेशियों का स्वर्ग बन गयी थी लोगों ने इसे हिप्पी हिल का नाम दे डाला।

ये बात उस समय की है जब सन् उन्नीस सौ बीस से उन्नीस सौ साठ की अवधि में अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों से यंग जनरेशन पलायन कर के अलग अलग देशों में जा रहे थे। इसी क्रम में कुछ यूरोपीय लोग शांति की खोज में अल्मोड़ा भी आ गए और उन्होंने इस पहाड़ी के आकर्षण की महत्ता समझते हुए इसका चुनाव को अपने रहने के लिए कर लिया। इस इलाके में कुछ ऐसी विशिष्टता था कि उनके व्यग्र मन को यहाँ आ कर आत्मिक शांति मिलती थी। मन की शांति के साथ साथ नेत्रों के लिए मनोहारी दृश्यों के दर्शन भी हो जाते थे। मौसम साफ़ होने पर यहाँ से नेपाल के आपि पर्वत से लेकर हिमाचल के बंदरपूंछ तक फैली हिमश्रृंखला के दर्शन हो जाते हैं। इस तरह से विदेशियों के यहाँ आ कर बसने के कारण ये जगह को हिप्पी हिल के नाम से विख्यात हो गयी। अब बात करते हैं इसके दूसरे नाम क्रैंक रिज की ,जब एक नाम था ही तो दूसरे नाम की क्या जरुरत आ पड़ी। सभी लोग जानते ही हैं कि रिज का मतलब तो होता ही पहाड़ी की चोटी, तो पहाड़ की चोटी पर होने की वजह से इसे रिज कहा गया। लेकिन क्रेंकी का अर्थ हुआ सनकी ,इस तरह से शाब्दिक अर्थ हुआ सनकी पहाड़ी। कुछ विचित्र प्रकार का ही नाम लग रहा है। पर जब विशेष रूप से नाम दिया गया है तो कोई ना कोई कारण तो रहा ही होगा। वो कारण ये था कि इस दौरान यहाँ पर कई विदेशी गणमान्य व्यक्तियों का डेरा रहा। इन्ही दिनों हिप्पी आंदोलन के समय पर विख्यात मनोवैज्ञानिक तिमोथी लेरी ने यहाँ पर निवास किया और इन पहाड़ियों पर अचानक से दौड़ लगानी शुरू कर दी। उनकी इस सनक को देखते हुए ही इस पहाड़ी को नाम दिया गया क्रैंक रिज। यूरोपीय ही नहीं यहाँ पर कई सारे तिब्बती धर्मगुरु भी आ कर बस गए और उन्होंने यहाँ बौद्ध साधना केंद्र की स्थापना भी करी। इस तरह से यहाँ पर विभिन्न देशों के लोग आकर बस गये। विदेशी लोग यहाँ की महत्ता अब जानने लगे पर अपने देश की विभूतियों को तो पहले से ज्ञात थी। सर्वप्रथम तो यहाँ स्वामी विवेकानंद आ कर ध्यान में लीन हुए थे। उनके अतिरिक्त जवाहर लाल नेहरू की बहन, नीम करोली बाबा ये सब लोग भी यहाँ पर रहे थे।

अब ये तो थी पुराने समय की बातें, ऐसे ही तो कोई कहीं आ कर यूँ बस नहीं जाता है। कुछ विदेशी लोग आये और वापस चले गए और कुछ यहाँ ऐसे रमे की बस यहीं के हो कर रह गए। इस जगह की इस विशिष्टता का कारण अभी कुछ समय पहले नासा के वैज्ञानिकों ने शोध कर के बताया कि ये पहाड़ वेन एलन नाम की बेल्ट पर स्थित है, जिसकी वजह से यहाँ पर पृथ्वी का चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न होता है और इस वजह से इधर असीम ऊर्जा का केंद्र बन जाता है।चार्ल्स बर्नर के अनुसार जो लोग इस ऊर्जा से साम्य बैठा पाते हैं, उनके लिये ये जगह आध्यात्मिक उत्थान का साधन बन जाती है। शायद यही वो कारण रहा होगा जिसकी वजह से यहाँ रह कर कई सारे विद्वानों ने अपनी अद्भुत रचनाएँ दुनिया के सामने रखी और आज भी जब इस इलाके में जाओ तो एक अलग ही तरह की शांति का अनुभव होता है। आज भी कई सारे क्राइस्ट धर्म को मानने वाले लोग इसी जगह में रहते हैं शायद ये उन्ही आये हुए विदेशियों की संतान हैं जिन्होंने अपने देश को छोड़कर यहीं घर बसा लिए। कुछ एक तो ऐसे भी दिखाई देते हैं जिन्होंने यहाँ के रीति रिवाज और धर्म को आत्मसात कर लिया है। कुछ तो कसार देवी मंदिर में डेरा डाल के बैठे रहते हैं आज भी। आज भी कई सारे यूरोपियन यहाँ आते हैं घूमने कोई साइकिल ले कर तो कोई पैदल और छोटे बच्चे उन्हें देखकर खुश होते हैं वो देखो हिप्पी जा रहा है। ये हिप्पी यहाँ की संस्कृति में इस तरह बस चुके हैं कि कई बार लोग नर्त्य नाटिकाओं वगेरह के दौरान हिप्पी होने का स्वांग भी करते हैं।